Wednesday, August 27, 2008

नेपाल का भविष्य

राजा महेन्द्र के बाद से नेपाल मे भारत विरोधी खेमा दरबार के आवरण मे लिपटा रहता आया है । आज भी भारत के विरोध मे अगर कोई सबसे ज्यादा विष वमण करता है, वह या तो दरबार के निकट का व्यक्ति होता है या फिर माओवादी । लेकिन मुझे आश्चर्य होता है की ये राजावादी क्यो ईतना आउट अफ वे जा कर भारत का विरोध करने मे लगे रहते है । शायद ये ख़ुद को राष्ट्रवादी या राष्ट्रभक्त सिद्ध करने के लिए एसा करते है । या फिर भारत विरोधियो ने राजा को घेर रखा है ।

भारत मे राजीव गान्धी के शासन काल मे भारत और नेपाल के राजा के रिश्तो मे भारी खटास आई थी । उसी प्रकार सोनिया गान्धी के नेतृत्व वाली सरकार भारत मे सत्तासीन होने के बाद भारत ने अपनी "दो-खम्बा" निती को फिर से त्याग दिया है । क्या हिन्दु सम्राट होना ही नेपाल के राजा का दोष है ?

नेपाल मे आज जो हो रहा है उसे समझने के लिए विदेशी ताकतो – भारत, चीन, पाकिस्तान, अमेरिका, स्केंडेवीयन देशो के नेपाल मे रहे स्वार्थो को समझना होगा । उसी प्रकार माओवादी, दरबार (राजा और सेना), प्रजातांत्रिक दलो, वामपंथी (समाजवादी) दलो और मधेसी शक्तियो की निती और निष्ठाओ को भी समझना होगा । लेकिन लोग इतने मुखौटे लगाए हुए हैं की असल बात समझ मे नही आती ।
लेकिन हम अगर मुखौटो के अन्दर झांक सके तो चीजे बिल्कुल स्पष्ट समझ मे आ जाएगी । लेकिन हम इतने पुर्वाग्रहो से भरे है की असल चीजो को समझने की जगह हम अपने पुर्वाग्रहो से चीजो को देखना शुरु कर देते है । और फिर समझ पाना कठीन हो जाता है ।

जब नेपाल डुब रहा था तो प्रचण्ड चीन की बांसुरी बजा रहे थे

एक पुरानी कहावत है – "जब रोम जल रहा था तो निरो चैन की बांसुरी बजा रहा था" । अब इस कहावत को हमे भुल जाना चाहिए । क्योकी एक तो यह कहावत बहुत पुरानी हो चुकी है, और अब इस से अधिक सटीक और सान्दर्भिक उदाहरण हमारे पास मौजुद है । इस बार मियां प्रचण्ड जब नेपाल के प्रधानमंत्री बने तो उन्होने ईश्वर के नाम से सपथ न लेकर जनता के नाम से सपथ लिया । काम तो बडा अच्छा किया, लेकिन पता नही कहां चुक हो गई, जो दुसरे दिन हीं नपाल मे पिछले पचास वर्षो के रेकर्ड को तोडते हुए भीषण बाढ आ गई । प्रचण्ड ने भी आव देखा न ताव बाढ क्षेत्र का एक तुफानी दौरा कर के फुर्र से चीन की यात्रा पर उड चले । वहां प्रचण्ड ने ओलम्पिक के समापन समारोह का आनन्द लिया और फिर दो चार दिन घुमे, भोज पार्टीयो मे सरिक हुए और लोगों से मुलाकात कर वापस आ गए । अब निरो की मांनसिकता को समझने के लिए यह कहना ज्यादा बोधगम्य लगता है की – "जब नेपाल डुब रहा था तो प्रचण्ड चीन की बांसुरी बजा रहे थे" ।

वैसे प्रचण्ड ने चीन खिसक कर बडी होशियारी का काम किया है । कल मै एक उद्धार टोली के साथ बाढ स्थल पर पहुंचा था । हमारे साथ था ट्रक भर के खाने पीने का समान और कपडा लत्ता । लेकिन हम पिडितो तक पहुंच ही नही पाए । वहां की प्रहरी और प्रशासन तो अति विशिष्ट व्यक्तियो के आवाभगत मे व्यस्त था । हम उनके साथ बाढ प्रभावित क्षेत्रो मे खुद जा कर पिडीतो को सामाग्री देना चाहते थे । लेकिन उनकी प्राथमिकताए दुसरी थीं । लुटपाट के डर से बिना प्रहरी सुरक्षा के हमारा भित्री क्षेत्र में जाना असुरक्षित था । अंततः हमे सामाग्री वहीं पर बने दो उद्धार टेन्टो को सुपुर्द कर के लौट आना पडा । हमे पिडीतो की खुद सहायता कर पाने के आत्म संतोष से वंचित रह जाना पडा । तो अगर मिया प्रचण्ड चीन न जा कर नेपाल मे रह जाते तो हेलिकाप्टर से एक आध दौरे जरुर लगाते और परेशानिया घटने की बजाय बढ ही जाती । किसी ने ठीक ही कहा है की भगवान जो करता है ठीक ही करता है ।

Tuesday, August 26, 2008

हिमालय हमारे ऋषियों की तपोभूमि

हिमालय एक पर्वत शृंखला है यह शृंखला भुटान से शुरु हो कर नेपाल, तिब्बत, भारत, पाकिस्तान एवम अफगानिस्तान के तक फैली हुई है । यह अपनी ऊँची चोटियों के लिये प्रसिद्ध है। हिमालय संस्कृत के हिम तथा आलय से मिल कर बना है जिसका शब्दार्थ बर्फ का घर होता है। हिमालय भारतीय योगियों तथा ऋषियों की तपोभूमि रहा है । हिमालय मे कैलास पर्वत पर भगवान शिव का वास है ।

विश्व का सर्वोच्च शिखर माउंट एवरेस्ट हिमालय की ही एक चोटी है। एभरेष्ट नामाकरण भारत मे रहे एक अंग्रेज सर्भेयर जनरल के नाम पर सन 1865 मे किया गया था । नेपाली मे इसे सगरमाथा कहते है । तिब्ब्ती भाषा मे इसे चोमोलुङ्गमा (झो मो लाङमा) कहते है । समुन्द्र की सतह से इसकी उंचाई 29028 फिट है ।

आधुनिक विज्ञान के मान्यता अनुसार भारतीय भु-खड के निरन्तर उतर के तिब्ब्ती भु-खंड की तरफ खिसकने से कोई 600 लाख वर्ष पहले हिमालय पर्वत शृंखला का निर्माण हुआ था । वैज्ञानिक कहते है की यह भु-खंड आज भी खिसक रहा है जिसके कारण हिमालय पर्वत शृंखला की उंचाई निरंतर बढ रही है ।

Sunday, August 24, 2008

क्षेत्रिय विकास असंतुलन

भारत के तेजी से विकास के दावे किए जा रहे हैं । लेकिन विकास की परिभाषा विभिन्न लोगो के लिए पृथक पृथक हो सकती हैं । सोने की चम्मच मुंह मे ले कर जन्मे कुछ लोग के लिए भारत मे नित बन रहे नए नए हवाई अड्डे विकास के मील के पत्थर हो सकते है । लेकिन जो लोग धरातलिय यथार्थ पर रहते है उनके लिए विकास का अर्थ है सर्वांगिन विकास । संतुलित विकास ।

आप अगर सीमा पर नेपाल के बीरगंज नगर में जाते है तो आपको नजर आएगी चमचमाती सडके, पार्क और सडक पर बत्ती । लेकिन वहीं आप भारत के रक्सौल नगर मे जाएगें तो कीचड से सनी सडके, अनियंत्रित ट्राफिक और चारो ओर अव्यवस्था हीं अव्यवस्था । ये चीजे भारत की छवि को खराब करती हैं । भारत सरकार के अधिकारी क्यो नही सीमांत नगर रक्सौल को सुन्दर बनाने के लिए केन्द्रिय परियोजना के तहत काम शुरु करते हैं । बिहार की सरकार से कुछ अपेक्षा करना तो बेकार हीं होगा ।

ज्योतिष और क्रिकेट के टीवी प्रशारण पर प्रतिबन्ध लगे

भारतीय न्युज चैनलो को देखने पर लगता है की भारतीय जनता अपने जीवन का 25% हिस्सा ज्योतिष और क्रिकेट जैसी अनावश्यक विषयो मे गंवा देती है । ये दोनो रोग अब नेपाल को भी संक्रमित करते जा रहे है । फलित ज्योतिष के टीवी प्रसारण पर तुरंत रोक लगनी चाहिए ।

क्रिकेट को फैलाने में गोरे बिलायती और भारत के काले बिलायती हाथ धो कर पीछे पडे है । इसकी जगह अन्य स्वदेशी खेलो को ज्यादा प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है जो युवाओ को अच्छा स्वास्थ्य और अनुशासित बना सकें ।

Friday, August 22, 2008

नेपाल-भारत सीमा पर तबाही – मेघा पाटकर सवालो के कटघरे में

नेपाल भारत सीमा के पास पश्चिमी कुसाहा तटबन्ध के टुट जाने से नेपाल और भारत मे भीषण तबाही हुई है । नेपाल के सुनसरी जिले और बिहार के सुपौल, सहरसा, अररिया, किशनगंज, कटिहार और खगडीया जिले मे जान-माल की भारी क्षति हुई है । हजारो लोग बह गए है, बेघर हो गए है – प्रलय की सी स्थिती बन गई है ।

नेपाल मे भारत-विरोधी मिडिया तर्क-कुतर्क के सहारे भारत को दोषी सिद्ध करने की असफल कोशिस कर रहा है । दुसरी तरफ नेपाल स्थित भारतीय दुतावास अंग्रेजी मे विज्ञप्तियां जारी कर न जाने क्या गिटिर-पिटीर कर रहा है । समाज का सभ्रांत वर्ग बाढ पिडीतों के लिए सहायता जुटाने मे जुट गया है । लेकिन मै आज सवालो के कटघरे मे खडा करना चाह्ता हुं भारत के मेघा पाटकर और नेपाल के छदम राष्ट्रवादियो कों । जिनकी वजह से भारत-नेपाल के बीच जल संशाधनो के व्यवस्थापन मे कठिनाईया आती रहती है ।


जब श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी की सरकार ने बाढ की समस्या से निजात पाने और जल यातायात की संभावनाओ को कार्यरुप देने के लिए नदीयों को जोडने की बात शुरु की तो मेघा पाटकर नेपाल मे लोगो को भारत की योजना के विरुद्ध भडकाने के लिए नेपाल पहुंच गई । साम्राज्यवादी शक्तियो के दलाल जो दक्षिण एसिया को गरीब देखना चाहते है, वह भारत-नेपाल के बीच जल संशाधनो के उपयोग के लिए कोई भी सम्झौता होने पहले ही उसकी राह मे रोडे अटकाने के ले मिडिया दुष्प्रचार शुरु कर देते है । दोनो देश के कमजोर राजनेता जनता की बीच खडे हो कर सही को सही सिद्ध करने मे असफल हो जाते है । और नतिजा यह होता है की कोई काम नही होता है ।

कोशी नदी के बारे मे कहा जाता है की वह घडी के पेण्डुलम की तरह हर वर्ष अपना पथ बदलती रहती है । ईस क्षेत्र मे मानव बस्तियां घनी हो चली है, जो तबाही का कारण बनता है । एसे मे कोई विशेषज्ञो की मदत से कोई योजना तो बनाना ही होगा, जिसमे जो निवेष होगा उसके एवज मे प्रयाप्त आर्थिक लाभ भी निवेषकर्ता के लिए सुनिश्चित किया जाना चाहिए ।

आज जो हजारो लोग बेघर हुए है, जान-माल की क्षति हुई है उसके लिए भारत मे मेघा पाटकर और नेपाल मे छद्म राष्ट्रवादी हीं जिम्मेवार हैं । मेघा पाटकर जैसे लोग अपने कामो के एवज मे विदेशो से धन प्राप्त करते है, और दुसरी तरफ नेपाल के छद्म राष्ट्रवादी भारत विरोध शुरु कर खुद को राष्ट्रवादी सिद्ध कर अपनी निरंकुश सत्ता को टिकाना चाह्ते हैं ।

Thursday, August 21, 2008

स्वदेशी की परिभाषा माओवादी की नजर में

चंद रोज पहले नेपाल के पहले उपराष्ट्रपति महामहिम परमानन्द झा ने जब धोती कुर्ता पहन कर सपथ ग्रहण किया तो माओवादीयो ने सारे देश में बहुत बबाल खडा किया कि उपराष्ट्रपति ने विदेशी भेषभुसा मे क्यो सपथ लिया ।

लेकिन जब माओवादी नेता पुष्प कमल दाहाल (प्रचण्ड) प्रधानमन्त्री पद की सपथ लेने के लिए सुट कोट र्टाई मे सजधज कर पहुचे तो लोग देखते ही रह गए । हैरानी होती है इनके सोच के दिवालिएपन पर जो धोती कुर्ताको विदेशी कह कर तिरस्कार करते है, लेकिन कोट-र्टाई-सुट को अपनाते है ।

नेपाल की यह परम्परा रही है की जब भी कोई प्रधानमन्त्री बनता है तो अपनी पहली विदेश यात्रा बडे भाई भारत की करता है । लेकिन प्रचण्ड ने अपनी पहली विदेश यात्रा में चीन जाने का निर्णय लिया है । नेपाल में माओवादीओं को सत्ता के उत्कर्ष पर पहुचाने में भारत की सप्रग एंव वामपंथी सरकार का बहुत बडा योगदान है । अब भुगतें । जो बोएगे वही तो काटेगें ।

Sunday, August 17, 2008

नेपाल में भारतीय स्वतंत्रता दिवस

भारत कें ६१ वें स्वतन्त्रता दिवस के अवसर पर भारत सरकारद्वारा नेपाल के विभिन्न भाग में अवस्थित अस्पताल, परोपकारी संस्थाओं, शैक्षिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओ को लगभग ३ करोड मुल्य की तीस एम्बुलेन्स, आठ बसें और बडे परिमाण में शैक्षिक सामाग्रीओ का बितरण किया गया है । काठमाण्डौ स्थित भारतीय राजदुतावास तथा वीरगंज स्थित महाबाणिज्य दुतावास द्वारा आयोजित कार्यक्रमो में १५ अगस्त के दिन आयोजित कार्यक्रम में इन्हे हस्तांतरित किया गया है ।

भारत पिछले १५ बर्षो में नेपाल में २०० से अधिक एम्बुलेन्स बितरण कर चुका है । नेपाल के विकास में भारत गहरी अभिरुची लेता है तथा अस्पताल, विद्यालय, सडक आदि के निर्माण मे नेपाल को भरपुर सहयोग देता है ।

प्रचण्ड प्रधानमन्त्री बने

पुष्प कमल दहाल "प्रचण्ड" नेपाल के नए प्रधानमंत्री निर्वाचित हो गए है । नेपाल में ३ महिने पहले हुए संविधान सभा निर्वाचन पश्चात सहमति के आधार पर राष्ट्रिय सरकार बनाने की कोशिश असफल होने के बाद बहुमतीय आधार पर संविधान सभा ने १५ अगस्त २००८ के दिन उन्हे प्रधानमन्त्री निर्वाचित किया । प्रचण्ड के पक्ष में ४९४ तथा विपक्ष में ११३ मत पडे ।

नेपाल की शासन व्यवस्था अस्थिरता से भरी रही है । चलिए पिछले 60 बर्षो पर एक नजर डालते है ।


सन १९५० - शाह वंशीय राजा प्रभावहीन हो चले थें । शासन की बागडोर राणा वंशीय प्रधानमन्त्री के हाथ में रहती थी । राजा त्रिभुवन ने जन-विद्रोह एवं भारत की मद्दत से राणा शासन व्यवस्था का अंत कर बहुदलीय प्रजातान्त्रिक व्यवस्था स्थापित की ।

सन १९५१ - नेपाली कांग्रेस पार्टी विश्वेश्वर प्रसाद कोईराला नेपाल के पहले निर्वाचित प्रधानमन्त्री बने ।


सन १९६० - राजा महेन्द्र ने सैनिक तंत्र की सहयता से निर्वाचित प्रधानमन्त्री अपदस्थ कर सत्ता अपने हाथों मे ले ली । पंचायती प्रजातन्त्र लागू किया जिससे सत्ता की बागडोर राजा के हाथो में बनी रहती थी ।

सन १०७९ - राजतन्त्र के विरुद्ध हुए आन्दोलन के बाद राजा विरेन्द्र ने जनमत संगह्र की घोषणा की । लेकिन जनमत संग्रह के नतिजे अप्रत्याशित रुपसे बहुदलिय प्रजातन्त्र के विरुद्ध घोषित हुए । जनमत संग्रह से राजतन्त्र फिर से मजबुत हुआ ।

सन १९८९ - राजतन्त्र के विरुद्ध सभी दलो ने संयुक्त आन्दोलन किया जिसके कारणराजा विरेन्द्रको बहुदलिय प्रजातन्त्र की घोषणा करनी पडी । नेपाली कांग्रेस के कृष्णा प्रसाद भट्टराई अन्तरीम प्रधानमन्त्री बने । देश में बहुदलिय प्रजातन्त्र के साथ आलंकरिक राजतन्त्र की व्यवस्था स्थापित हुई । लेकिन राजा सेना प्रमुख बने रहे ।

सन १९९४ - नेपाल में भूमिगत रहते हुए माओवादीयो नें जनयुद्ध शुरु किया । दश बर्षो में करीब २०,००० लोग मारे गए, र्सार्वजनिक संरचनाओ को ध्वस्त किया गया । संसदिय चुनाव सम्पन्न नही करवाए जा सकें ।

सन २००३ - संसदीय चूनाव न होने के कारण उत्पन्न संवैधानिक संकटको दर्शाते हुए राजा ज्ञानेन्द्र ने सत्ता फिर अपने हाथ में ले ली । निर्वाचित संसदको भंग किया ।

सन २००५ - माओवादी तथा अन्य प्रजातान्त्रिक दलों ने दिल्ली बैठक में १२ प्वाईन्ट सम्झौता किया और नेपाल में संयुक्त जन-आन्दोलन शुरु किया गया । इस सम्झौते में भारत सरकार की अप्रत्यक्ष भूमिका रही ।

सन २००६- जन-आन्दोलन के दबाव मे राजा ज्ञानेन्द्र को गिरिजा प्रसाद कोईरालाको प्रधानमन्त्री पद और सम्पर्ण् कार्यकारी अधिकार देना एवं संसद पूनर्स्थापनाको स्वीकार करना पडा ।

सन २००६ - संसद में बडी संख्या मे माओवादीओ को सीधे प्रवेश दिया गया । संसद ने वगैर बहस किए हिन्दु राष्ट्र समाप्त कर धर्म निरपेक्षता की घोषणा किया । इस घोषणा के विरुद्ध हुए प्रदर्शनो और आन्दोलन को संचार साधनो ने नही दिखाया ।

सन २००८ - संविधान सभा निर्वाचन सम्पन्न हुए । माओवादीयो ने वाई.सी.एल. नामक अपनी सशस्त्र टुकडी के बल पर अप्रत्याशित रुप से बहुमत से थोडी कम सीटे हासिल की । निर्वाचित संविधान सभा नें राजतन्त्र के औपचारीक समाप्ती की घोषणा करते हुए देशको संघीय लोकतान्त्रिक गणतन्त्र बनाने का घोषणा किया । राजा ज्ञानेन्द्र महल छोड नागार्जुन स्थित अपने निवास मे गए । राम वरण यादव देश के पहले राष्ट्रपति निर्वाचित हुए । प्रचण्ड नेपाल के प्रधानमन्त्री नियुक्त हुए ।