Monday, December 1, 2008

दक्षिण एसिया मे आतंकवाद का समाधान नही चाहते है शक्ति सम्पन्न राष्ट्र

मुम्बई हादसे ने सहसा स्तब्ध सा कर दिया -संवेदनाओं को झिझोड़ कर रख दिया -कुछ ना कर पाने के हताशाजन आक्रोश -पीडा ने गुमसुम और मौन सा कर दिया ! कुछ ऐसी ही स्थितियां कभी कभी मनुष्य में आत्मघाती प्रवृत्तियों को
उकसाती हैं -एक तरह के सेल्फ अग्रेसन के भाव को भी ! एक राष्ट्र के रूप में दक्षिण एसिया के राष्ट्र कितने नकारा हो गए हैं - चन्द आतंकवादी सारे सुरक्षा स्तरों को सहज ही पार कर हमारी प्रभुसत्ता पर सहसा टूट पड़ते है और हम जग हसाई के पात्र बन जाते हैं ! नेपाल मे भी देखे तो शक्ति सम्पन्न राष्ट्रो की मदत से देशद्रोही माओवादीयो ने राष्ट्र की सत्ता पर ही कब्जा
जमा लिया है।

क्या इतिहास ख़ुद को दुहरा रहा है ? क्या हम अपने अतीत से सबक नही ले पाये और आज तक काहिलियत ,अकर्मण्यता और बेपरवाह से बने हैं -एक समय था जब हमारी हिन्दु भुमियो को जब भी जिस विदेशी आक्रान्ता ने चाहा चन्द अरबी
घोडों पे सवार हो अपने छोटे से दल के साथ यहाँ पहुचा और हमारे स्वाभिमान को रौंद, लूट खसोट कर वापस लौट गया ! मुम्बई की घटना में कया कही कुछ अन्तर नजर आता है -हम आज भी वैसे ही असहाय नजर आए और सारी दुनिया हमारी
बेबसी को देखती रही ।

हिन्दुत्व कभी भी एक संगठीत धर्म नही रहा है। यह एक जीवन पद्धति और बहुलवादी विचारधारा रही है। इस्लाम की तरह कोई सर्वसतावादी विचारधारा का मार्ग हमने नही अपनाया। हम विचारो की विविधता, जातियो की विविधता और पुजा पद्धतियो की विविधता को हर्ष पुर्वक स्वीकार करते है। लेकिन इसलाम ने धर्म का प्रयोग साम्राज्यवादी औजार के रुप मे किया। हमारी भुमि का हमारा अपना भाई जिसने विगत मे किसी परिस्थीती के कारण या दवाबवश इस्लाम अपनाया उस की राष्ट्रीय आस्था भी बदल गई। वह अपनी इस पुर्वजो की भुमि से ज्यादा मोहब्बत अपने पैगम्बर की भुमि से करने लगा। वह हकिकत को भुल कर उस छलावे को सही मान बैठा। जब तक भारत और पाकिस्तान के मुसल्मान यह नही सम्झेगें की यह उनकी पुर्वजो की भुमि है और हम उनके अपने भाई है तब तक आतंकवाद की समस्या का समाधान नही है। या फिर हमे हिन्दुत्व को भी संगठीत धर्म बनाना होगा, लेकिन तब वह इस विश्व की एक बहुत हीं सुन्दर जीवन पद्धति का अंत होगा। दुर्घटना होगी।

हिन्दु-मुस्लमान मे मित्रता के लिए हमने क्या नही किया। मुसल्मानो ने अपने लिए अलग देश ले लिया फिर भी हम उन्हे अपनी भुमि पर रहने देते रहे की उनका हृदय परिवर्तन होगा। आज भी मुझे विश्वास है की वह हमे जरुर अपनाएंगें। दक्षिण एसिया मे स्थायी शांती के लिए क्या किया जा सकता है यह सोचना ही होगा।

(कुछ अंश अन्य ब्लग से साभार)

मुम्बई मे 4817 बचे है मुर्ख ...........

भारत के विशेष गृह सचिव एम.एल कुमावत कह रहे थे की 183 लोग मुम्बई के हमले मे मारे गए। दुसरी तरफ महाराष्ट्र के गृह मंत्री आर.आर.पाटिल कह रहे थे की 4817 लोग बचा लिए गए क्योकी वह 5000 को मारने के लिए आए थे। लेकिन
मै कहता हुं की सिर्फ 19 मरे जो अपनी जान न्योछावर कर दुश्मनो से लडते लडते भारत माता की रक्षा के लिए शहीद हो गए। मै अपनी गिनती मे हेमंत करकरे जैसे लोगो को नही लेता हुं क्योकी वे क्या मरेगे जो पहले से ही मरे हुए है। हेमंत करकरे को नरेन्द्र मोदी और भारत की मिडिया देश का नायक और शहीद बनाने पर तुली हुइ है।

किसी पुलिस अफसर के लिए एक निर्दोष साध्वी के उपर झुठा आतंकवाद का आरोप लगाकर प्रताडीत करना आसान होता है । लेकिन जब असली दहशतगर्द आतंकवादी से आमना-सामना होता है तब उसकी बहादुरी की असली परीक्षा होती है ।

प्राप्त जानकारीयों के अनुसार हेमंत करकरे की मौत आतंकवादीयों से लडते हुए नही हुइ थी। वह ठीक उसी तरह मरे जीस तरह मुर्म्बई में पौने दो सौ आम शहरी मरे थें । एक कार में वह अपने घायल साथी को देखने के लिए कामा हास्पीटल जा रहे थे। सम्भवतः वह उस वक्त ड्युटी पर भी नही थे क्योकी उनके पास न तो बुलेट-प्रुफ जैकेट थी ना ही बडा स्वचलित हतियार। संयोगवश आतंकीयों ने इन पर हमला किया और वह मारे गए। आतंकीयो ने हेमंत करकरे की लाश घसीट कर बाहर रखी और उसी कार मे बैंठ आतंकीयों ने सैकडो लागो को मौत के घाट उतारा था । हेमंत करकरे ने कोई बहादुरी नही दिखाई और बिलकुल आम आदमी की तरह आतंकीयो पर विना किसी जबाबी हमले किए मारे गए। टेलिवीजन ने हेल्मेट पहनते और बुलेटप्रुफ जैकेट पहनते जो हेमंत करकरे की तस्वीर दिखा रही है वह पहले की फाइल क्लीपींग है, हाल की मुम्बई घटना से उसका कोई लेना देना नही है। क्या इन्हे बहादुर शहीद कहना उचित है।

हमारे यहां यह परम्परा रही है की मरने के बाद हम लोगों के गुण याद रखते हैं तथा अवगुणो को भुलने की कोशीश करते है । इस नाते कोई हेमंत करकरे को शहीद कहे तो चलो ठीक है।

मेजर उन्नीकृष्णन तथा हवलदार गजेन्द्र सिंह जैसे वीरो ने लडते लडते मां भारती की लाज बचाने के लिए मौत को अपने गले लगा लिया था। उनके लिए मेरे जिस्म का रोआं रोआं कृतज्ञ है। मै मुंबई की आतंकी घटना मे शहीद हुए उन 19 बहादुर सिपाहियो के प्रति हार्दिक श्रद्धांजली अर्पित करता हुं।

Saturday, November 29, 2008

हेमंत करकरे की मौत का सत्य

हमारे यहां यह परम्परा रही है की मरने के बाद हम लोगों के गुण याद रखते हैं तथा अवगुणो को भुलने की कोशीश करते है । हेमंत करकरे को मिडिया देश का नायक और शहीद बनाने पर तुली हुइ है । लेकिन यह बात समझनी होगी कि किसी
अफसर के लिए एक निर्दोष साध्वी के उपर झुठा आतंकवादका आरोप लगाकर तङ्ग करना आसान होता है । लेकिन जब असली दहशतगर्द आतंकवादी से सामना होता है तब आपकी बहादुरी की असली परीक्षा होती है ।

एक और बात गौर करने लायक है की हेमंत करकरे की मौत आतंकवादीयों से लडते हुए नही हुइ थी । वह ठीक उसी तरह मरे जीस तरह मुर्म्बई में पौने दो सौ आम शहरी मरे थें । एक कार में घुमते वक्त आतंकीयों ने इन पर हमला किया था
तथा इन की कार कब्जे मे कर उसी मे बैंठ आतंकीयों ने सैकडो लागो को मौत के घाट उतारा था । हेमंत करकरे ने कोई बहादुरी नही दिखाई और बिलकुल आम आदमी की तरह आतंकीयो पर विना किसी जबाबी हमले किए मारे गए। क्या इन्हे बहादुर शहीद कहना उचित है।

मेजर उन्नीकृष्णन तथा हवलदार गजेन्द्र सिंह ने लडते लडते मां भारती की लाज बचाने के लिए मौत को अपने गले लिया था। उनके लिए मेरा दिल का रोआं रोआं कृतज्ञ है।

आतंकवाद के मुद्दे का राजनितीकरण क्यौ नही

आतंकवाद देश के सामने एक बडी चुनौती है । इस मुद्दे के राजनितीकरण से कांग्रेस चिन्तीत है । क्योकी विगत में वोट बैंक तथा तुष्टीकरण की राजनिती की वजह से हीं देश में जेहादी आतंकवाद को बढावा मिला है । आतंकवाद के मुद्दे मे खुद को सुरक्षित करने के लिए ही कांग्रेस ने हिन्दुओ पर झुट्ठे आरोप गढे थें। इस बात को हमें समझना होगा ।

सोनिया विश्व के सबसे बडे आतंकी संगठन वेटीकन की अंग है

जिस प्रकार की घटना मुम्बई मे हुई। जितने बडे पैमाने पर हमला हुआ, जितना सटीक निशाना रहा उसे देख कर नही लगता की कोई भी आतंकी संगठन यह काम कर सकता है। निश्चित ही किसी शक्ति समपन्न देश के संगठीत खुफिया तंत्र के
रेख-देख मे ही यह काम हुआ होना चाहिए। बगैर किसी देश के आर्थिक और रणनितीक मदत के यह काम नही हो सकता है। मै तो कहता हुं की 5 आदमीयो का भी आतंकी समुह बगैर किसी देश के सरकारी आर्थिक मदत के नही बनाया जा सकता है।
मेरा कहने का तात्पर्य यह है की देश के सारे नक्सली, माओवादी एवम जेहादी संगठन किसी न किसी विदेशी ताकत के लिए काम कर रहे है।

कल टीवी पर महेश भट्ट कह रहे थे कि पाकिस्तान पर आरोप नही लगाया जाना चाहिए। अगर पाकिस्तान इन हमलो के पिच्छे नही है तो फिर किस देश की मदत से यह काम हुआ यह महेश भट्ट से पुछा जाना चाहिए। मै तो कहुंगा की महेश भट्ट
का भी नार्को टेष्ट कर के उनके आतंकीयो से सम्बन्ध के बारे मे जांच की जानी चाहिए। क्यो महेश भट्ट जैसे लोग आतंकी घटना के तुरंत बाद आतंकीयो और पाकिस्तान के समर्थन मे बयानबाजी शुरु कर देते है। हो सकता है की महेश
भट्ट ठीक हो, लेकिन उन्हे कहना होगा की अगर पाकिस्तान नही तो फिर कौन सा देश है भारत मे आतंकवाद के पीछे।

इस घटना मे भारत मे आतंकवाद निर्मुलण के लिए काम करने वाले कुछ महत्वपुर्ण व्यक्तियो की हत्या की गई है । जिस आर्टीकुलेटेड (सटीक) तरीके से हत्या की गई है उसे देख कर लगता है की उन लोग को एलीमीनेट (समाप्त)
करना ही इस हमले का उद्देश्य था। सम्भव है की उन जांबाज अधिकारीयो को आतंकवादीयो के बारे मे कोई बेहद महत्वपुर्ण सुचना हाथ लग गई थी। हो सकता है कि हिन्दु आतंकवादीयो के नाम से देश के दुश्मन देश मे हिन्दु-मुसलमानो
के बीच घृणा फैलाने का षडयंत्र कर रहे है यह आभास उन्हे हो चुका हो। अब उनके साथ ही वह महत्वपुर्णॅ राज भी सदा के लिए समाप्त हो गए होगे। देश के दुश्मन अपने योजना मे कामयाब हो गए और मुम्बई की सुरक्षा व्यवस्था धरी की
धरी रह गई।

घटना के बाद कोई छोटे मोटे आतंकवादी संगठन के नाम से कुछ मुसल्मान आतंकी पकडे जाएगे लेकिन मुझे लगता है की वह सब सत्य को छुपाने की एक कवायद भर है। जब हिन्दुओ के नाम से कोई किसी को मारता है तो शर्म से हिन्दुओ की
गरदन झुक जाती है। वैसे ही जब कोई मुसलमान किसी इनसान को मुसलमान के नाम से मारता है तो मुसलमान की भी गरदन झुकती है। तो कौन है इन हमलो के पीछे ?

क्या चर्च से संचालित शक्ति सम्पन्न देशो के खुफिया संगठनो ने इस घटना को अंजाम दिया है ? यह सोचने वाली बात है। इस लाइन पर अनुसंधान होना ही चाहिए। सोनिया गांधी सम्भवतः विश्व के सबसे बडे आतंकी संगठन वेटीकन की
अंग है। क्या भारत, पाकिस्तान सहित दक्षिण एसिया के मुलुक अब तक फिरंगीयो और उनके विभाजनकारी दुष्टताओ को समझ नही पाए हैं। भारत मे संप्रग सरकार स्थापना के बाद नेपाल को भारत अमेरिका और बिलायत की नजर से देखने लगा था और नतिजा हम देख रहे है। पुरे दक्षिण एसिया मे विभाजनकारी ताकतो का बोलबाला हो गया है।

जिन्ना और नेहरु बिलायती एजेंट थे। देश का विभाजन उन दोनो की वजह से हुआ था। गांधी देश का विभाजन नही चाहते थे। आज भी भारत में सोनिया गांधी और कांग्रेस पार्टी विभाजनकारी शक्तियो का हीं प्रतिनिधीत्व करती है। सत्य सरल होते हुए भी हम नही देख पाते क्योकी हमारी समझ पर पर्दा डालने के लिए वे झुठे प्रचार करते है। झुठे प्रचार के लिए उन्होने कैयन तंत्र खडे कर रखे है। मिडीया उनके लिए यह काम कर रही है। जो वह चाहते है वही मिडीया दिखाती है। अतः अगर आप सत्य जानना चाहते है तो मिडीया के इंटेंसंस (नियत) का समझते हुए विश्लेषण करना सिखे।

आतंकीयो का मनोबल उंचा उठाने मे सोनिया और उसके वफादार मनमोहन का बहुत बडा हाथ

अमेरिका मे एक आतंकी हमला हुआ और उसके बाद भले हीं जेहादी अमेरिका को
दुश्मन नं. 1 मानते रहे लेकिन दुसरा हमला करने की हिम्मत नही जुटा सके।
लेकिन भारत मे हरेक महिने कोई नक्सली या जेहादी कोई न कोई दुर्घटना कराने
मे सफल हो जाते है। क्या कारण है इसका। आतंकीयो का मनोबल उंचा उठाने और
देशभक्तो को प्रताडीत करने मे सोनिया और उसके वफादार मनमोहन एवम शिवराज
का बहुत बडा हाथ है। शायद आतंकीयो को लगता है की भारत उनके ससुराल की तरह
है। शिवराज पाटिल और गृह राज्य मंत्री जायसवाल से तो वो अपने सालो की तरह
मोहब्बत करते है। और जब सालो का राज हो तो फिर डर काहे का ?

Monday, November 17, 2008

एटीएस, मिडीया र सत्तारुढ दलहरु निहीत स्वार्थबाट परिचालित छन ?

विगत केही समय देखि भारतमा सरकारी जांच एजेंसीले हिन्दु संगठनबाट आबद्ध व्यक्ति तथा धर्मगुरु माथि आतंकवाद को आरोप लगाएर जांच गरी रहेका र अर्को तर्फ मिडीयाले सम्पुर्ण हिन्दु समाजलाई दोषीको रुपमा चित्रित गर्ने काम गर्दै आएका छन। आतंकवादको कुनै धर्म हुन्दैन र सबै आतंकवाद निंदनिय छन। कस्को विरुद्ध आतंकवादी आक्रमण भएको हो भन्ने कुराबाट मतलब न राखी हामी सबै प्रकारका आतंकवादको विरोध गर्छौ। तर, भारतमा हिन्दुहरु विरुद्ध वर्षेपिच्छे अनेक आतंकवादी धटनाहरु भई रहेको र त्यस्को नियंत्रणको लागि कडा कानुन निर्माण नियंत्रण गर्ने मांग गर्दा झन नरम कानुनको बनाउने काम सरकारबाट भएको कुरा बिर्सन सकिन्दैन । भारतमा जेहादी, नक्सली र माओवादी आतंकवादको शिकार हिन्दुहरु नै बन्दै आएका छन जस्को नियंत्रणको लागि भारत सरकारले ढुलमुल र नरम रवैया अपनाई राखेको अनुभुति पनि हामीले गर्दै आएका छौ। भारतमा आतंकवादबाट सबै भन्दा अधिक पिडीत रहेको हिन्दु समाज माथि नै भारत सरकार र मिडीयाले कपोल कल्पित र मनगढंत आरोप लगाई रहेको छ। अहिले भारतीय जांच एजेंसी र मिडीयाले जुन प्रकारको सक्रियता र कल्पनाशीलता देखाई रहेको छ त्यो आश्चर्यलाग्दो छ। भारतीय जांच एजेंसी को काम गर्ने तरीका, भारतको विदेशी दलाल मिडीयाको व्यवहार र सतारुढ दलका नेताहरुको गैरजिम्मेवारपुर्ण वक्तब्यबाट सतारुढ पार्टीहरुले निहीत राजनैतिक स्वार्थको लागि हिन्दुहरुलाई बदनाम गर्ने नियतले काम कारवाही गरी रहेको संदेह र शंका गर्ने प्रयाप्त आधारहरु छन। न्यायपुर्ण जांचको विरोध गर्न हुन्दैन तर हिन्दु समाजलाई बदनाम गर्ने नियतबाट कुनै काम कारवाही भई रहेको भए त्यसलाई तत्काल रोक्नु पर्दछ। साथै भारतमा नक्सली, माओवादी, जेहादी र अन्य सबै प्रकारको आतंकवादलाई निर्मुल पार्न भारत सरकारले एक समान चासो र तदारुकता देखाउनु पर्दछ।

Sunday, November 16, 2008

एटीएस संदेह के कटघरे में

शुरुवाती जांच मे एटीएस यह दावा कर रही थी की तथाकथित हिन्दु आतंकवादीओ ने बैंक एकाउंट के जरिए पैसे भेजे। लेकिन अब वह कह रही है की पैसे हवाला के जरिए भेजे गए। वास्तव मे हवाला कारोबार को कोई अभिलेख नही होता है, किसी भी हवाला कारोबारी को पकड कर धम्का कर आप उससे कबुल करवा सकते है की यह लेनदेन आपने किया था। एटीएस फोन कल के रिकार्ड और अन्य फर्जी प्रमाण जुटा कर हिन्दुओ के आस्था वाले संगठनो, व्यक्तियो एवम धर्मगुरुओ को बदनाम करना चाहती है।

एटीएस कह रही है की सम्झोता ब्लास्ट के लिए कर्नल पुरोहित ने आरडीएक्स का जुगाड किया था। जबकि उस विष्फोट मे अन्य प्रकार के विष्फोटको का प्रयोग हुआ था यह उस समय की जांच मे प्रमाणित एवम प्रसारित हुआ था। ऐसा लगता है की दुष्ट राजनेताओ के इसारे पर एटीएस निर्दोष लोगो को फंसाने के कृत्य मे घटनाओ को जोडतोड कर फर्जी प्रमाण जुटा रही है।
हिन्दु धर्म गुरुओ को नार्को टेष्ट के लिए नसीले इंजेक्सन लगाए जा रहे है। उनकी नियमित धर्मचर्या मे बाधा पहुंचाई जा रही है। नार्को की दवा का असर एक दिन मे समाप्त हो जाता है। इस लिए चार दिन रोज नार्को की प्रकृया दोहरा कर एटीएस अगर यह कहती है की हमने एक ही बार नार्को टेष्ट किया है तो वह लोगो को बेवकुफ बना रही है।

जब जेहादी, नक्सली, माओवादी विष्फोट कराते है तो जांच एजेंसीयो को न तो फोन रेकर्ड मिलते है, ना विष्फोटक एवम हतियारो के श्रोत और ना हीं कोई विधिवत जांच प्रकृया चलाई जाती है। ना मस्जीदो के अन्दर हो रही तकरीरो की खुफिया कैमरे से खिंची गई तस्वीर दिखाई जाती है। ना लालु यह कहते है की नक्सली और माओवोवादीयो के सम्बन्ध सीपीआई और सीपीएम के नेताओ से है। जनता बेवकुफ नही है, वह महसुस करती है की एटीएस, संप्रग सरकार एवम सीएनएन-एनडीटीवी जैसी गुलाम मिडीया की नियत ठीक नही है।

एटीएस संदेह के कटघरे में

शुरुवाती जांच मे एटीएस यह दावा कर रही थी की तथाकथित हिन्दु आतंकवादीओ ने बैंक एकाउंट के जरिए पैसे भेजे। लेकिन अब वह कह रही है की पैसे हवाला के जरिए भेजे गए। वास्तव मे हवाला कारोबार को कोई अभिलेख नही होता है, किसी भी हवाला कारोबारी को पकड कर धम्का कर आप उससे कबुल करवा सकते है की यह लेनदेन आपने किया था। एटीएस फोन कल के रिकार्ड और अन्य फर्जी प्रमाण जुटा कर हिन्दुओ के आस्था वाले संगठनो, व्यक्तियो एवम धर्मगुरुओ को बदनाम करना चाहती है।

एटीएस कह रही है की सम्झोता ब्लास्ट के लिए कर्नल पुरोहित ने आरडीएक्स का जुगाड किया था। जबकि उस विष्फोट मे अन्य प्रकार के विष्फोटको का प्रयोग हुआ था यह उस समय की जांच मे प्रमाणित एवम प्रसारित हुआ था। ऐसा लगता है की दुष्ट राजनेताओ के इसारे पर एटीएस निर्दोष लोगो को फंसाने के कृत्य मे घटनाओ को जोडतोड कर फर्जी प्रमाण जुटा रही है।
हिन्दु धर्म गुरुओ को नार्को टेष्ट के लिए नसीले इंजेक्सन लगाए जा रहे है। उनकी नियमित धर्मचर्या मे बाधा पहुंचाई जा रही है। नार्को की दवा का असर एक दिन मे समाप्त हो जाता है। इस लिए चार दिन रोज नार्को की प्रकृया दोहरा कर एटीएस अगर यह कहती है की हमने एक ही बार नार्को टेष्ट किया है तो वह लोगो को बेवकुफ बना रही है।

जब जेहादी, नक्सली, माओवादी विष्फोट कराते है तो जांच एजेंसीयो को न तो फोन रेकर्ड मिलते है, ना विष्फोटक एवम हतियारो के श्रोत और ना हीं कोई विधिवत जांच प्रकृया चलाई जाती है। ना मस्जीदो के अन्दर हो रही तकरीरो की खुफिया कैमरे से खिंची गई तस्वीर दिखाई जाती है। ना लालु यह कहते है की नक्सली और माओवोवादीयो के सम्बन्ध सीपीआई और सीपीएम के नेताओ से है। जनता बेवकुफ नही है, वह महसुस करती है की एटीएस, संप्रग सरकार एवम सीएनएन-एनडीटीवी जैसी गुलाम मिडीया की नियत ठीक नही है।

Saturday, November 8, 2008

साध्वी का सच और हिन्दु संगठनो की हकिकत

सोनिया के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार और उसकी गुलाम मिडीया हिन्दु संगठनो पर आतंकवादी का बिल्ला चिपकाना के लिए हर संभव प्रयत्न कर रही है। लेकिन आईए वास्तविकता को समझने का प्रयास करें।

भारत में पिछले दश बर्षो में नक्सलियो ने हजारो बम बिष्फोट किए हैं, माओवादीयों ने हजारों को मौत के घाट उतारा हैं । वैसे ही जेहादियों ने भी उतनी ही तादाद में बिष्फोट तथा हत्याए कि हैं । अगर घटनाओं कि सूची बनाई जाए एक लम्बी सूची तयार हो जाएगी । लेकिन सरकारी जांच एजेन्सी कितनी घटनाओं मे अपराधीयों तक पहुच पायी या कमसे कम विधिवत जांच प्रक्रिया को आगे बढा पाई । यह एक जिज्ञासा का बिषय है।

जिस प्रकार मालेगाव बिष्फोट के मामले में ए.टी.एस. साक्ष्यों को जुटाने का संकेत दे रही है उसे देख कर लगता है की वह र्सवज्ञ है । मिडिया से प्राप्त जानकारी के आधार पर यह सन्देह होता है की एक सोचे समझे षडयन्त्र के तहत हिन्दु कार्यकर्ता एवमं संगठनों को फंसाया जा रहा है । कोई नक्सली बम से थाने को उडा देता है, रेले स्टेशन को उडा देता है तो सरकार की एजेंसीया कोई सबुत नही जुटाती है, कोई कारवाही नही करती है। जेहादी जब तब हिन्दुओ को निशाना बनाते है तो सरकार उन्हे न रोक पाती है । लेकिन साध्वी प्रज्ञा के मामले जांच प्रकृया ऐसे चल रही है जैसे एटीएस विश्व की सबसे कार्यकुशल एजेंसी है। धीरे धीरे एक एक जानकारी मिडीया को ऐसे लीक की जा रही है जैसे कोई जासुसी सिनेमा बनाया जा रहा हो। दिगविजय सिंह, आर.आर.पाटिल और विलासराव देशमुख ऐसे ईशारो मे बात करते वे हमलोग के अशोक कुमार हो।

अनेक प्रश्न ऐसे है जिनके उतर भविष्य के गर्भ में छुपे है। कोई भी योजनाकार अपनी मोटरसाईकिल का प्रयोग धमाके मे नही करेगा। जिस प्रकार की फोन ट्रांस्क्रीप्ट दी गई है वह सुनियोजित षडयंत्र (स्टींग अपरेशन) की तरह लगती है। ऐसा लगता है की किसी आस्थावान हिन्दु के निर्दोष वार्तालाप का प्रयोग उसे फंसाने के लिए किया जा रहा है। मुझे यह संदेह है की किसी विधर्मी विदेशी एजेंसी ने कुछ आस्थावान हिन्दुओ के बीच घुस कर बम विस्फोट किया और फिर उनके खिलाफ साक्ष्य जुटा कर शांतीप्रिय हिन्दु समाज को आतंकवादी सिद्ध करने की कवायद शुरु कर दी।

सिर्फ आतंकवाद ही हिन्दु मुक्ति का मार्ग नही है। और मै तो मुसल्मान भाईयो को अपना दुश्मन भी नही मानता। किंतु हम सब को अपने अपने ढंग से राष्ट्र रक्षा अभियान मे जुटना होगा। मै न तो संघ, ना भाजपा और ना ही विहीप का कार्यकर्ता हुं। हिन्दुओ को आत्मबल बनाए रखना होगा। मनोबल मे कोई ह्रास न आने पाए। ईतिहास के एक महत्वपुर्ण दोराहे पर हम खडे है। हमारा आज का निर्णय हमारे भविष्य के अस्तित्व से जुडा हुआ है। आज चुप रहने और हाथ पर हाथ धरे बैठने का अर्थ है मौत। उठो जागो ..........

कुछ दिनो से ब्लग के माध्यम से मै आप सब के बीच था। मै हिन्दी की औचारिक शिक्षा प्राप्त नही कर पाया था। लेकिन चिट्ठे पढते लिखते आप सभी की कृपा से कुछ आत्म विश्वास हासिल कर पाया इसके लिए मै सभी का आभारी हुं। लेकिन मेरी आत्मिक संवेदनशीलता और अपने पेशे की जरुरतो के कारण मेरे इस अंतिम चिट्ठे के साथ मै आपके बीच से बिदा होता हुं। कभी कही भुल चुक हुई हो या किसी का दिल दुखाया हो तो माफ करेगे। हरि ओम तत सत !!!

Wednesday, November 5, 2008

ओबामा को बधाई

अमेरीकी लोक तंत्र का आधार मिडीया है। जिसने अच्छा मिडीया मेनेजमेंट किया
वह जीत गया। जिसके मिडीया कंसल्टेंट और ईभेंट मैनेजर ने उत्कृष्ट काम
किया उसे चुन लेगी अमेरिकी जनता अपने राष्ट्रपति के रुप में।

हमारे देश मे मुश्किल से 5 प्रतिशत जनता टीभी, अखबार या एफ.एम के जरिए
अपना विचार निर्माण करती है। इसलिए इस दृष्टी से हमारे यहा एक मजबुत
लोकतंत्र है। लेकिन विदेशी शक्ति सम्पन्न राष्ट्र अब हमारे यहां भी मिडीया
मे छदम निवेश बढा रहे है। तो हम यह मान सकते है की भविष्य मे हमारे यहां
भी वही जितेगा जिसकी मिडीया मे अच्छी पकड हो। जनता जाए भाड में।

जो भी हो, अमेरीकी जनता ने ओबामा को अपना मुखिया चुन लिया है। ओबामा अब
अमेरिका ही नही बल्कि सारे विश्व के सर्वाधिक शक्तिशाली व्यक्ति बन गए है।
अमेरीकी लोग खुद को जितना भी उदार एवम आधुनिक दिखाने का प्रयास कर लेकिन
वास्तव मे वह बेहद दकियानुसी एवम फंडामेंटलिष्ट (कट्टर) होते है। अपने
ईतिहास मे अमेरीकी जनता ने आज तक किसी महिला या अश्वेत या गैर ईसाई को
अपना राष्ट्रपति नही चुना था। यह पहली बार है की कोई अश्वेत अमेरिका का
राष्ट्रपति चुना गया है। ओबामा को भी पुर्ण अश्वेत नही कहा जा सकता क्योकी उनकी
माता श्वेत अमेरीकी थी। ओबामा का लालन पालन उनकी नानी ने किया था जिनकी
विचारधारा का ओबामा पर गहरा प्रभाव है। चुनाव से चंद रोज पहले ही उनकी नानी
का देहांत हो गया था।

ओबामा के राष्ट्रपति बनने से दक्षिण एसिया के प्रति अमेरिकी नितीयो मे कोई बुनियादी
फरक आएगा या नही यह देखने वाली बात है। वैसे डेमोक्रेटीक पार्टी जिससे ओबामा
निर्वाचित हुए है, उसे भारत के प्रति सहानुभुति रखने वाला माना जाता है। लेकिन
नेता जिस पार्टी का भी हो दक्षिण एसिया मे द्वन्द बढाने मे अमेरिका की विशेष रुचि
रहती है। दक्षिण एसिया के राष्ट्रो को चाहिए की वह किसी के बहकावे मे न आ कर
अपनी समस्यायो का समाधान करे तथा आपसी भाईचारा और विश्वास बढाते हुए दक्षिण
एसिया मे शांति बनाए रखने का प्रयास करे। इसी मे सबका कल्याण है सबकी समृद्धी है।

आइए जाने हमारे नए अमेरीकी राष्ट्रपति ओबामा के बारे में :

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल करने वाले
डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार बराक ओबामा के जीवन और उनके राजनीतिक
करियर के अहम पड़ाव-

जन्म - 4 अगस्त 1961, होनोलूलू, हवायी।पारिवारिक पृष्ठभूमि- कीनियाई मूल
के पिता बराक हुसैन ओबामा, अमेरिकी मूल की मां ऐन दुनहाम। 18 अक्टूबर
1992 को मिशेल रॉबिनसन से विवाह। दो बेटियां मालिया और साशा ।

धर्म- ईसाई, यूनाइटेड चर्च ऑफ क्राइस्ट।

शिक्षा-- कोलंबिया विश्वविद्यालय से स्नातक। हावार्ड लॉ स्कूल से आगे की
पढ़ाई। फरवरी 1990 में लॉ रिव्यू में पहले अश्वेत अध्यक्ष निर्वाचित।

राजनीतिक करियर- शिगागो में वर्ष 1991 में नागरिक अधिकारों के वकील के
रूप में सामाजिक कार्य। वर्ष 1992 में राष्ट्रपति चुनाव में बिल क्लिंटन
के लिए मतदाता पंजीकरण अभियान का कार्य। इलोनॉयस से सीनेट के लिए 1996,
1998 और 2002 में निर्वाचित।

जुलाई 2004 में डेमोक्रेटिक नेशनल कन्वेंशन में दिए भाषण से देश भर में
मिली पहचान।अमेरिकी सीनेट के लिए 2 नवंबर 2004 को निर्वाचित। देश के
पांचवें अफ्रीकन-अमेरिकन सीनेटर। 10 फरवरी 2007 को अमेरिकी राष्ट्रपति पद
की उम्मीदवारी का ऐलान।

आधिकारिक रूप से 3 जून 2008 को डेमोक्रेटिक पार्टी से नामंकन। 28 अगस्त
2008 को पार्टी की उम्मीदवारी स्वीकार की।'टाइम' पत्रिका द्वारा वर्ष
2005 में विश्व के 100 प्रभावशाली लोगों में शामिल बराक ओबामा ने 4 नवंबर
2008 को राष्ट्रपति चुनाव में जीत दर्ज की।

Tuesday, November 4, 2008

छठ के अवसर पर हार्दिक मंगलमय शुभकामना



आदिदेव नमस्तुभयँ प्रसीद मम भास्कर ।
दिवाकर नमस्तुभ्यँ प्रभाकर नमोस्तुते ॥

पुजी ले चरण तोहार ऐ छठी मइया , दुखवा से करदअ उबार ऐ छठी मइया...
सुर्य उपासना के महान पर्व छठ के अवसर पर हार्दिक मंगलमय शुभकामना

छठ पर्व का एक भक्तीमय लोकगीत :
नरियवा जे फरेला घवद से
ओ पर सुगा मेड़राय
सुगवा के मरबो धनुष से
सुगा गिरे मुरझाय
रोवें सुगा के सुगनिया
सुगा काहे मारल जाए
रखियों हम छठ के बरतिया
आदित होइहें सहाय
दीनानाथ होइहें सहाय
सूरूज बाबा होइहें सहाय

Saturday, November 1, 2008

कौन कहता है की राज ठाकरे दोषी है ?

महाराष्ट्र के डा. हेडगेवार देश की एकात्मकता के लिए काम करने वाले युगपुरुष थे। लेकिन उनके बारे मे शायद हीं कोई भी टीभी चैनल वाला सकरात्मक चीजे दिखाता है। आज दो हजार लोग सडक पर उतर कर भारतीयता के पक्ष और क्षेत्रवाद के विरोध मे नारे लगाए तो शायद हीं कोई भी टीभी चैनल वाला अपने प्राइम टाईम मे उसको प्रदर्शीत करेगा। लेकिन अगर कोई राज ठाकरे क्षेत्रवाद को बढावा देने वाली कोई भडकाउ बात करेगा तो टीभी चैनल वाले बार बार उसे दिखाएगे। फिर कोई नितीश, लालु या पासवान कुछ भडकाउ प्रतिकृया देगे तो फिर उसे भी उसी प्रकार बार बार दिखाया जाएगा।

आज देश की मिडीया मे विदेशी शक्तियो का बहुत बडा निवेश है। यह निवेश प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ से भी ज्यादा साम्राज्यवादी शक्तियो के हित पोषण के लिए किया गया है। विश्व मे भारत ही एक ऐसा विशाल भुखण्ड है जिसमे राष्ट्र बनने की सभी गुण विद्यमान हैं। विश्व शक्तियो के सामने भारत बडी चुनौती है। इस कारण शक्ति सम्पन्न राष्ट्र भारत मे क्षेत्रियता और भाषावाद को बढावा देना चाहते है। वह यह भी चाहते है की यहा हिन्दु और मुसल्मान आपस मे लडे। यही कारण है की मिडीया छद्म रुप से क्षेत्रियता और भाषावाद को बढावा देने वाली घटनाओ को ज्यादा से ज्यादा दिखाती है।

राज ठाकरे को महत्व न देना ही उसकी प्रवृती को नष्ट करने का सबसे बढिया तरिका है। अतः राज ठाकरे और उसकी बातो पर प्रतिकृया देने वालो की कम से कम चर्चा की जानी चाहिए।

एक बात और, बिहार मे कानुन व्यवस्था तथा विकास के काम बिल्कुल ठप्प हो गए है। मतदान और राजनिती का आधार विकास न हो कर जातिवाद रह गया है। रोजगारी का सृजन ठप्प पड चुका है। लोगो ने शासन के लिए गलत लोगो का चुनाव किया था तो यह सब भुगतना हीं था। आज बिहारी जनता को रोजगार के लिए महाराष्ट्र-पंजाब और असम जाना पड रहा है तो इसके लिए सबसे बडा दोषी कौन है। मै इस स्थिती के लिए राज ठाकरे को कतई दोषी नही मानता। इस स्थिती के लिए बिहार की जनता और यहा के नेता ही सबसे बडे दोषी है। क्षेत्रिय विकास असंतुलन की वजह से इतनी बडी जंनसंख्या का दुसरे राज्य मे बस जाना की वहां के लोग खुद को अल्पसंख्यक महसुस करने लगे, इस बात की कोई राज ठाकरे चिता करता है तो राष्ट्रियता के नाम पर उसकी बात को खारीज नही किया जाना चाहिए। इस बात पर बहस होनी चाहिए की बिहार विकास के दौड मे क्यो पीछे छुट गया है और इसका दोष दुसरे के सिर मढने से काम नही चलेगा। बिहार की जनता और बिहार के नेताओ को संकल्प लेना चाहिए की वे दुसरे राज्यो मे बोझ नही बनेगे बल्कि खुद बिहार को विकास के मार्ग पर आगे बढाएंगे।

Friday, October 17, 2008

क्या चर्च पर आक्रमण बन्द होने चाहिए ?

धर्म का एक मात्र उद्देश्य होता है। बेहतर विश्व बनाना और उच्चतर मानव निर्मित करना। भारतीय परम्पराओं मे धर्म को कभी सम्प्रदाय के रुप मे नही स्वीकारा गया। इसलिए हमारे धर्मिक शास्त्रो मे धर्म का कोई नाम नही दिया गया। वेद, पुराण और गीता मे कहीं भी "हिन्दु" शब्द का उल्लेख नही है। भारत मे धर्म का कोई संगठीत स्वरुप नही था। आत्मानुभुति से ही परम सत्य का साक्षात्कार हो सकता है ऐसी मान्यता रही है हमारी। हमारे यहां किसी व्यक्ति को ईश्वर-पुत्र या संवाददाता घोषित कर उसकी शरणागति से हीं मुक्ति मिलने जैसी बातो को कभी स्वीकार नही किया गया।

लेकिन जब धर्म एक सम्प्रदाय बना। जब इस दुनिया मे कुछ लोगो ने मिसिनरी लक्ष्य के साथ शासकों के सहयोग से धर्मांतरण कर अपने धर्मावलम्बियो की संख्या बढाने का काम शुरु किया तब धर्म सम्प्रदाय बन गया। इस अर्थ में ईसाइयत का प्रादुर्भाव विश्व के लिए सब से बडी दुर्घटना थी। जब ईसाईयत जैसे संगठीत धर्मो का आक्रमण सनातन एवं प्राक़ृतिक धर्मो पर होने लगा तो "हिन्दु" या "सनातन" धर्म जैसी शब्दावली प्रयोग मे आने लगी।

आज के विश्व मे जो शक्तिशाली राष्ट्र है वे चर्च के प्रभाव मे हैं। लेकिन उन देशो मे चर्च जाने वाले लोगो की संख्या दिन प्रतिदिन घट रही है। भारत, नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका, बंगलादेश जैसे देशो मे जहां गरीबी है वहां विदेशी धन से सेवा के नाम पर धर्मान्तरण करने का काम जोरो पर चल रहा है। इस धर्मांतरण का उद्देश्य बेहतर विश्व या उच्चतर मानव बनाना नही है, इनका उद्देश्य शक्तिशाली राष्ट्रो के हितो का पोषण करना भर है।

भारत मे वर्तमान शासन तंत्र के कारण चर्च खुद को शक्तिशाली समझने लगा और उसके गुर्गो ने कन्धमाल मे जनमाष्टमी के अवसर पर एक आश्रम पर आक्रमण कर स्वामी लक्ष्मानंद तथा उनके शिष्यो की हत्या कर दी। हालांकी सनातन धर्मावलम्बी बडे ही सहिष्णु एवं शांतीप्रिय होते है। लेकिन इस घटना ने सभी सनातन धर्मावलबीयो को उत्तेजित कर दिया। जिसके कारण भारत मे एकाध स्थानो पर छिटपुट घटनाओ मे चर्च पर आक्रमण भी हुए है। लेकिन मिडीया मे शक्तिशाली राष्ट्रो का बहुत बडा निवेश है। इस कारण मिडीया ने इन छोटी घटनाओ को बहुत बडे आक्रमण के रुप मे चित्रित कर हिन्दुओ पर संचार आक्रमण शुरु कर दिया है।

ऐसे मे हमे यह सोचना हीं होगा की हमे क्या रणनिती अपनानी है। हमे चर्चो के विरुद्ध हिंसा तो बन्द करनी चाहिए। लेकिन चर्च को अपने कुत्सित उद्देश्यो मे सफल न होने देने के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।

रुपये की हालत खराब

अमेरिका मुद्रा के तुलना में भारतीय रुपया लगातार गिर रहा है । कल, भारतीय रुपैया ४५ पैसा टुटकर प्रति डलर भा.रु. ४८/५३ पर बंद हुआ । व्यवहार में नेपाली रुपया भी भारतीय रुपये को आधार मान कर अन्य मुद्राओ से अपना अनुपात निश्चित करता है । इसलिए नेपाली रुपया का भी उसी अनुपात मे अवमुल्यन हुआ है । प्रति अमेरीकी डलर नेपाली रुपए का मुल्य आज ने.रु. ७८/७९ रहा । लेकिन बंगलादेश, पाकिस्तान तथा श्रीलंका मे अमेरीकी डलर का मुल्य पुर्व स्तर पर यथावत है । इसलिए भारत तथा नेपाल से इन देशो में हाने वाले निर्यात करीब २० प्रतिशत सस्ते हो जाएंगे । वैसे ही आयात २० प्रतिशत महंगें हो जाएंगें ।

दक्षिण एसिया की गरीबी में वैश्विक वित्तीय प्रणालीका बहुत बडा हाथ है । दक्षिण एसिया के देशों को यूरो के तर्ज पर समान मुद्रा बनाने पर विचार करना चाहिए ।

Friday, October 3, 2008

अर्थोपनिषद -३

नेपाली ओर भारतीय जनता कमाती है और जो पैसा बचत होता है उसे सोना मे लगा देती है। सोना पुरी तरह अउत्पादनशील निवेश है। सोना मे निवेश का सिधा लाभ मिलता है साम्राज्यबादी शक्तियो को । क्योकीं सोना के खादानो पर उनका ही कब्जा है। क्यो नही एंक बार हम फिर साने पर प्रतिबन्ध लगांए । सारा सोना बेच डाले लण्डन बालो कों । उससे हमे प्राप्त होंगी ढेर सारे पुंजी और हम लगा सकेंगे उद्योग और सृजन कर सकेंगे ढेर सारी रोजगारी।

Tuesday, September 30, 2008

अर्थोपनिषद २ (मनमोहन ने नेहरु को दफनाया)

नेहरु जी ने भारत को कई एतिहासिक समस्याएं दी है। लेकिन स्वदेशी उद्योगों को संरक्षण दे कर देश को आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढानेका काम भी नेहरु जी ने बखुबी किया था। लेकिन बैश्विकरण के लुभावने लफजबाजी से मनमोहन सिहं ने नेहरु जी को दफना दिया है। वेस्टन, ओनिडा, टेक्साला आदि ब्राण्डो से बिक्ने बाले भारतीय टेलिवीजन लुप्त हो चुके है । जगह ले लिया है कोरिया जैसे छोटे से देश की कम्पनीयो सामसुन्ग और एलजी (लक्की गोल्डस्टार) ने। भारत मे करोडो. मोबाइल उपभोक्ता है, लेकिन एक भी कम्पनी स्वदेशी मोबाइल सेट या उपकरण नही बनाती है। जबकी चीन की जेडटीइ ओर हुवावैइ से माल लेकर रिलायन्स ओर टाटा वाले ठप्पा भर लगते है ।

ये कैसा ग्लोवीकरण है, भारतीय धन बिदेशों मे जा रहा है विलासितापुर्ण तकनिकी उत्पादनो के लिए । विना आयात शुल्क संरक्षण के कोई भी स्वदेशी कम्पनी मुकाबला नही कर सकती धुरंधर विदेशी कम्पनीयो का। लेकिन मनमोहन की नजर मे तो स्वदेशी विदेशी एक हीं है ।

Tuesday, September 23, 2008

माओवादीयो द्वारा हिन्दू परम्परा बाधित

काठमाडौं में प्राचिनकाल से दशहरा के पहले इन्द्र भगवान की यात्रा निकाल्ने की परम्परा चली आ रही थी । इस अवसर पर नेपाल के राजा - कुमारी, भैरव और गणेश भगवान के मन्दिर में टिका ग्रहण करते थे । यह परम्परा जनता में आरोग्य सदभाव और समृद्धी प्रदान करने वाली मानी जाती है ।

माओवादीयो के सत्ता में आने के बाद वैज्ञानिकता और मितव्ययिता के नाम पर इन कार्यक्रमों के लिए बजेट आवटन रोक दिया गया । जिसके कारण पुरे काठमाडौं शहर में तनाव फैल गया है । लेकिन अन्ततः माओवादी अर्थमंत्री बाबुराम भट्टर्राई को झुकना पडा और पुर्ववत तरीके से इन परम्पराओं की निर्वहन की स्वीकृति देनी पडी ।

लेकिन विरोध और तनाव के कारण रथ निर्माण के लिए तय किया गया शुक्रबार साय ७:२५ बजे का मुहर्त गुजर गया । राष्ट्राध्यक्ष भी टिका ग्रहण के लिए नही आ पाए । पुलिस ने श्रद्धालुओ पर जम कर लाठी चार्ज किया तथा अश्रु गैस दागे । धर्म जागरण मंच (नेपाल) तथा विश्व हिन्दु महासंघ ने माओवादीयों के व्यवहार के प्रति विरोध और खेद प्रकट किया है ।

धर्म-संस्कृति से जुडी हुई परम्पराओं की भी एक वैज्ञानीकता होती है । लेकिन मार्क्स-माओ की नजर से ही दुनिया को देखने वाले ये र्सवसत्तावादी इन बातो को कैसे समझ सकते है?

Monday, September 22, 2008

नेपाल-भारत जनसम्बन्ध गोष्ठी

वीरगंज (नेपाल) २१ सितम्बर २००८ । नेपाल-भारत सीमा पर आवस्थित नगर वीरगंज में सामाजिक अध्ययन तथा जनसञ्चार केन्द्र ने "नेपाल भारत जनसम्बन्ध" विषयक गोष्ठी एवं अन्तरसम्वाद कार्यक्रम का आयोजन किया । कार्यक्रम में भारत-नेपाल के राजनेता, नागरिक समाज एवं पत्रकारो की उपस्थिती थी । इस अवसर पर निकले निश्कर्षो को साझा घोषणा-पत्र के रुप मे जारी किया गया । घोषणा-पत्र का पुर्ण पाठ निम्नानुसार है :

नेपाल-भारत के बीच प्राचिनकाल से ही अत्यन्त घनिष्ठ तथा मैत्रीपुर्णॅ सम्बन्ध रहे है । विभिन्न काल खण्डो में राजनैतिक परिस्थितियों के कारण दोनो देशों के शासकों के सम्बन्धों में उतार-चढाव आते रहे है, लेकिन दोनो देशों के जन-सम्बन्ध अटूट ही बने रहें । हमारे सम्बन्धों की कडिया हमारी साझा संस्कृति, भाषा, इतिहास और भूगोल से जुडी हुइ हैं । भविष्य में दोनो देशों के जन-सम्बन्ध को अधिक प्रगाढ और मैत्रीपुर्ण बनाने के लिए हम निम्न लिखित विन्दुओं पर्रर् इमानदारी पुर्वक सार्थक प्रयास करने का संकल्प करते हैं ।

१) जल संसाधन एंवं विधुत के क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग एवं विश्वास बढा कर बाढ-नियन्त्रण की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।

२) नेपाल-भारत तथा दक्षिण एसिया (सार्क) क्षेत्र के सभी देशों के बीच क्षेत्रीय व्यापार सम्झौते की लागू किया जाए जिससे आर्थिक विकास की दौड में कोई भी देश पीछे न रह जाए । सार्क क्षेत्र के व्यापार को अन्य देशों के व्यापार की तुलना में प्राथमिकता दी जाए ।

३) नेपाल से तीर्थ यात्रियो के लिए गया, काशी, प्रयाग तथा अजमेर शरीफ जाने के लिए रक्सौल से सीधी रेल सेवा शुरु की जाए।

४) सीमा के आर-पार से होने वाले अपराध नियन्त्रण के लिए उच्चस्तरीय कार्यकुशल साझा सयन्त्र बनाया जाए ।

५) सीमा के सम्बन्ध में जो भी विवाद है उनको मैत्री एवं सदभावपुर्वक शीघ्र हल किया जाए । इस सम्बन्ध मे एक दुसरे को उतेजित करने वाले बयानबाजी एवं गतिविधी को रोकी जाए ।

६) सीमा क्षेत्र में तस्करी को रोका जाए तथा वैद्य व्यापार को बढावा दिया जाए । लेकिन सीमा पर व्यक्तिगत उपभोग के लिए सामान-वस्तुओ के आदान-प्रदान को बेरोकटोक आने जाने दिया जाए ।

७) नेपाल-भारत सीमा के दोनो ओर के शहरो को मोडल सीमांत नगर के रुप में विकसित किया जाए तथा सरकारें इसके लिए आवश्यक धनराशि आवंटित करें ।

८) देवनागरी लिपि के कम्प्यूटर प्रयोग को बढाने के लिए भारत तथा नेपाल संयुक्त रुप से विकास एवं मानकीकरण का प्रयास करे।

९) दोनों देशो के मैत्रीपुर्ण सम्बन्धों को बिगाडने के लिए हो रही अतिवादी सोच और पीत पत्रकारिता को हतोत्साहित किया जाए ।

१०) सीमा पर तैनाथ दोनो देशों के भंसार एवं सुरक्षाकर्मियो को दोनो देश के विशेष सम्बन्ध के बारे में प्रशिक्षित किया जाए तथा सुमधुर व्यवहार करने के लिए उत्प्रेरित किया जाए ।

११) सीमा क्षेत्र के स्थानीय समास्यायो के निराकरण के लिए जन-सम्बन्ध पर आधारित मैत्रीपुर्णॅ संगठन बने ।

१२) चेली बेटी बेच बिखन की समस्या को रोकने के लिए विशेष कानुनी एवं प्रशासनिक व्यवस्था की जाए । इसके बारे में जनजागरण भी किया जाए ।

१३) भारत में प्रयोग हो रही उन्नत कृषि प्रविधी की जानकारी सीमा क्षेत्र के नेपाली कृषक को उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाए ।

१४) पडोसी की सुरक्षा संवेदनशीलता को ध्यान में रखकर ही. सरकारें विदेशी एजेन्सीयों को सीमा क्षेत्र मे काम करने की अनुमति दे ।

१५) साहित्यिक विकास एवम सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए सीमा क्षेत्र में एक समिति बनाई जाए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता केन्द्र के अध्यक्ष पवन तिवारी ने तथा सञ्चालन श्री रितेश त्रिपाठी ने किया । कार्यक्रम में सीमा जागरण मञ्च के डा. अनिल कुमार सिन्हा तथा गोलोक विहारी भी उपस्थित थें । नेपाल के कृषि तथा सहकारी मन्त्री श्री जयप्रकाश गुप्ता प्रमुख अतिथी थें । कार्यक्रम में सभासद अजय द्विवेदी, करिमा बेगम, जीतेन्द्र सोनल, आत्माराम साह, वंशीधर मिश्र भी मौजुद थें । नेपाल हिन्दी साहित्य परिषद कि संरक्षक दीप नारायण मिश्र, डा. रामवतार खेतान, गणेश लाठ, गोपाल अश्क, राजद नेता रामबावु यादव, राजद नेता फैसल रहमान एवं बजरंगी ठाकुर ने भी अपने विचार रखें ।

Wednesday, September 17, 2008

नेपाल से वनस्पती घी के आयात पर रोक लगे

भारत द्वारा नेपाल के उत्पादनो को आयात कर मुक्त भारत प्रवेश का छुट दिया गया है । लेकिन नेपाल इस सुविधा का लाभ उठा कर स्वदेशी कच्चे माल पर आधारित उद्योग लगाने की बजाए, विदेशी कच्चे माल से समान तयार कर भारत भेज रहा है ।

मलेशिया से पाम आयल आयात कर के शुन्य आयात शुल्क पर भारत भेजने का धंधा नेपाल के जोरो पर चल रहा है । इस प्रकार नेपाल के मार्फत् मलेसियाई पाम आयाल को भारत मे शुन्य आयात शुल्क पर भारत प्रवेश मिल रहा है । इस निती के कारण एक तरफ भारत की मलेसिया पर कुटनैतिक पकड कमजोर हो रही है, जिस की मार मलेसिया मे भारतीयो को झेलनी पड रही है । दुसरी तरफ भारत के तेलहन उत्पादन करने वाले किसान एवं उद्योगो को भी मार झेलनी पड रही है ।

नेपाल भारत सिमा पर शंकराचार्य द्वार



कांची कामकोटी पीठ के शंकराचार्य के नेपाल प्रवेश के अवसर पर नेपाल-भारत सिमा पर निर्मित शंकराचार्य द्वार को नेपाल का प्रवेश-द्वार माना जाता है। कलात्मक ढंग से निर्मित इस प्रवेश-द्वार को नेपाल प्रवेश करते समय देखने पर मन श्रद्धा से भर जाता है। यह प्रवेश-द्वार नेपाल एवम भारत के सांस्कृतिक एवं धार्मिक सम्बन्धो का प्रतिक है। बर्तमान भारत सरकार, नेपाल एवम भारत के सम्बन्धो में धार्मिक महत्व की अनदेखी करता रही है। नेपाल मे अवस्थित अनेकानेक धार्मिक स्थानो का हिन्दु एवम बौद्ध परम्पराओं मे विशेष महत्व है।

Monday, September 15, 2008

भारत-नेपाल सिमा पर एस.एस.बी की कडाई

भारत-नेपाल की सिमा ऐसी है कि अगर आप सिमा पार करे तो आप को एहसास हीं नही होगा कि आप अंतराष्ट्रिय सिमा पार कर रहे है । भारत-नेपाल के बीच खुल कर अनाधिकृत व्यापार भी होता आया है । दोनो तरफ की पुलिस इस प्रकार के व्यापार के लिए तस्करो से सहयोग ले उनको लाईन देती रही है । ईस अवैध कारोबार मे सिमा पर दोनो तरफ अवस्थित स्थानिय गावों के लोग संलग्न रहते है । लेकिन हाल के दिनो मे भारत-नेपाल सिमा पर भारत की और तैनात एस.एस.बी लोगो के साथ बेहद कडाई के साथ पेश आ रही है । पकडे जाने पर उनकी ऐसी पिटाई होती है की वह कई दिन तक बिस्तर से उठने के काबिल नही रहते ।


भारत नेपाल के बीच खुली सिमा दोनो देशो के लोगो मे अति मित्रतापुर्ण सम्बन्धो के लिए वरदान साबित हुआ है । लेकिन इस का फायदा उठा कर आतंकवादी नेपाल के रास्ते भारत प्रवेश करने और जाली नोटो का कारोबार फैलाते रहे है । इस कारण सिमा पर चौकसी बढाना दोनो देशो के हित मे है । लेकिन सिमा के दोनो और रहने वाले ग्रामीणो के साथ भारतीय और नेपाली सुरक्षाबल सुमधुर एवम शिष्ट व्यवहार करें यह भी जरुरी है।

Sunday, September 14, 2008

प्रचण्ड भारत यात्रा पर

नेपाल के माओवादी नेता तथा प्रधानमंत्री प्रचण्ड आज भारत के दौरे के लिए नई दिल्ली रवाना हो गए। 92 सदस्यीय टोली मे अनेक मंत्री, सरकारी अधिकारी एवम निजी क्षेत्र के लोग उनके साथ शामिल है।

भारत और नेपाल के बीच हुई 1950 की सन्धी को खारेज करने के लिए प्रचण्ड लगातार बयानबाजी करते रहे है। भारत ने भी ईस सम्बन्ध मे किसी भी किसिम के पुनर्विचार के लिए तैयार होने की बात दोहराता रहा है। लेकिन 1950 की सन्धी से नेपाल को अनेक लाभ भी है। देखना है की प्रचण्ड प्रधानमंत्री के रुप मे जब जिम्मेवारीपुर्वक बोलने का अवसर आया है तो कुछ कहते है या चुप लगा जाते है। वैसे भारत की गलत विदेश नितियो के चलते नेपाल मे विदेशी छद्म निवेष से संचालित मिडीया इन दिनो प्रबल रुप से भारत का विरोध कर रहा है। नेपाल से भारत को आपुर्ति के लिए जल विद्युत बनाने की प्रचुर सम्भावनाए है, जिसके क्रियान्वयण से नेपाल की आर्थिक अवस्था मे अत्याधिक सकारात्मक प्रभाव पड सकता है। इस काम को गति देने की मांग भी नेपाल मे लोग कर रहे है। देखे प्रचण्ड भारत को मोओवादीयो के प्रति कितना आश्वस्त कर पाते है।

प्रचण्ड भारत मे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सोनिया गान्धी एवम विपक्षी दल के नेता से मिलेंगें।

Tuesday, September 9, 2008

अर्थोपनिषद - १

आज विकास की परिभाषा है, ज्यादा से ज्यादा समान उत्पादन करना और ज्यादा से ज्यादा उपभोग करना । पश्चिमी देश या हमारे देश के शहरी लोग जो ज्यादा समान प्रयोग करते है उन्हे हम विकसित मानते है । मेरे दादा अपने समय में करीब ५० वस्तुए और सेवाओं का प्रयोग करते थें । उनमें से अधिकांश स्वदेशी होती थी । इतना ही नही अधिक वस्तुए तो अपने गांव के आसपास ही उत्पादित होती थी । आज मेरे यूग के लोग हजारो प्रकार की वस्तुए और सेवाओं का उपभोग कर रहे हैं, और वह भी अधिकांश विदेशीयों द्वारा उत्पादित हैं ।

एक जमाना था जब घर के पिछवाडे एक तुलसी का पौधा होता था । खांसी हुइ तो काढा पिया और स्वस्थ्य हो गए । अब हजारों प्रकार के रंगबिरंगे कफ सिरफ बजार में उपलब्ध है आपको ठीक करने के लिए । इस उपभोक्तावाद की दौड मे हम प्राकृतिक साधनो का भी आवश्यकता से अधिक दोहन कर रहे हैं, जो पर्यावरण के लिए खतरनाक सावित हो सक्ती है ।

एक किसान जो धान पैदा कर के १० रुपये में बेच रहा है, उसके जीवन यापन और इनपूट की लागत ही उससे ज्यादा है । दुसरी और १०० ग्राम का मोबाईल फोन जिसकी इनपूट लागत मुश्किल से २०० रुपये है, वह १०००० में खरिदते है हमलोग । तकनीकी सामान में मुल्य अभिवृद्धि सैकडो गुणा ज्यादा है, उसका सीधा लाभ सम्राज्यवादी देशों को प्राप्त हो रहा है ।

हम ऐसा विकास कर रहै है, जिसमें विलासिता के तकनीकी सामानो के लिए हमारे पैसे तकनिकी रुप से विकसित मुलुक लुट रहे है । कल तक स्वदेशी रेल से काम चलता था । अब विदेशी मशीन और इन्धन से चलने वाले हवाई यातायात को बढावा मिल रहा है । कल तक स्वदेशी विधुत मिलती थी । अब विदेशी मशीन और विदेशी इन्धन से उत्पादित बिजली का उपभोग करेंगे हम । यस कैसा विकास है । क्या हम अमेरिका और बिलायत के आर्थिक उपनिवेष बन चुके है।

Friday, September 5, 2008

साउदी अरेबिया और मलेसिया मे नेपालियो की मौतें

विगत 15 वर्षो से नेपाल मे चल रहे माओवादी विद्रोह ने देश को तोड कर रख दिया है। अतिवादी ट्रेड-युनियनवाद और दंडहिनता के कारण नए रोजगारी की सृजना यहां बिल्कुल ठप्प पड गई है। परम्परागत रुप से यहां के लोग भारत जा कर सेना, उद्योग या फिर चौकिदारी का हीं काम कर लिया करते थे। लेकिन खाडी के देशों, मलेशिया और कोरिया मे कामदारो की बढती मांग ने नेपालियो को भी आकर्षित किया है ।

बडी संख्या मे नेपाल से लोग खाडी के देशो, मलेसिया और कोरिया जा रहे है रोजगारी के लिए । लेकिन 55 डिग्री तापक्रम मे खराब खानपान और जैविक आवश्यकताओं से वंचित रहना उन्हे कमजोर बना देता है । हरेक महिने करिब 50/55 नेपाली काम के दौरान साउदी अरेबिया और मलेशिया मे स्वर्ग सिधार रहे है । वहां से आने वाले प्लेनों मे जिन्दे लोग के साथ रोज 1-2 शव भी आ रहे हैं ।

नेपाल के विदेश मंत्रालय के तथ्यांको से पता चलता है की पचास प्रतिशत मौतें तो साउदी अरेबिया जाने युवाओ की हो रही है। मलेसिया दुसरे नम्बर पर है। ईतना हीं नही मृतको को दिए जाने वाले क्षतिपुर्ति मे भी भारी भेद-भाव है। अगर मृतक मुसलमान है तो अधिक क्षतिपुर्ति प्राप्त होती है और हिन्दु है तो नगण्य मात्रा मे क्षतिपुर्ति मिलती है ।

विकास के लिए दक्षिण एसिया मे शांति आवश्यक

कुछेक साम्राज्यवादी शक्तियां हैं जो दक्षिण एसिया मे अशांति एवम कलह का वातावरण बना कर रखना चाहती है । लेकिन जब तक भारत, नेपाल, श्रीलंका, बंगलादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बर्मा, भुटान आदि देश आर्थिक रुप से एक संघ मे परिवर्तित नही होते तब तक किसी के लिए आर्थिक रुप से उन्नति कर पाना सम्भव नही दिखता ।

दक्षिण एसिया मे कलह और द्वन्द पैदा करने के लिए सतत रुप से साम्रज्यवादी शक्तियो के दलाल क्रियाशील रहते है । दक्षिण एसिया एक राष्ट्र के रुप मे फिर से एकिकरण हो सके इस बात की सम्भावना नही दिखती है । लेकिन युरोपियन युनियन के तर्ज पर आर्थिक संघ की परिकल्पना साकार की जा सकती है जो इस क्षेत्र को गरिबी और अभाव से मुक्ति दिला सकता है । सदस्य देशो मे मुक्त व्यापार की अवधारणा के साथ साफ्टा के नाम से एक कोशिश चल रही है । लेकिन इस कोशिश मे सदस्य देश ईमान्दार नही दिख पडते है ।

दक्षिण एसिया मे शांति के लिए हिन्दुओ और मुसलमानो के बीच भी एकता अपरिहार्य है । हिन्दुओ और मुस्लिमो के बीच खाईयो को पाटने का काम बेहद कठिन है । क्योकी अगर मुसलमान और हिन्दु न लडे तो फिर भारत मे कांग्रेस पार्टी की राजनिती हीं साफ हो जानी है ।

Tuesday, September 2, 2008

कैलास पर्वत पर शिव की जटा मे समायी है गंगा




Artist : Atul Sharma


हिमालय संस्कृत के हिम तथा आलय से मिल कर बना है जिसका शब्दार्थ बर्फ का घर होता है। हिमालय भारतीय योगियों तथा ऋषियों की तपोभूमि रहा है । हिमालय मे कैलास पर्वत पर भगवान शिव का वास है । भगवान शिव अपनी जटा में गंगा को धारण किए हुए हैं । सदियों पहले से पुराणो मे वर्णित ये प्रतिक आज के विज्ञान के तथ्यो से कितना साम्य रखते हैं ।

हिमालय पर हिमनद अपने मे अथाह पानी को धारण किए हुए हैं । किसी हिमनद के फुटने से वह अथाह जलराशी प्रलयंकारी रुप से बह निकलेगी । इतना ही नही, अगर हिमालय की आधी बर्फ भी पिघल जाए तो समुन्द्र की सतह कई हजार फिट उपर हो जाएगी और बंगलादेश जैसे निचले भुखंड जलमग्न हो जाएंगे ।

हमारे वेद पुराणो मे वर्णित तथ्य हमे वातावरण और पर्यावरण की जांनकारी हीं नही देते, अपितु उनके महत्व को भी बताते हैं । जरुरत है उन प्रतिको को समझने की । अगर हम श्रद्धा रखेंगे तो यह प्रतिक खुद-ब-खुद अपने अर्थ प्रकाशित कर देंगे । कोशी का कहर वास्तव मे शिव का कोप है । हम अपने पर्यावरण के साथ खिलवाड करेगे तो ऐसे कोप सहने ही पडेगे ।

शिवलिंग पर हम जल चढाते है । शिवलिंग को शीतल रखने का प्रयास करते है । क्या यह प्रतिक रुप से हमे ग्लोबल वार्मिंग की और संकेत कर रहा है ? ग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए हमे क्या करना है, यह महत्वपुर्ण प्रश्न है ?

जल संशाधन को नेपाल और बिहार का वरदान सिद्ध करने का संकल्प लेना होगा आज

जल संशाधन हमारे लिए वरदान है, लेकिन आज यह अभिशाप बना हुआ है । कौन है दोषी इसके लिए ? जब भी जल संशाधनो के व्यवस्थापन की बात चलती है, नेपाल के छद्म राष्ट्रवादी और भारत मे मेघा पाटकर सरीखे लोग विरोध शुरु कर देते है । भारत में अटल जी के समय बाढ की समस्या से छुटकारा पाने के लिए नदीयों को जोडने की बात चली थी तो मेघा पाटकर नेपाल पहुंच गई और लोगो को भारत की योजना के विरुद्ध भडकाने लगी । नेपाल मे भारत जब भी तटबन्ध निर्माण या मरम्मत की कोशिश करता है तो नेपाल मे भारत विरोधी ईसे नेपाल की राष्ट्रिय अस्मिता से जोड कर अंनर्गल दुष्प्रचार शुरु कर देते है ।

नेपाल मे भारत द्वारा तटबन्ध के मरम्मत मे अडचन एवम असहयोग भी प्रमुख कारक रहा है तराई की इस त्रासदी के लिए । नेपाल मे तटबन्धो मे पत्थरो को बांधने वाले गैबिन वायर (तार) तक चुरा लिए गए थे । नेपाल सरकार तटबन्धो की सुरक्षा के प्रति गम्भीर नही थी । तटबन्ध के टुटने के कई कारणो मे पत्थरो को बांधने वाले तारो की चोरी भी प्रमुख कारण है ।

जो भी हो, कोशी के इस कहर से सब को सबक लेना जरुरी है । भारत और नेपाल के बीच जल सन्धि को मजबुत किया जाना चाहिए । जल संशाधनो के विकास मे अविश्वास के वातावरण को समाप्त किया जाना चाहिए । नेपाल के नव निर्वाचित प्रधानमंत्री प्रचण्ड ने बिना सोचे समझे कोशी नदी के सम्झौते को एतिहासिक भुल तक कह डाला, एसे बयानो से अविश्वास बढेगा यो दोनो देशो के लिए प्रत्युपादक है ।

काठमांडौ मे भारत के राजदुत हर महिने नेपाल के प्रधानमंत्री से मिलते थे, लेकिन कोशी के तटबन्ध की सुरक्षा उनकी प्राथमिकता मे नही होती थी । वे तो महारानी सोनिया को खुश करने के लिए प्रधानमंत्री को ईस बात के लिए मनाते है की हिन्दु राष्ट्र समाप्त कर धर्म निर्पेक्ष बनाया जाए नेपाल को । नेपाल मे भारत के राजनयिको को राजनैतिक गतिविधियो की बजाए जन सरोकार के विषयों मे अधिक ध्यान केन्द्रित करना चाहिए ।

Monday, September 1, 2008

चाईनिज मतलब घटिया माल

ओलम्पिक में पदक तालिका में सबसे उपर रहा चीन । वहीं लगभग उतनी हीं आवादी वाला भारत बडी कठिनाई से अपनी उपस्थिती मात्र दर्ज करा पाया । क्या यह चीन के महाशक्ति बनने और भारत के फिसड्डी बन जाने का संकेत है ।

जब जर्मनी एकीकरण नही हुआ था तो वामपंथी राह पर चलने वाला पश्चिमी जर्मनी पदक तालिका में उपर रहता था । रुस भी कट्टर वामपंथी शासन व्यवस्था में अच्छे पदक प्राप्त करता था । क्या यह सिद्द करता है की तानाशाही में अच्छे खिलाडी बनते है ?

खेल से अलग चीनीया माल की बात करे तो वह तो घटिया का पर्यायवाची बनता जा रहा है । अगर सामान चाइनिज है तो क्वालिटी घटीया हीं होगी ।

Wednesday, August 27, 2008

नेपाल का भविष्य

राजा महेन्द्र के बाद से नेपाल मे भारत विरोधी खेमा दरबार के आवरण मे लिपटा रहता आया है । आज भी भारत के विरोध मे अगर कोई सबसे ज्यादा विष वमण करता है, वह या तो दरबार के निकट का व्यक्ति होता है या फिर माओवादी । लेकिन मुझे आश्चर्य होता है की ये राजावादी क्यो ईतना आउट अफ वे जा कर भारत का विरोध करने मे लगे रहते है । शायद ये ख़ुद को राष्ट्रवादी या राष्ट्रभक्त सिद्ध करने के लिए एसा करते है । या फिर भारत विरोधियो ने राजा को घेर रखा है ।

भारत मे राजीव गान्धी के शासन काल मे भारत और नेपाल के राजा के रिश्तो मे भारी खटास आई थी । उसी प्रकार सोनिया गान्धी के नेतृत्व वाली सरकार भारत मे सत्तासीन होने के बाद भारत ने अपनी "दो-खम्बा" निती को फिर से त्याग दिया है । क्या हिन्दु सम्राट होना ही नेपाल के राजा का दोष है ?

नेपाल मे आज जो हो रहा है उसे समझने के लिए विदेशी ताकतो – भारत, चीन, पाकिस्तान, अमेरिका, स्केंडेवीयन देशो के नेपाल मे रहे स्वार्थो को समझना होगा । उसी प्रकार माओवादी, दरबार (राजा और सेना), प्रजातांत्रिक दलो, वामपंथी (समाजवादी) दलो और मधेसी शक्तियो की निती और निष्ठाओ को भी समझना होगा । लेकिन लोग इतने मुखौटे लगाए हुए हैं की असल बात समझ मे नही आती ।
लेकिन हम अगर मुखौटो के अन्दर झांक सके तो चीजे बिल्कुल स्पष्ट समझ मे आ जाएगी । लेकिन हम इतने पुर्वाग्रहो से भरे है की असल चीजो को समझने की जगह हम अपने पुर्वाग्रहो से चीजो को देखना शुरु कर देते है । और फिर समझ पाना कठीन हो जाता है ।

जब नेपाल डुब रहा था तो प्रचण्ड चीन की बांसुरी बजा रहे थे

एक पुरानी कहावत है – "जब रोम जल रहा था तो निरो चैन की बांसुरी बजा रहा था" । अब इस कहावत को हमे भुल जाना चाहिए । क्योकी एक तो यह कहावत बहुत पुरानी हो चुकी है, और अब इस से अधिक सटीक और सान्दर्भिक उदाहरण हमारे पास मौजुद है । इस बार मियां प्रचण्ड जब नेपाल के प्रधानमंत्री बने तो उन्होने ईश्वर के नाम से सपथ न लेकर जनता के नाम से सपथ लिया । काम तो बडा अच्छा किया, लेकिन पता नही कहां चुक हो गई, जो दुसरे दिन हीं नपाल मे पिछले पचास वर्षो के रेकर्ड को तोडते हुए भीषण बाढ आ गई । प्रचण्ड ने भी आव देखा न ताव बाढ क्षेत्र का एक तुफानी दौरा कर के फुर्र से चीन की यात्रा पर उड चले । वहां प्रचण्ड ने ओलम्पिक के समापन समारोह का आनन्द लिया और फिर दो चार दिन घुमे, भोज पार्टीयो मे सरिक हुए और लोगों से मुलाकात कर वापस आ गए । अब निरो की मांनसिकता को समझने के लिए यह कहना ज्यादा बोधगम्य लगता है की – "जब नेपाल डुब रहा था तो प्रचण्ड चीन की बांसुरी बजा रहे थे" ।

वैसे प्रचण्ड ने चीन खिसक कर बडी होशियारी का काम किया है । कल मै एक उद्धार टोली के साथ बाढ स्थल पर पहुंचा था । हमारे साथ था ट्रक भर के खाने पीने का समान और कपडा लत्ता । लेकिन हम पिडितो तक पहुंच ही नही पाए । वहां की प्रहरी और प्रशासन तो अति विशिष्ट व्यक्तियो के आवाभगत मे व्यस्त था । हम उनके साथ बाढ प्रभावित क्षेत्रो मे खुद जा कर पिडीतो को सामाग्री देना चाहते थे । लेकिन उनकी प्राथमिकताए दुसरी थीं । लुटपाट के डर से बिना प्रहरी सुरक्षा के हमारा भित्री क्षेत्र में जाना असुरक्षित था । अंततः हमे सामाग्री वहीं पर बने दो उद्धार टेन्टो को सुपुर्द कर के लौट आना पडा । हमे पिडीतो की खुद सहायता कर पाने के आत्म संतोष से वंचित रह जाना पडा । तो अगर मिया प्रचण्ड चीन न जा कर नेपाल मे रह जाते तो हेलिकाप्टर से एक आध दौरे जरुर लगाते और परेशानिया घटने की बजाय बढ ही जाती । किसी ने ठीक ही कहा है की भगवान जो करता है ठीक ही करता है ।

Tuesday, August 26, 2008

हिमालय हमारे ऋषियों की तपोभूमि

हिमालय एक पर्वत शृंखला है यह शृंखला भुटान से शुरु हो कर नेपाल, तिब्बत, भारत, पाकिस्तान एवम अफगानिस्तान के तक फैली हुई है । यह अपनी ऊँची चोटियों के लिये प्रसिद्ध है। हिमालय संस्कृत के हिम तथा आलय से मिल कर बना है जिसका शब्दार्थ बर्फ का घर होता है। हिमालय भारतीय योगियों तथा ऋषियों की तपोभूमि रहा है । हिमालय मे कैलास पर्वत पर भगवान शिव का वास है ।

विश्व का सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट हिमालय की ही एक चोटी है। एभरेष्ट नामाकरण भारत मे रहे एक अंग्रेज सर्भेयर जनरल के नाम पर सन 1865 मे किया गया था । नेपाली मे इसे सगरमाथा कहते है । तिब्ब्ती भाषा मे इसे चोमोलुङ्गमा (झो मो लाङमा) कहते है । समुन्द्र की सतह से इसकी उंचाई 29028 फिट है ।

आधुनिक विज्ञान के मान्यता अनुसार भारतीय भु-खड के निरन्तर उतर के तिब्ब्ती भु-खंड की तरफ खिसकने से कोई 600 लाख वर्ष पहले हिमालय पर्वत शृंखला का निर्माण हुआ था । वैज्ञानिक कहते है की यह भु-खंड आज भी खिसक रहा है जिसके कारण हिमालय पर्वत शृंखला की उंचाई निरंतर बढ रही है ।

Sunday, August 24, 2008

क्षेत्रिय विकास असंतुलन

भारत के तेजी से विकास के दावे किए जा रहे हैं । लेकिन विकास की परिभाषा विभिन्न लोगो के लिए पृथक पृथक हो सकती हैं । सोने की चम्मच मुंह मे ले कर जन्मे कुछ लोग के लिए भारत मे नित बन रहे नए नए हवाई अड्डे विकास के मील के पत्थर हो सकते है । लेकिन जो लोग धरातलिय यथार्थ पर रहते है उनके लिए विकास का अर्थ है सर्वांगिन विकास । संतुलित विकास ।

आप अगर सीमा पर नेपाल के बीरगंज नगर में जाते है तो आपको नजर आएगी चमचमाती सडके, पार्क और सडक पर बत्ती । लेकिन वहीं आप भारत के रक्सौल नगर मे जाएगें तो कीचड से सनी सडके, अनियंत्रित ट्राफिक और चारो ओर अव्यवस्था हीं अव्यवस्था । ये चीजे भारत की छवि को खराब करती हैं । भारत सरकार के अधिकारी क्यो नही सीमांत नगर रक्सौल को सुन्दर बनाने के लिए केन्द्रिय परियोजना के तहत काम शुरु करते हैं । बिहार की सरकार से कुछ अपेक्षा करना तो बेकार हीं होगा ।

ज्योतिष और क्रिकेट के टीवी प्रशारण पर प्रतिबन्ध लगे

भारतीय न्युज चैनलो को देखने पर लगता है की भारतीय जनता अपने जीवन का 25% हिस्सा ज्योतिष और क्रिकेट जैसी अनावश्यक विषयो मे गंवा देती है । ये दोनो रोग अब नेपाल को भी संक्रमित करते जा रहे है । फलित ज्योतिष के टीवी प्रसारण पर तुरंत रोक लगनी चाहिए ।

क्रिकेट को फैलाने में गोरे बिलायती और भारत के काले बिलायती हाथ धो कर पीछे पडे है । इसकी जगह अन्य स्वदेशी खेलो को ज्यादा प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है जो युवाओ को अच्छा स्वास्थ्य और अनुशासित बना सकें ।

Friday, August 22, 2008

नेपाल-भारत सीमा पर तबाही – मेघा पाटकर सवालो के कटघरे में

नेपाल भारत सीमा के पास पश्चिमी कुसाहा तटबन्ध के टुट जाने से नेपाल और भारत मे भीषण तबाही हुई है । नेपाल के सुनसरी जिले और बिहार के सुपौल, सहरसा, अररिया, किशनगंज, कटिहार और खगडीया जिले मे जान-माल की भारी क्षति हुई है । हजारो लोग बह गए है, बेघर हो गए है – प्रलय की सी स्थिती बन गई है ।

नेपाल मे भारत-विरोधी मिडिया तर्क-कुतर्क के सहारे भारत को दोषी सिद्ध करने की असफल कोशिस कर रहा है । दुसरी तरफ नेपाल स्थित भारतीय दुतावास अंग्रेजी मे विज्ञप्तियां जारी कर न जाने क्या गिटिर-पिटीर कर रहा है । समाज का सभ्रांत वर्ग बाढ पिडीतों के लिए सहायता जुटाने मे जुट गया है । लेकिन मै आज सवालो के कटघरे मे खडा करना चाह्ता हुं भारत के मेघा पाटकर और नेपाल के छदम राष्ट्रवादियो कों । जिनकी वजह से भारत-नेपाल के बीच जल संशाधनो के व्यवस्थापन मे कठिनाईया आती रहती है ।


जब श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी की सरकार ने बाढ की समस्या से निजात पाने और जल यातायात की संभावनाओ को कार्यरुप देने के लिए नदीयों को जोडने की बात शुरु की तो मेघा पाटकर नेपाल मे लोगो को भारत की योजना के विरुद्ध भडकाने के लिए नेपाल पहुंच गई । साम्राज्यवादी शक्तियो के दलाल जो दक्षिण एसिया को गरीब देखना चाहते है, वह भारत-नेपाल के बीच जल संशाधनो के उपयोग के लिए कोई भी सम्झौता होने पहले ही उसकी राह मे रोडे अटकाने के ले मिडिया दुष्प्रचार शुरु कर देते है । दोनो देश के कमजोर राजनेता जनता की बीच खडे हो कर सही को सही सिद्ध करने मे असफल हो जाते है । और नतिजा यह होता है की कोई काम नही होता है ।

कोशी नदी के बारे मे कहा जाता है की वह घडी के पेण्डुलम की तरह हर वर्ष अपना पथ बदलती रहती है । ईस क्षेत्र मे मानव बस्तियां घनी हो चली है, जो तबाही का कारण बनता है । एसे मे कोई विशेषज्ञो की मदत से कोई योजना तो बनाना ही होगा, जिसमे जो निवेष होगा उसके एवज मे प्रयाप्त आर्थिक लाभ भी निवेषकर्ता के लिए सुनिश्चित किया जाना चाहिए ।

आज जो हजारो लोग बेघर हुए है, जान-माल की क्षति हुई है उसके लिए भारत मे मेघा पाटकर और नेपाल मे छद्म राष्ट्रवादी हीं जिम्मेवार हैं । मेघा पाटकर जैसे लोग अपने कामो के एवज मे विदेशो से धन प्राप्त करते है, और दुसरी तरफ नेपाल के छद्म राष्ट्रवादी भारत विरोध शुरु कर खुद को राष्ट्रवादी सिद्ध कर अपनी निरंकुश सत्ता को टिकाना चाह्ते हैं ।

Thursday, August 21, 2008

स्वदेशी की परिभाषा माओवादी की नजर में

चंद रोज पहले नेपाल के पहले उपराष्ट्रपति महामहिम परमानन्द झा ने जब धोती कुर्ता पहन कर सपथ ग्रहण किया तो माओवादीयो ने सारे देश में बहुत बबाल खडा किया कि उपराष्ट्रपति ने विदेशी भेषभुसा मे क्यो सपथ लिया ।

लेकिन जब माओवादी नेता पुष्प कमल दाहाल (प्रचण्ड) प्रधानमन्त्री पद की सपथ लेने के लिए सुट कोट र्टाई मे सजधज कर पहुचे तो लोग देखते ही रह गए । हैरानी होती है इनके सोच के दिवालिएपन पर जो धोती कुर्ताको विदेशी कह कर तिरस्कार करते है, लेकिन कोट-र्टाई-सुट को अपनाते है ।

नेपाल की यह परम्परा रही है की जब भी कोई प्रधानमन्त्री बनता है तो अपनी पहली विदेश यात्रा बडे भाई भारत की करता है । लेकिन प्रचण्ड ने अपनी पहली विदेश यात्रा में चीन जाने का निर्णय लिया है । नेपाल में माओवादीओं को सत्ता के उत्कर्ष पर पहुचाने में भारत की सप्रग एंव वामपंथी सरकार का बहुत बडा योगदान है । अब भुगतें । जो बोएगे वही तो काटेगें ।

Sunday, August 17, 2008

नेपाल में भारतीय स्वतंत्रता दिवस

भारत कें ६१ वें स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर भारत सरकारद्वारा नेपाल के विभिन्न भाग में अवस्थित अस्पताल, परोपकारी संस्थाओं, शैक्षिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओ को लगभग ३ करोड मुल्य की तीस एम्बुलेन्स, आठ बसें और बडे परिमाण में शैक्षिक सामाग्रीओ का बितरण किया गया है । काठमाण्डौ स्थित भारतीय राजदुतावास तथा वीरगंज स्थित महाबाणिज्य दुतावास द्वारा आयोजित कार्यक्रमो में १५ अगस्त के दिन आयोजित कार्यक्रम में इन्हे हस्तांतरित किया गया है ।

भारत पिछले १५ बर्षो में नेपाल में २०० से अधिक एम्बुलेन्स बितरण कर चुका है । नेपाल के विकास में भारत गहरी अभिरुची लेता है तथा अस्पताल, विद्यालय, सडक आदि के निर्माण मे नेपाल को भरपुर सहयोग देता है ।

प्रचण्ड प्रधानमन्त्री बने

पुष्प कमल दहाल "प्रचण्ड" नेपाल के नए प्रधानमंत्री निर्वाचित हो गए है । नेपाल में ३ महिने पहले हुए संविधान सभा निर्वाचन पश्चात सहमति के आधार पर राष्ट्रिय सरकार बनाने की कोशिश असफल होने के बाद बहुमतीय आधार पर संविधान सभा ने १५ अगस्त २००८ के दिन उन्हे प्रधानमन्त्री निर्वाचित किया । प्रचण्ड के पक्ष में ४९४ तथा विपक्ष में ११३ मत पडे ।

नेपाल की शासन व्यवस्था अस्थिरता से भरी रही है । चलिए पिछले 60 बर्षो पर एक नजर डालते है ।


सन १९५० - शाह वंशीय राजा प्रभावहीन हो चले थें । शासन की बागडोर राणा वंशीय प्रधानमन्त्री के हाथ में रहती थी । राजा त्रिभुवन ने जन-विद्रोह एवं भारत की मद्दत से राणा शासन व्यवस्था का अंत कर बहुदलीय प्रजातान्त्रिक व्यवस्था स्थापित की ।

सन १९५१ - नेपाली कांग्रेस पार्टी विश्वेश्वर प्रसाद कोईराला नेपाल के पहले निर्वाचित प्रधानमन्त्री बने ।


सन १९६० - राजा महेन्द्र ने सैनिक तंत्र की सहयता से निर्वाचित प्रधानमन्त्री अपदस्थ कर सत्ता अपने हाथों मे ले ली । पंचायती प्रजातन्त्र लागू किया जिससे सत्ता की बागडोर राजा के हाथो में बनी रहती थी ।

सन १०७९ - राजतन्त्र के विरुद्ध हुए आन्दोलन के बाद राजा विरेन्द्र ने जनमत संगह्र की घोषणा की । लेकिन जनमत संग्रह के नतिजे अप्रत्याशित रुपसे बहुदलिय प्रजातन्त्र के विरुद्ध घोषित हुए । जनमत संग्रह से राजतन्त्र फिर से मजबुत हुआ ।

सन १९८९ - राजतन्त्र के विरुद्ध सभी दलो ने संयुक्त आन्दोलन किया जिसके कारणराजा विरेन्द्रको बहुदलिय प्रजातन्त्र की घोषणा करनी पडी । नेपाली कांग्रेस के कृष्णा प्रसाद भट्टराई अन्तरीम प्रधानमन्त्री बने । देश में बहुदलिय प्रजातन्त्र के साथ आलंकरिक राजतन्त्र की व्यवस्था स्थापित हुई । लेकिन राजा सेना प्रमुख बने रहे ।

सन १९९४ - नेपाल में भूमिगत रहते हुए माओवादीयो नें जनयुद्ध शुरु किया । दश बर्षो में करीब २०,००० लोग मारे गए, र्सार्वजनिक संरचनाओ को ध्वस्त किया गया । संसदिय चुनाव सम्पन्न नही करवाए जा सकें ।

सन २००३ - संसदीय चूनाव न होने के कारण उत्पन्न संवैधानिक संकटको दर्शाते हुए राजा ज्ञानेन्द्र ने सत्ता फिर अपने हाथ में ले ली । निर्वाचित संसदको भंग किया ।

सन २००५ - माओवादी तथा अन्य प्रजातान्त्रिक दलों ने दिल्ली बैठक में १२ प्वाईन्ट सम्झौता किया और नेपाल में संयुक्त जन-आन्दोलन शुरु किया गया । इस सम्झौते में भारत सरकार की अप्रत्यक्ष भूमिका रही ।

सन २००६- जन-आन्दोलन के दबाव मे राजा ज्ञानेन्द्र को गिरिजा प्रसाद कोईरालाको प्रधानमन्त्री पद और सम्पर्ण् कार्यकारी अधिकार देना एवं संसद पूनर्स्थापनाको स्वीकार करना पडा ।

सन २००६ - संसद में बडी संख्या मे माओवादीओ को सीधे प्रवेश दिया गया । संसद ने वगैर बहस किए हिन्दु राष्ट्र समाप्त कर धर्म निरपेक्षता की घोषणा किया । इस घोषणा के विरुद्ध हुए प्रदर्शनो और आन्दोलन को संचार साधनो ने नही दिखाया ।

सन २००८ - संविधान सभा निर्वाचन सम्पन्न हुए । माओवादीयो ने वाई.सी.एल. नामक अपनी सशस्त्र टुकडी के बल पर अप्रत्याशित रुप से बहुमत से थोडी कम सीटे हासिल की । निर्वाचित संविधान सभा नें राजतन्त्र के औपचारीक समाप्ती की घोषणा करते हुए देशको संघीय लोकतान्त्रिक गणतन्त्र बनाने का घोषणा किया । राजा ज्ञानेन्द्र महल छोड नागार्जुन स्थित अपने निवास मे गए । राम वरण यादव देश के पहले राष्ट्रपति निर्वाचित हुए । प्रचण्ड नेपाल के प्रधानमन्त्री नियुक्त हुए ।

Monday, July 21, 2008

रामबरण यादव नेपाल के पहले राष्ट्रपति निर्वाचित

काठमांडौ 21 जुलाई । आज नेपाल की नव निर्वाचित सँविधान सभा ने डा. रामबरण यादव को बहुमत से देश का पहला राष्ट्रपति निर्वाचित किया । इसी प्रकार से श्री परमानन्द झा उप-राष्ट्रपति निर्वाचित किए गए है ।

राजा महेन्द्र के बाद के शाहवंशी राजाओ के समय मे नेपाल मे बहुसंख्यक मधेसीयो को दोयम दर्जे का नागरिक मानकर उनके साथ भेदभाव और उत्पीडन किया जाता था । एसे मे नेपाल मे मधेसी व्यक्तियो का राष्ट्रपति और उप- राष्ट्रपति निर्वाचित होना नए नेपाल की सृजना का संकेत देता है । मधेसी का अर्थ बिहार तथा उप्र की सिमा से सटे प्रदेश मे रहने वाले लोगो से है ।

राष्ट्रपति निर्वाचन मे नेपाल मे गणतंत्र के लिए लम्बी अवधि से संघर्षरत माओवादी उम्मेदवार राम राजा प्रसाद सिँह करीब 20 मत कम ला कर हार गए ।

Saturday, July 19, 2008

हिमवंत की शुरुवात

भारत-नेपाल के धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक सम्बन्धो के महत्व की अनुभुती रखने वाले बन्धुओ से आग्रह है की इस कार्य को आगे बढाने के लिए मुझे अपने अमुल्य सुझाव भेजे ।