Saturday, November 29, 2008

हेमंत करकरे की मौत का सत्य

हमारे यहां यह परम्परा रही है की मरने के बाद हम लोगों के गुण याद रखते हैं तथा अवगुणो को भुलने की कोशीश करते है । हेमंत करकरे को मिडिया देश का नायक और शहीद बनाने पर तुली हुइ है । लेकिन यह बात समझनी होगी कि किसी
अफसर के लिए एक निर्दोष साध्वी के उपर झुठा आतंकवादका आरोप लगाकर तङ्ग करना आसान होता है । लेकिन जब असली दहशतगर्द आतंकवादी से सामना होता है तब आपकी बहादुरी की असली परीक्षा होती है ।

एक और बात गौर करने लायक है की हेमंत करकरे की मौत आतंकवादीयों से लडते हुए नही हुइ थी । वह ठीक उसी तरह मरे जीस तरह मुर्म्बई में पौने दो सौ आम शहरी मरे थें । एक कार में घुमते वक्त आतंकीयों ने इन पर हमला किया था
तथा इन की कार कब्जे मे कर उसी मे बैंठ आतंकीयों ने सैकडो लागो को मौत के घाट उतारा था । हेमंत करकरे ने कोई बहादुरी नही दिखाई और बिलकुल आम आदमी की तरह आतंकीयो पर विना किसी जबाबी हमले किए मारे गए। क्या इन्हे बहादुर शहीद कहना उचित है।

मेजर उन्नीकृष्णन तथा हवलदार गजेन्द्र सिंह ने लडते लडते मां भारती की लाज बचाने के लिए मौत को अपने गले लिया था। उनके लिए मेरा दिल का रोआं रोआं कृतज्ञ है।

16 comments:

  1. सच यही है पर यहा ब्लोगजगत मे भी कुछ स्वनाम धन्य सेकुलर संप्रदाय के लोग इन्हे महिमामंडित करने और जो ना करे उसे गालिया बकने मे लगे है
    खुदा जाने इन घटिया चाटुकारो मोटी चमडी के टुच्चे सेकुलर संप्रदायिक लोगो से भारत देश मुक्त होगा अभी तो हम बस इनकी बुद्धी पर अफ़सोस ही कर सकते है

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  2. बिल्कुल सही कहा है आपने. फ़िर भी कुछ बातें हैं. जो एक बार में ग़लत साबित नही की जा सकती. हो सकता है करकरे जी ने अनजाने में ही गोली खा ली हो पर उनमें और निर्दोष २०० लोगों में एक बहुत बड़ा फर्क ये है कि और लोगों को पता ही नही था कि ये क्या हो रहा है कौन कर रहा है, पर करकरे सब जानते हुए भी मोर्चा लेने गए. इस बात को कोई नकार नही सकता कि जब आपको पता हो कि सामने से कभी भी मौत आ सकती है फ़िर भी पूरे जज्बे के साथ अपने दल का कोई नेतृत्व करने कि हिम्मत कर रहा है तो उसमें वाकई कुछ तो बात है.
    साध्वी प्रकरण को छोड़ कर करकरे जी के विरोध में शायद कोई और केस नही होगा. और रही साध्वी प्रकरण कि बात तो ये साफ़ समझ आ रहा है कि ATS को केवल सरकार अपनी रोटियां सकने को प्रयोग में ला रही है.
    एक बात और कहूँगा जिसपर आप भी कुछ लिखिए. जिन शहीदों ने शहादत पाई, उनको तुंरत हर सम्भव तरीके से सहायताओं कि घोषणा की जाने लगी और की भी जाना चाहिए, पर उनका क्या जो हर पल मौत से बस एक पल की दूरी पर रहे और पूरे ओपरेशन को सफल बनाया. क्या NSG के "जिन्दा बचे" जवान भी बराबरी से सुविधा पाने के अधिकारी नही हैं? या केवल जान देके ही उनको अपनी निष्ठा दिखाना पड़ेगी...

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  3. ज्यादातर फर्जी मुठभेड़ करने वालों का सामना असली मुठभेड़ से होता है तो वे बड़ी जल्दी गोली का शिकार बन जाते है |

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  4. saarey kaam chhod kar teen aalaa afsar jeep lae kar asptaal jaa rahey they apne ghyaal saathi ko daekhne , raastey mae maarey gaye
    ab duty par nahin they , kyun is ka jwaab kaun daega ??

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  5. जब सब कुछ मिडीया रेकर्डींग मे चल रहा था हेमंत करकरे को गोली लगने वाली घटना को कोई भी टीवी चैनल क्यो नही दिखा रहा है। पहले चैनलो ने कहा की वह हेल्मेट और बुलेट-प्रुफ जैकेट पहन कर आतंकीयो से दो-दो हात करने को तैयार थे। बाद मे पता चला की वह एक कार मे पीछे की शीट पर बैठे थे और आतंकीयो ने गोली चला कर उन सभी को मार दिया और शव को गाडी से खींच कर बहार कर गाडी ले कर शहर भर मे गोलीया चलाते निकल पडे। आखिर सही क्या है यह पता चले तो कुछ कहा जा सकता है। वैसे नरेन्द्र भाई और महाराष्ट्र सरकार और मिडीया हेमंत करकरे को हिरो बनाने के च्क्कर मे है - जबकी यह जानना बांकी है की वह हिरो थे या फिसड्डी।

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  6. गृह सचिव कह रहे थे की 183 मरे। आर.पाटील कह रहे थे की 4217 बचा लिए गए क्योकी वह 5000 को मारने आए थे। मै कहता हु की सिर्फ 15 मरे जो अपनी जान पर खेल कर भारत माता को आतंकीयो से मुक्त कराने के लिए जान निच्छावर कर दिए। हेमंत करकरे जैसे लोग तो पहले से मरे हुए थे, फिर मरने का सवाल हीं नही पैदा होता है।

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    1. Agar vo itne he bure the to or unko beimane he karna thi to vo row me the tab desh ki sicorty policy bech kar bhe to beimane kar sakte the tab kyu nhe kiya unhone esa.

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  7. यह कौन सी रणनीति थी की तीन तीन जिम्मेदार अफसर एक ही गाडी में आ गए -क्या यही समझे थे की एक और बिहारी सिरफिरा आ धमका है साले के भेजे में तीन तीन गोलियाँ उतारकर छुट्टी पा लेंगे ! तत्काल फल मिला ! दरसल ये बिचारे ऐसे फिदायीन हमले को लेकर तैयार नही थे और न ही ट्रेनड -उन्हें तो बस अपने राजनीतिक आकाओं को खुश कर देने के छोटे मोटे कारनामों को अंजाम देने की आदद थी -देश शर्मसार हुआ ! कृपया इसे भी देखें-
    http://mishraarvind.blogspot.com/

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    1. Kafi tark purn sawal h jiska jawab bewakoof media sayad pata laga nai sakto

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  8. आम आदमी का इतनी आसानी से मारा जाना समझा जा सकता है। किन्तु किरकिरे कि स्थिति अलग है- उन्हें ग़्यात था कि शहर में आतंकवादी घटना चल रही है; उन्हें इसका प्रशिक्षण दिया गया है (वे इसी की रोटी खाते थे; मेडिया उन्हें सर्वोत्कृष्ट शूटर कहता था)। ऐसे में मुल्ली-गाजर की तरह उनका मरने को 'शहादत' कहना वीरता के नाम पर धब्बा होगा।

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  9. मंबई कांड मे मरने वाले अधकारियों केा यह पता नही था कि हमलावर कौन हैं। उन्होंने सोचा होगा कि कोई बिहारी छोरा है, जिसे तुंरत काबू में कर लेंगे! मरने वाले अधिकारियों के एक गाडी में सफर करना इस बात को बताता है कि वह अपराधियों का मुकाबला करने नहीं, एक गाडी में बैठकर मौज मसती करने निकले हैं।

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  10. हेमंत करकरे की मौत पर आपकी सोच काफी सतही है। आप सोचते हैं कि करकरे एक आम आदमी की मौत मरे। क्या करकरे किसी फिल्म के सुनील शट्टी या सनी देओल टाइप हीरों थे ?अजीब मूर्खता है ? अरे भाई उनके उपर एक निश्चित जिम्मेदारी थी। उस जिम्मेदारी को निभाने के लिए वे बाहर निकले थे । नेताओं की तरह अपने घरों में नहीं बैठै थे। आप भी उस समय अपने घर में बैठै टीवी देख रहे थे । तो क्या आपको कायर कह दूं ? आम आदमी की तरह मारे जाने का मतलब यह नही होता कि किसी शख्स ने बहादुरी नहीं दिखाई । बहादुरी तो इसी बात में थी कि ऐसे अनिश्चित वक्त में वे बाहर निकले । क्या आपने कभी सोचा है कि करकरे का काम क्या था ? उनको कानून और व्यवस्था का जायजा लेना था न कि बंदूक लेकर लड़ना । दो देशों के बीच जब युद्ध होता है तो सेनाध्यक्ष बंदूक लेकर मैदान में नहीं जाता । वो अपने सैनिकों को निर्देश देता है ताकि वे अच्छी तरह से लड़ाई लड़ सकें । करकरे ने भी यही किया । बल्कि इससे भी कुछ ज्यादा किया । और फील्ड में गए । वे शहीद हुए थे ।

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  11. आपको कमिश्नर मुसर्रिफ का किताब "करकरे का कातिल कौन" पढ़ना चाहिए.....

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  12. हेँमत करकरे और गाँधी की हत्या मे समानता दिख रही है।जिसमे इज्रायल की मदद से भाङे के आतँकवादियोँ का इस्तेमाल हुआ।

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  13. हेँमत करकरे और गाँधी की हत्या मे समानता दिख रही है।इसमे इज्रायल की मदद से भाङे के आतँकवादियोँ का इस्तेमाल हुआ।

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  14. साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित को बचाने के लिये हेमंत करकरे की हत्या

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