Monday, December 1, 2008

मुम्बई मे 4817 बचे है मुर्ख ...........

भारत के विशेष गृह सचिव एम.एल कुमावत कह रहे थे की 183 लोग मुम्बई के हमले मे मारे गए। दुसरी तरफ महाराष्ट्र के गृह मंत्री आर.आर.पाटिल कह रहे थे की 4817 लोग बचा लिए गए क्योकी वह 5000 को मारने के लिए आए थे। लेकिन
मै कहता हुं की सिर्फ 19 मरे जो अपनी जान न्योछावर कर दुश्मनो से लडते लडते भारत माता की रक्षा के लिए शहीद हो गए। मै अपनी गिनती मे हेमंत करकरे जैसे लोगो को नही लेता हुं क्योकी वे क्या मरेगे जो पहले से ही मरे हुए है। हेमंत करकरे को नरेन्द्र मोदी और भारत की मिडिया देश का नायक और शहीद बनाने पर तुली हुइ है।

किसी पुलिस अफसर के लिए एक निर्दोष साध्वी के उपर झुठा आतंकवाद का आरोप लगाकर प्रताडीत करना आसान होता है । लेकिन जब असली दहशतगर्द आतंकवादी से आमना-सामना होता है तब उसकी बहादुरी की असली परीक्षा होती है ।

प्राप्त जानकारीयों के अनुसार हेमंत करकरे की मौत आतंकवादीयों से लडते हुए नही हुइ थी। वह ठीक उसी तरह मरे जीस तरह मुर्म्बई में पौने दो सौ आम शहरी मरे थें । एक कार में वह अपने घायल साथी को देखने के लिए कामा हास्पीटल जा रहे थे। सम्भवतः वह उस वक्त ड्युटी पर भी नही थे क्योकी उनके पास न तो बुलेट-प्रुफ जैकेट थी ना ही बडा स्वचलित हतियार। संयोगवश आतंकीयों ने इन पर हमला किया और वह मारे गए। आतंकीयो ने हेमंत करकरे की लाश घसीट कर बाहर रखी और उसी कार मे बैंठ आतंकीयों ने सैकडो लागो को मौत के घाट उतारा था । हेमंत करकरे ने कोई बहादुरी नही दिखाई और बिलकुल आम आदमी की तरह आतंकीयो पर विना किसी जबाबी हमले किए मारे गए। टेलिवीजन ने हेल्मेट पहनते और बुलेटप्रुफ जैकेट पहनते जो हेमंत करकरे की तस्वीर दिखा रही है वह पहले की फाइल क्लीपींग है, हाल की मुम्बई घटना से उसका कोई लेना देना नही है। क्या इन्हे बहादुर शहीद कहना उचित है।

हमारे यहां यह परम्परा रही है की मरने के बाद हम लोगों के गुण याद रखते हैं तथा अवगुणो को भुलने की कोशीश करते है । इस नाते कोई हेमंत करकरे को शहीद कहे तो चलो ठीक है।

मेजर उन्नीकृष्णन तथा हवलदार गजेन्द्र सिंह जैसे वीरो ने लडते लडते मां भारती की लाज बचाने के लिए मौत को अपने गले लगा लिया था। उनके लिए मेरे जिस्म का रोआं रोआं कृतज्ञ है। मै मुंबई की आतंकी घटना मे शहीद हुए उन 19 बहादुर सिपाहियो के प्रति हार्दिक श्रद्धांजली अर्पित करता हुं।

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