मुम्बई हादसे ने सहसा स्तब्ध सा कर दिया -संवेदनाओं को झिझोड़ कर रख दिया -कुछ ना कर पाने के हताशाजन आक्रोश -पीडा ने गुमसुम और मौन सा कर दिया ! कुछ ऐसी ही स्थितियां कभी कभी मनुष्य में आत्मघाती प्रवृत्तियों को
उकसाती हैं -एक तरह के सेल्फ अग्रेसन के भाव को भी ! एक राष्ट्र के रूप में दक्षिण एसिया के राष्ट्र कितने नकारा हो गए हैं - चन्द आतंकवादी सारे सुरक्षा स्तरों को सहज ही पार कर हमारी प्रभुसत्ता पर सहसा टूट पड़ते है और हम जग हसाई के पात्र बन जाते हैं ! नेपाल मे भी देखे तो शक्ति सम्पन्न राष्ट्रो की मदत से देशद्रोही माओवादीयो ने राष्ट्र की सत्ता पर ही कब्जा
जमा लिया है।
क्या इतिहास ख़ुद को दुहरा रहा है ? क्या हम अपने अतीत से सबक नही ले पाये और आज तक काहिलियत ,अकर्मण्यता और बेपरवाह से बने हैं -एक समय था जब हमारी हिन्दु भुमियो को जब भी जिस विदेशी आक्रान्ता ने चाहा चन्द अरबी
घोडों पे सवार हो अपने छोटे से दल के साथ यहाँ पहुचा और हमारे स्वाभिमान को रौंद, लूट खसोट कर वापस लौट गया ! मुम्बई की घटना में कया कही कुछ अन्तर नजर आता है -हम आज भी वैसे ही असहाय नजर आए और सारी दुनिया हमारी
बेबसी को देखती रही ।
हिन्दुत्व कभी भी एक संगठीत धर्म नही रहा है। यह एक जीवन पद्धति और बहुलवादी विचारधारा रही है। इस्लाम की तरह कोई सर्वसतावादी विचारधारा का मार्ग हमने नही अपनाया। हम विचारो की विविधता, जातियो की विविधता और पुजा पद्धतियो की विविधता को हर्ष पुर्वक स्वीकार करते है। लेकिन इसलाम ने धर्म का प्रयोग साम्राज्यवादी औजार के रुप मे किया। हमारी भुमि का हमारा अपना भाई जिसने विगत मे किसी परिस्थीती के कारण या दवाबवश इस्लाम अपनाया उस की राष्ट्रीय आस्था भी बदल गई। वह अपनी इस पुर्वजो की भुमि से ज्यादा मोहब्बत अपने पैगम्बर की भुमि से करने लगा। वह हकिकत को भुल कर उस छलावे को सही मान बैठा। जब तक भारत और पाकिस्तान के मुसल्मान यह नही सम्झेगें की यह उनकी पुर्वजो की भुमि है और हम उनके अपने भाई है तब तक आतंकवाद की समस्या का समाधान नही है। या फिर हमे हिन्दुत्व को भी संगठीत धर्म बनाना होगा, लेकिन तब वह इस विश्व की एक बहुत हीं सुन्दर जीवन पद्धति का अंत होगा। दुर्घटना होगी।
हिन्दु-मुस्लमान मे मित्रता के लिए हमने क्या नही किया। मुसल्मानो ने अपने लिए अलग देश ले लिया फिर भी हम उन्हे अपनी भुमि पर रहने देते रहे की उनका हृदय परिवर्तन होगा। आज भी मुझे विश्वास है की वह हमे जरुर अपनाएंगें। दक्षिण एसिया मे स्थायी शांती के लिए क्या किया जा सकता है यह सोचना ही होगा।
(कुछ अंश अन्य ब्लग से साभार)
इतनी ऊँची इसकी चोटी कि सकल धरती का ताज यही। पर्वत-पहाड़ से भरी धरा पर केवल पर्वतराज यही। अंबर में सिर, पाताल चरण है । मन इसका गंगा का बचपन है। इस हिमालय की गोद मे बसा देश नेपाल । भारत और नेपाल के लोगो के बीच विशेष प्रकार के सम्बन्ध है । सरकारेँ या मिडिया इस विशेष प्रकार के रिश्ते को समझ पाने मे असमर्थ रही है । यह एक कोशिश है नेपाल की वास्तविकताओ को आप तक पहुँचाने की . . . . . . .
Monday, December 1, 2008
मुम्बई मे 4817 बचे है मुर्ख ...........
भारत के विशेष गृह सचिव एम.एल कुमावत कह रहे थे की 183 लोग मुम्बई के हमले मे मारे गए। दुसरी तरफ महाराष्ट्र के गृह मंत्री आर.आर.पाटिल कह रहे थे की 4817 लोग बचा लिए गए क्योकी वह 5000 को मारने के लिए आए थे। लेकिन
मै कहता हुं की सिर्फ 19 मरे जो अपनी जान न्योछावर कर दुश्मनो से लडते लडते भारत माता की रक्षा के लिए शहीद हो गए। मै अपनी गिनती मे हेमंत करकरे जैसे लोगो को नही लेता हुं क्योकी वे क्या मरेगे जो पहले से ही मरे हुए है। हेमंत करकरे को नरेन्द्र मोदी और भारत की मिडिया देश का नायक और शहीद बनाने पर तुली हुइ है।
किसी पुलिस अफसर के लिए एक निर्दोष साध्वी के उपर झुठा आतंकवाद का आरोप लगाकर प्रताडीत करना आसान होता है । लेकिन जब असली दहशतगर्द आतंकवादी से आमना-सामना होता है तब उसकी बहादुरी की असली परीक्षा होती है ।
प्राप्त जानकारीयों के अनुसार हेमंत करकरे की मौत आतंकवादीयों से लडते हुए नही हुइ थी। वह ठीक उसी तरह मरे जीस तरह मुर्म्बई में पौने दो सौ आम शहरी मरे थें । एक कार में वह अपने घायल साथी को देखने के लिए कामा हास्पीटल जा रहे थे। सम्भवतः वह उस वक्त ड्युटी पर भी नही थे क्योकी उनके पास न तो बुलेट-प्रुफ जैकेट थी ना ही बडा स्वचलित हतियार। संयोगवश आतंकीयों ने इन पर हमला किया और वह मारे गए। आतंकीयो ने हेमंत करकरे की लाश घसीट कर बाहर रखी और उसी कार मे बैंठ आतंकीयों ने सैकडो लागो को मौत के घाट उतारा था । हेमंत करकरे ने कोई बहादुरी नही दिखाई और बिलकुल आम आदमी की तरह आतंकीयो पर विना किसी जबाबी हमले किए मारे गए। टेलिवीजन ने हेल्मेट पहनते और बुलेटप्रुफ जैकेट पहनते जो हेमंत करकरे की तस्वीर दिखा रही है वह पहले की फाइल क्लीपींग है, हाल की मुम्बई घटना से उसका कोई लेना देना नही है। क्या इन्हे बहादुर शहीद कहना उचित है।
हमारे यहां यह परम्परा रही है की मरने के बाद हम लोगों के गुण याद रखते हैं तथा अवगुणो को भुलने की कोशीश करते है । इस नाते कोई हेमंत करकरे को शहीद कहे तो चलो ठीक है।
मेजर उन्नीकृष्णन तथा हवलदार गजेन्द्र सिंह जैसे वीरो ने लडते लडते मां भारती की लाज बचाने के लिए मौत को अपने गले लगा लिया था। उनके लिए मेरे जिस्म का रोआं रोआं कृतज्ञ है। मै मुंबई की आतंकी घटना मे शहीद हुए उन 19 बहादुर सिपाहियो के प्रति हार्दिक श्रद्धांजली अर्पित करता हुं।
मै कहता हुं की सिर्फ 19 मरे जो अपनी जान न्योछावर कर दुश्मनो से लडते लडते भारत माता की रक्षा के लिए शहीद हो गए। मै अपनी गिनती मे हेमंत करकरे जैसे लोगो को नही लेता हुं क्योकी वे क्या मरेगे जो पहले से ही मरे हुए है। हेमंत करकरे को नरेन्द्र मोदी और भारत की मिडिया देश का नायक और शहीद बनाने पर तुली हुइ है।
किसी पुलिस अफसर के लिए एक निर्दोष साध्वी के उपर झुठा आतंकवाद का आरोप लगाकर प्रताडीत करना आसान होता है । लेकिन जब असली दहशतगर्द आतंकवादी से आमना-सामना होता है तब उसकी बहादुरी की असली परीक्षा होती है ।
प्राप्त जानकारीयों के अनुसार हेमंत करकरे की मौत आतंकवादीयों से लडते हुए नही हुइ थी। वह ठीक उसी तरह मरे जीस तरह मुर्म्बई में पौने दो सौ आम शहरी मरे थें । एक कार में वह अपने घायल साथी को देखने के लिए कामा हास्पीटल जा रहे थे। सम्भवतः वह उस वक्त ड्युटी पर भी नही थे क्योकी उनके पास न तो बुलेट-प्रुफ जैकेट थी ना ही बडा स्वचलित हतियार। संयोगवश आतंकीयों ने इन पर हमला किया और वह मारे गए। आतंकीयो ने हेमंत करकरे की लाश घसीट कर बाहर रखी और उसी कार मे बैंठ आतंकीयों ने सैकडो लागो को मौत के घाट उतारा था । हेमंत करकरे ने कोई बहादुरी नही दिखाई और बिलकुल आम आदमी की तरह आतंकीयो पर विना किसी जबाबी हमले किए मारे गए। टेलिवीजन ने हेल्मेट पहनते और बुलेटप्रुफ जैकेट पहनते जो हेमंत करकरे की तस्वीर दिखा रही है वह पहले की फाइल क्लीपींग है, हाल की मुम्बई घटना से उसका कोई लेना देना नही है। क्या इन्हे बहादुर शहीद कहना उचित है।
हमारे यहां यह परम्परा रही है की मरने के बाद हम लोगों के गुण याद रखते हैं तथा अवगुणो को भुलने की कोशीश करते है । इस नाते कोई हेमंत करकरे को शहीद कहे तो चलो ठीक है।
मेजर उन्नीकृष्णन तथा हवलदार गजेन्द्र सिंह जैसे वीरो ने लडते लडते मां भारती की लाज बचाने के लिए मौत को अपने गले लगा लिया था। उनके लिए मेरे जिस्म का रोआं रोआं कृतज्ञ है। मै मुंबई की आतंकी घटना मे शहीद हुए उन 19 बहादुर सिपाहियो के प्रति हार्दिक श्रद्धांजली अर्पित करता हुं।
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