Friday, October 17, 2008

क्या चर्च पर आक्रमण बन्द होने चाहिए ?

धर्म का एक मात्र उद्देश्य होता है। बेहतर विश्व बनाना और उच्चतर मानव निर्मित करना। भारतीय परम्पराओं मे धर्म को कभी सम्प्रदाय के रुप मे नही स्वीकारा गया। इसलिए हमारे धर्मिक शास्त्रो मे धर्म का कोई नाम नही दिया गया। वेद, पुराण और गीता मे कहीं भी "हिन्दु" शब्द का उल्लेख नही है। भारत मे धर्म का कोई संगठीत स्वरुप नही था। आत्मानुभुति से ही परम सत्य का साक्षात्कार हो सकता है ऐसी मान्यता रही है हमारी। हमारे यहां किसी व्यक्ति को ईश्वर-पुत्र या संवाददाता घोषित कर उसकी शरणागति से हीं मुक्ति मिलने जैसी बातो को कभी स्वीकार नही किया गया।

लेकिन जब धर्म एक सम्प्रदाय बना। जब इस दुनिया मे कुछ लोगो ने मिसिनरी लक्ष्य के साथ शासकों के सहयोग से धर्मांतरण कर अपने धर्मावलम्बियो की संख्या बढाने का काम शुरु किया तब धर्म सम्प्रदाय बन गया। इस अर्थ में ईसाइयत का प्रादुर्भाव विश्व के लिए सब से बडी दुर्घटना थी। जब ईसाईयत जैसे संगठीत धर्मो का आक्रमण सनातन एवं प्राक़ृतिक धर्मो पर होने लगा तो "हिन्दु" या "सनातन" धर्म जैसी शब्दावली प्रयोग मे आने लगी।

आज के विश्व मे जो शक्तिशाली राष्ट्र है वे चर्च के प्रभाव मे हैं। लेकिन उन देशो मे चर्च जाने वाले लोगो की संख्या दिन प्रतिदिन घट रही है। भारत, नेपाल, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, श्रीलंका, बंगलादेश जैसे देशो मे जहां गरीबी है वहां विदेशी धन से सेवा के नाम पर धर्मान्तरण करने का काम जोरो पर चल रहा है। इस धर्मांतरण का उद्देश्य बेहतर विश्व या उच्चतर मानव बनाना नही है, इनका उद्देश्य शक्तिशाली राष्ट्रो के हितो का पोषण करना भर है।

भारत मे वर्तमान शासन तंत्र के कारण चर्च खुद को शक्तिशाली समझने लगा और उसके गुर्गो ने कन्धमाल मे जनमाष्टमी के अवसर पर एक आश्रम पर आक्रमण कर स्वामी लक्ष्मानंद तथा उनके शिष्यो की हत्या कर दी। हालांकी सनातन धर्मावलम्बी बडे ही सहिष्णु एवं शांतीप्रिय होते है। लेकिन इस घटना ने सभी सनातन धर्मावलबीयो को उत्तेजित कर दिया। जिसके कारण भारत मे एकाध स्थानो पर छिटपुट घटनाओ मे चर्च पर आक्रमण भी हुए है। लेकिन मिडीया मे शक्तिशाली राष्ट्रो का बहुत बडा निवेश है। इस कारण मिडीया ने इन छोटी घटनाओ को बहुत बडे आक्रमण के रुप मे चित्रित कर हिन्दुओ पर संचार आक्रमण शुरु कर दिया है।

ऐसे मे हमे यह सोचना हीं होगा की हमे क्या रणनिती अपनानी है। हमे चर्चो के विरुद्ध हिंसा तो बन्द करनी चाहिए। लेकिन चर्च को अपने कुत्सित उद्देश्यो मे सफल न होने देने के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।

रुपये की हालत खराब

अमेरिका मुद्रा के तुलना में भारतीय रुपया लगातार गिर रहा है । कल, भारतीय रुपैया ४५ पैसा टुटकर प्रति डलर भा.रु. ४८/५३ पर बंद हुआ । व्यवहार में नेपाली रुपया भी भारतीय रुपये को आधार मान कर अन्य मुद्राओ से अपना अनुपात निश्चित करता है । इसलिए नेपाली रुपया का भी उसी अनुपात मे अवमुल्यन हुआ है । प्रति अमेरीकी डलर नेपाली रुपए का मुल्य आज ने.रु. ७८/७९ रहा । लेकिन बंगलादेश, पाकिस्तान तथा श्रीलंका मे अमेरीकी डलर का मुल्य पुर्व स्तर पर यथावत है । इसलिए भारत तथा नेपाल से इन देशो में हाने वाले निर्यात करीब २० प्रतिशत सस्ते हो जाएंगे । वैसे ही आयात २० प्रतिशत महंगें हो जाएंगें ।

दक्षिण एसिया की गरीबी में वैश्विक वित्तीय प्रणालीका बहुत बडा हाथ है । दक्षिण एसिया के देशों को यूरो के तर्ज पर समान मुद्रा बनाने पर विचार करना चाहिए ।

Friday, October 3, 2008

अर्थोपनिषद -३

नेपाली ओर भारतीय जनता कमाती है और जो पैसा बचत होता है उसे सोना मे लगा देती है। सोना पुरी तरह अउत्पादनशील निवेश है। सोना मे निवेश का सिधा लाभ मिलता है साम्राज्यबादी शक्तियो को । क्योकीं सोना के खादानो पर उनका ही कब्जा है। क्यो नही एंक बार हम फिर साने पर प्रतिबन्ध लगांए । सारा सोना बेच डाले लण्डन बालो कों । उससे हमे प्राप्त होंगी ढेर सारे पुंजी और हम लगा सकेंगे उद्योग और सृजन कर सकेंगे ढेर सारी रोजगारी।