Tuesday, September 30, 2008

अर्थोपनिषद २ (मनमोहन ने नेहरु को दफनाया)

नेहरु जी ने भारत को कई एतिहासिक समस्याएं दी है। लेकिन स्वदेशी उद्योगों को संरक्षण दे कर देश को आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढानेका काम भी नेहरु जी ने बखुबी किया था। लेकिन बैश्विकरण के लुभावने लफजबाजी से मनमोहन सिहं ने नेहरु जी को दफना दिया है। वेस्टन, ओनिडा, टेक्साला आदि ब्राण्डो से बिक्ने बाले भारतीय टेलिवीजन लुप्त हो चुके है । जगह ले लिया है कोरिया जैसे छोटे से देश की कम्पनीयो सामसुन्ग और एलजी (लक्की गोल्डस्टार) ने। भारत मे करोडो. मोबाइल उपभोक्ता है, लेकिन एक भी कम्पनी स्वदेशी मोबाइल सेट या उपकरण नही बनाती है। जबकी चीन की जेडटीइ ओर हुवावैइ से माल लेकर रिलायन्स ओर टाटा वाले ठप्पा भर लगते है ।

ये कैसा ग्लोवीकरण है, भारतीय धन बिदेशों मे जा रहा है विलासितापुर्ण तकनिकी उत्पादनो के लिए । विना आयात शुल्क संरक्षण के कोई भी स्वदेशी कम्पनी मुकाबला नही कर सकती धुरंधर विदेशी कम्पनीयो का। लेकिन मनमोहन की नजर मे तो स्वदेशी विदेशी एक हीं है ।

Tuesday, September 23, 2008

माओवादीयो द्वारा हिन्दू परम्परा बाधित

काठमाडौं में प्राचिनकाल से दशहरा के पहले इन्द्र भगवान की यात्रा निकाल्ने की परम्परा चली आ रही थी । इस अवसर पर नेपाल के राजा - कुमारी, भैरव और गणेश भगवान के मन्दिर में टिका ग्रहण करते थे । यह परम्परा जनता में आरोग्य सदभाव और समृद्धी प्रदान करने वाली मानी जाती है ।

माओवादीयो के सत्ता में आने के बाद वैज्ञानिकता और मितव्ययिता के नाम पर इन कार्यक्रमों के लिए बजेट आवटन रोक दिया गया । जिसके कारण पुरे काठमाडौं शहर में तनाव फैल गया है । लेकिन अन्ततः माओवादी अर्थमंत्री बाबुराम भट्टर्राई को झुकना पडा और पुर्ववत तरीके से इन परम्पराओं की निर्वहन की स्वीकृति देनी पडी ।

लेकिन विरोध और तनाव के कारण रथ निर्माण के लिए तय किया गया शुक्रबार साय ७:२५ बजे का मुहर्त गुजर गया । राष्ट्राध्यक्ष भी टिका ग्रहण के लिए नही आ पाए । पुलिस ने श्रद्धालुओ पर जम कर लाठी चार्ज किया तथा अश्रु गैस दागे । धर्म जागरण मंच (नेपाल) तथा विश्व हिन्दु महासंघ ने माओवादीयों के व्यवहार के प्रति विरोध और खेद प्रकट किया है ।

धर्म-संस्कृति से जुडी हुई परम्पराओं की भी एक वैज्ञानीकता होती है । लेकिन मार्क्स-माओ की नजर से ही दुनिया को देखने वाले ये र्सवसत्तावादी इन बातो को कैसे समझ सकते है?

Monday, September 22, 2008

नेपाल-भारत जनसम्बन्ध गोष्ठी

वीरगंज (नेपाल) २१ सितम्बर २००८ । नेपाल-भारत सीमा पर आवस्थित नगर वीरगंज में सामाजिक अध्ययन तथा जनसञ्चार केन्द्र ने "नेपाल भारत जनसम्बन्ध" विषयक गोष्ठी एवं अन्तरसम्वाद कार्यक्रम का आयोजन किया । कार्यक्रम में भारत-नेपाल के राजनेता, नागरिक समाज एवं पत्रकारो की उपस्थिती थी । इस अवसर पर निकले निश्कर्षो को साझा घोषणा-पत्र के रुप मे जारी किया गया । घोषणा-पत्र का पुर्ण पाठ निम्नानुसार है :

नेपाल-भारत के बीच प्राचिनकाल से ही अत्यन्त घनिष्ठ तथा मैत्रीपुर्णॅ सम्बन्ध रहे है । विभिन्न काल खण्डो में राजनैतिक परिस्थितियों के कारण दोनो देशों के शासकों के सम्बन्धों में उतार-चढाव आते रहे है, लेकिन दोनो देशों के जन-सम्बन्ध अटूट ही बने रहें । हमारे सम्बन्धों की कडिया हमारी साझा संस्कृति, भाषा, इतिहास और भूगोल से जुडी हुइ हैं । भविष्य में दोनो देशों के जन-सम्बन्ध को अधिक प्रगाढ और मैत्रीपुर्ण बनाने के लिए हम निम्न लिखित विन्दुओं पर्रर् इमानदारी पुर्वक सार्थक प्रयास करने का संकल्प करते हैं ।

१) जल संसाधन एंवं विधुत के क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग एवं विश्वास बढा कर बाढ-नियन्त्रण की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।

२) नेपाल-भारत तथा दक्षिण एसिया (सार्क) क्षेत्र के सभी देशों के बीच क्षेत्रीय व्यापार सम्झौते की लागू किया जाए जिससे आर्थिक विकास की दौड में कोई भी देश पीछे न रह जाए । सार्क क्षेत्र के व्यापार को अन्य देशों के व्यापार की तुलना में प्राथमिकता दी जाए ।

३) नेपाल से तीर्थ यात्रियो के लिए गया, काशी, प्रयाग तथा अजमेर शरीफ जाने के लिए रक्सौल से सीधी रेल सेवा शुरु की जाए।

४) सीमा के आर-पार से होने वाले अपराध नियन्त्रण के लिए उच्चस्तरीय कार्यकुशल साझा सयन्त्र बनाया जाए ।

५) सीमा के सम्बन्ध में जो भी विवाद है उनको मैत्री एवं सदभावपुर्वक शीघ्र हल किया जाए । इस सम्बन्ध मे एक दुसरे को उतेजित करने वाले बयानबाजी एवं गतिविधी को रोकी जाए ।

६) सीमा क्षेत्र में तस्करी को रोका जाए तथा वैद्य व्यापार को बढावा दिया जाए । लेकिन सीमा पर व्यक्तिगत उपभोग के लिए सामान-वस्तुओ के आदान-प्रदान को बेरोकटोक आने जाने दिया जाए ।

७) नेपाल-भारत सीमा के दोनो ओर के शहरो को मोडल सीमांत नगर के रुप में विकसित किया जाए तथा सरकारें इसके लिए आवश्यक धनराशि आवंटित करें ।

८) देवनागरी लिपि के कम्प्यूटर प्रयोग को बढाने के लिए भारत तथा नेपाल संयुक्त रुप से विकास एवं मानकीकरण का प्रयास करे।

९) दोनों देशो के मैत्रीपुर्ण सम्बन्धों को बिगाडने के लिए हो रही अतिवादी सोच और पीत पत्रकारिता को हतोत्साहित किया जाए ।

१०) सीमा पर तैनाथ दोनो देशों के भंसार एवं सुरक्षाकर्मियो को दोनो देश के विशेष सम्बन्ध के बारे में प्रशिक्षित किया जाए तथा सुमधुर व्यवहार करने के लिए उत्प्रेरित किया जाए ।

११) सीमा क्षेत्र के स्थानीय समास्यायो के निराकरण के लिए जन-सम्बन्ध पर आधारित मैत्रीपुर्णॅ संगठन बने ।

१२) चेली बेटी बेच बिखन की समस्या को रोकने के लिए विशेष कानुनी एवं प्रशासनिक व्यवस्था की जाए । इसके बारे में जनजागरण भी किया जाए ।

१३) भारत में प्रयोग हो रही उन्नत कृषि प्रविधी की जानकारी सीमा क्षेत्र के नेपाली कृषक को उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाए ।

१४) पडोसी की सुरक्षा संवेदनशीलता को ध्यान में रखकर ही. सरकारें विदेशी एजेन्सीयों को सीमा क्षेत्र मे काम करने की अनुमति दे ।

१५) साहित्यिक विकास एवम सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए सीमा क्षेत्र में एक समिति बनाई जाए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता केन्द्र के अध्यक्ष पवन तिवारी ने तथा सञ्चालन श्री रितेश त्रिपाठी ने किया । कार्यक्रम में सीमा जागरण मञ्च के डा. अनिल कुमार सिन्हा तथा गोलोक विहारी भी उपस्थित थें । नेपाल के कृषि तथा सहकारी मन्त्री श्री जयप्रकाश गुप्ता प्रमुख अतिथी थें । कार्यक्रम में सभासद अजय द्विवेदी, करिमा बेगम, जीतेन्द्र सोनल, आत्माराम साह, वंशीधर मिश्र भी मौजुद थें । नेपाल हिन्दी साहित्य परिषद कि संरक्षक दीप नारायण मिश्र, डा. रामवतार खेतान, गणेश लाठ, गोपाल अश्क, राजद नेता रामबावु यादव, राजद नेता फैसल रहमान एवं बजरंगी ठाकुर ने भी अपने विचार रखें ।

Wednesday, September 17, 2008

नेपाल से वनस्पती घी के आयात पर रोक लगे

भारत द्वारा नेपाल के उत्पादनो को आयात कर मुक्त भारत प्रवेश का छुट दिया गया है । लेकिन नेपाल इस सुविधा का लाभ उठा कर स्वदेशी कच्चे माल पर आधारित उद्योग लगाने की बजाए, विदेशी कच्चे माल से समान तयार कर भारत भेज रहा है ।

मलेशिया से पाम आयल आयात कर के शुन्य आयात शुल्क पर भारत भेजने का धंधा नेपाल के जोरो पर चल रहा है । इस प्रकार नेपाल के मार्फत् मलेसियाई पाम आयाल को भारत मे शुन्य आयात शुल्क पर भारत प्रवेश मिल रहा है । इस निती के कारण एक तरफ भारत की मलेसिया पर कुटनैतिक पकड कमजोर हो रही है, जिस की मार मलेसिया मे भारतीयो को झेलनी पड रही है । दुसरी तरफ भारत के तेलहन उत्पादन करने वाले किसान एवं उद्योगो को भी मार झेलनी पड रही है ।

नेपाल भारत सिमा पर शंकराचार्य द्वार



कांची कामकोटी पीठ के शंकराचार्य के नेपाल प्रवेश के अवसर पर नेपाल-भारत सिमा पर निर्मित शंकराचार्य द्वार को नेपाल का प्रवेश-द्वार माना जाता है। कलात्मक ढंग से निर्मित इस प्रवेश-द्वार को नेपाल प्रवेश करते समय देखने पर मन श्रद्धा से भर जाता है। यह प्रवेश-द्वार नेपाल एवम भारत के सांस्कृतिक एवं धार्मिक सम्बन्धो का प्रतिक है। बर्तमान भारत सरकार, नेपाल एवम भारत के सम्बन्धो में धार्मिक महत्व की अनदेखी करता रही है। नेपाल मे अवस्थित अनेकानेक धार्मिक स्थानो का हिन्दु एवम बौद्ध परम्पराओं मे विशेष महत्व है।

Monday, September 15, 2008

भारत-नेपाल सिमा पर एस.एस.बी की कडाई

भारत-नेपाल की सिमा ऐसी है कि अगर आप सिमा पार करे तो आप को एहसास हीं नही होगा कि आप अंतराष्ट्रिय सिमा पार कर रहे है । भारत-नेपाल के बीच खुल कर अनाधिकृत व्यापार भी होता आया है । दोनो तरफ की पुलिस इस प्रकार के व्यापार के लिए तस्करो से सहयोग ले उनको लाईन देती रही है । ईस अवैध कारोबार मे सिमा पर दोनो तरफ अवस्थित स्थानिय गावों के लोग संलग्न रहते है । लेकिन हाल के दिनो मे भारत-नेपाल सिमा पर भारत की और तैनात एस.एस.बी लोगो के साथ बेहद कडाई के साथ पेश आ रही है । पकडे जाने पर उनकी ऐसी पिटाई होती है की वह कई दिन तक बिस्तर से उठने के काबिल नही रहते ।


भारत नेपाल के बीच खुली सिमा दोनो देशो के लोगो मे अति मित्रतापुर्ण सम्बन्धो के लिए वरदान साबित हुआ है । लेकिन इस का फायदा उठा कर आतंकवादी नेपाल के रास्ते भारत प्रवेश करने और जाली नोटो का कारोबार फैलाते रहे है । इस कारण सिमा पर चौकसी बढाना दोनो देशो के हित मे है । लेकिन सिमा के दोनो और रहने वाले ग्रामीणो के साथ भारतीय और नेपाली सुरक्षाबल सुमधुर एवम शिष्ट व्यवहार करें यह भी जरुरी है।

Sunday, September 14, 2008

प्रचण्ड भारत यात्रा पर

नेपाल के माओवादी नेता तथा प्रधानमंत्री प्रचण्ड आज भारत के दौरे के लिए नई दिल्ली रवाना हो गए। 92 सदस्यीय टोली मे अनेक मंत्री, सरकारी अधिकारी एवम निजी क्षेत्र के लोग उनके साथ शामिल है।

भारत और नेपाल के बीच हुई 1950 की सन्धी को खारेज करने के लिए प्रचण्ड लगातार बयानबाजी करते रहे है। भारत ने भी ईस सम्बन्ध मे किसी भी किसिम के पुनर्विचार के लिए तैयार होने की बात दोहराता रहा है। लेकिन 1950 की सन्धी से नेपाल को अनेक लाभ भी है। देखना है की प्रचण्ड प्रधानमंत्री के रुप मे जब जिम्मेवारीपुर्वक बोलने का अवसर आया है तो कुछ कहते है या चुप लगा जाते है। वैसे भारत की गलत विदेश नितियो के चलते नेपाल मे विदेशी छद्म निवेष से संचालित मिडीया इन दिनो प्रबल रुप से भारत का विरोध कर रहा है। नेपाल से भारत को आपुर्ति के लिए जल विद्युत बनाने की प्रचुर सम्भावनाए है, जिसके क्रियान्वयण से नेपाल की आर्थिक अवस्था मे अत्याधिक सकारात्मक प्रभाव पड सकता है। इस काम को गति देने की मांग भी नेपाल मे लोग कर रहे है। देखे प्रचण्ड भारत को मोओवादीयो के प्रति कितना आश्वस्त कर पाते है।

प्रचण्ड भारत मे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, सोनिया गान्धी एवम विपक्षी दल के नेता से मिलेंगें।

Tuesday, September 9, 2008

अर्थोपनिषद - १

आज विकास की परिभाषा है, ज्यादा से ज्यादा समान उत्पादन करना और ज्यादा से ज्यादा उपभोग करना । पश्चिमी देश या हमारे देश के शहरी लोग जो ज्यादा समान प्रयोग करते है उन्हे हम विकसित मानते है । मेरे दादा अपने समय में करीब ५० वस्तुए और सेवाओं का प्रयोग करते थें । उनमें से अधिकांश स्वदेशी होती थी । इतना ही नही अधिक वस्तुए तो अपने गांव के आसपास ही उत्पादित होती थी । आज मेरे यूग के लोग हजारो प्रकार की वस्तुए और सेवाओं का उपभोग कर रहे हैं, और वह भी अधिकांश विदेशीयों द्वारा उत्पादित हैं ।

एक जमाना था जब घर के पिछवाडे एक तुलसी का पौधा होता था । खांसी हुइ तो काढा पिया और स्वस्थ्य हो गए । अब हजारों प्रकार के रंगबिरंगे कफ सिरफ बजार में उपलब्ध है आपको ठीक करने के लिए । इस उपभोक्तावाद की दौड मे हम प्राकृतिक साधनो का भी आवश्यकता से अधिक दोहन कर रहे हैं, जो पर्यावरण के लिए खतरनाक सावित हो सक्ती है ।

एक किसान जो धान पैदा कर के १० रुपये में बेच रहा है, उसके जीवन यापन और इनपूट की लागत ही उससे ज्यादा है । दुसरी और १०० ग्राम का मोबाईल फोन जिसकी इनपूट लागत मुश्किल से २०० रुपये है, वह १०००० में खरिदते है हमलोग । तकनीकी सामान में मुल्य अभिवृद्धि सैकडो गुणा ज्यादा है, उसका सीधा लाभ सम्राज्यवादी देशों को प्राप्त हो रहा है ।

हम ऐसा विकास कर रहै है, जिसमें विलासिता के तकनीकी सामानो के लिए हमारे पैसे तकनिकी रुप से विकसित मुलुक लुट रहे है । कल तक स्वदेशी रेल से काम चलता था । अब विदेशी मशीन और इन्धन से चलने वाले हवाई यातायात को बढावा मिल रहा है । कल तक स्वदेशी विधुत मिलती थी । अब विदेशी मशीन और विदेशी इन्धन से उत्पादित बिजली का उपभोग करेंगे हम । यस कैसा विकास है । क्या हम अमेरिका और बिलायत के आर्थिक उपनिवेष बन चुके है।

Friday, September 5, 2008

साउदी अरेबिया और मलेसिया मे नेपालियो की मौतें

विगत 15 वर्षो से नेपाल मे चल रहे माओवादी विद्रोह ने देश को तोड कर रख दिया है। अतिवादी ट्रेड-युनियनवाद और दंडहिनता के कारण नए रोजगारी की सृजना यहां बिल्कुल ठप्प पड गई है। परम्परागत रुप से यहां के लोग भारत जा कर सेना, उद्योग या फिर चौकिदारी का हीं काम कर लिया करते थे। लेकिन खाडी के देशों, मलेशिया और कोरिया मे कामदारो की बढती मांग ने नेपालियो को भी आकर्षित किया है ।

बडी संख्या मे नेपाल से लोग खाडी के देशो, मलेसिया और कोरिया जा रहे है रोजगारी के लिए । लेकिन 55 डिग्री तापक्रम मे खराब खानपान और जैविक आवश्यकताओं से वंचित रहना उन्हे कमजोर बना देता है । हरेक महिने करिब 50/55 नेपाली काम के दौरान साउदी अरेबिया और मलेशिया मे स्वर्ग सिधार रहे है । वहां से आने वाले प्लेनों मे जिन्दे लोग के साथ रोज 1-2 शव भी आ रहे हैं ।

नेपाल के विदेश मंत्रालय के तथ्यांको से पता चलता है की पचास प्रतिशत मौतें तो साउदी अरेबिया जाने युवाओ की हो रही है। मलेसिया दुसरे नम्बर पर है। ईतना हीं नही मृतको को दिए जाने वाले क्षतिपुर्ति मे भी भारी भेद-भाव है। अगर मृतक मुसलमान है तो अधिक क्षतिपुर्ति प्राप्त होती है और हिन्दु है तो नगण्य मात्रा मे क्षतिपुर्ति मिलती है ।

विकास के लिए दक्षिण एसिया मे शांति आवश्यक

कुछेक साम्राज्यवादी शक्तियां हैं जो दक्षिण एसिया मे अशांति एवम कलह का वातावरण बना कर रखना चाहती है । लेकिन जब तक भारत, नेपाल, श्रीलंका, बंगलादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बर्मा, भुटान आदि देश आर्थिक रुप से एक संघ मे परिवर्तित नही होते तब तक किसी के लिए आर्थिक रुप से उन्नति कर पाना सम्भव नही दिखता ।

दक्षिण एसिया मे कलह और द्वन्द पैदा करने के लिए सतत रुप से साम्रज्यवादी शक्तियो के दलाल क्रियाशील रहते है । दक्षिण एसिया एक राष्ट्र के रुप मे फिर से एकिकरण हो सके इस बात की सम्भावना नही दिखती है । लेकिन युरोपियन युनियन के तर्ज पर आर्थिक संघ की परिकल्पना साकार की जा सकती है जो इस क्षेत्र को गरिबी और अभाव से मुक्ति दिला सकता है । सदस्य देशो मे मुक्त व्यापार की अवधारणा के साथ साफ्टा के नाम से एक कोशिश चल रही है । लेकिन इस कोशिश मे सदस्य देश ईमान्दार नही दिख पडते है ।

दक्षिण एसिया मे शांति के लिए हिन्दुओ और मुसलमानो के बीच भी एकता अपरिहार्य है । हिन्दुओ और मुस्लिमो के बीच खाईयो को पाटने का काम बेहद कठिन है । क्योकी अगर मुसलमान और हिन्दु न लडे तो फिर भारत मे कांग्रेस पार्टी की राजनिती हीं साफ हो जानी है ।

Tuesday, September 2, 2008

कैलास पर्वत पर शिव की जटा मे समायी है गंगा




Artist : Atul Sharma


हिमालय संस्कृत के हिम तथा आलय से मिल कर बना है जिसका शब्दार्थ बर्फ का घर होता है। हिमालय भारतीय योगियों तथा ऋषियों की तपोभूमि रहा है । हिमालय मे कैलास पर्वत पर भगवान शिव का वास है । भगवान शिव अपनी जटा में गंगा को धारण किए हुए हैं । सदियों पहले से पुराणो मे वर्णित ये प्रतिक आज के विज्ञान के तथ्यो से कितना साम्य रखते हैं ।

हिमालय पर हिमनद अपने मे अथाह पानी को धारण किए हुए हैं । किसी हिमनद के फुटने से वह अथाह जलराशी प्रलयंकारी रुप से बह निकलेगी । इतना ही नही, अगर हिमालय की आधी बर्फ भी पिघल जाए तो समुन्द्र की सतह कई हजार फिट उपर हो जाएगी और बंगलादेश जैसे निचले भुखंड जलमग्न हो जाएंगे ।

हमारे वेद पुराणो मे वर्णित तथ्य हमे वातावरण और पर्यावरण की जांनकारी हीं नही देते, अपितु उनके महत्व को भी बताते हैं । जरुरत है उन प्रतिको को समझने की । अगर हम श्रद्धा रखेंगे तो यह प्रतिक खुद-ब-खुद अपने अर्थ प्रकाशित कर देंगे । कोशी का कहर वास्तव मे शिव का कोप है । हम अपने पर्यावरण के साथ खिलवाड करेगे तो ऐसे कोप सहने ही पडेगे ।

शिवलिंग पर हम जल चढाते है । शिवलिंग को शीतल रखने का प्रयास करते है । क्या यह प्रतिक रुप से हमे ग्लोबल वार्मिंग की और संकेत कर रहा है ? ग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए हमे क्या करना है, यह महत्वपुर्ण प्रश्न है ?

जल संशाधन को नेपाल और बिहार का वरदान सिद्ध करने का संकल्प लेना होगा आज

जल संशाधन हमारे लिए वरदान है, लेकिन आज यह अभिशाप बना हुआ है । कौन है दोषी इसके लिए ? जब भी जल संशाधनो के व्यवस्थापन की बात चलती है, नेपाल के छद्म राष्ट्रवादी और भारत मे मेघा पाटकर सरीखे लोग विरोध शुरु कर देते है । भारत में अटल जी के समय बाढ की समस्या से छुटकारा पाने के लिए नदीयों को जोडने की बात चली थी तो मेघा पाटकर नेपाल पहुंच गई और लोगो को भारत की योजना के विरुद्ध भडकाने लगी । नेपाल मे भारत जब भी तटबन्ध निर्माण या मरम्मत की कोशिश करता है तो नेपाल मे भारत विरोधी ईसे नेपाल की राष्ट्रिय अस्मिता से जोड कर अंनर्गल दुष्प्रचार शुरु कर देते है ।

नेपाल मे भारत द्वारा तटबन्ध के मरम्मत मे अडचन एवम असहयोग भी प्रमुख कारक रहा है तराई की इस त्रासदी के लिए । नेपाल मे तटबन्धो मे पत्थरो को बांधने वाले गैबिन वायर (तार) तक चुरा लिए गए थे । नेपाल सरकार तटबन्धो की सुरक्षा के प्रति गम्भीर नही थी । तटबन्ध के टुटने के कई कारणो मे पत्थरो को बांधने वाले तारो की चोरी भी प्रमुख कारण है ।

जो भी हो, कोशी के इस कहर से सब को सबक लेना जरुरी है । भारत और नेपाल के बीच जल सन्धि को मजबुत किया जाना चाहिए । जल संशाधनो के विकास मे अविश्वास के वातावरण को समाप्त किया जाना चाहिए । नेपाल के नव निर्वाचित प्रधानमंत्री प्रचण्ड ने बिना सोचे समझे कोशी नदी के सम्झौते को एतिहासिक भुल तक कह डाला, एसे बयानो से अविश्वास बढेगा यो दोनो देशो के लिए प्रत्युपादक है ।

काठमांडौ मे भारत के राजदुत हर महिने नेपाल के प्रधानमंत्री से मिलते थे, लेकिन कोशी के तटबन्ध की सुरक्षा उनकी प्राथमिकता मे नही होती थी । वे तो महारानी सोनिया को खुश करने के लिए प्रधानमंत्री को ईस बात के लिए मनाते है की हिन्दु राष्ट्र समाप्त कर धर्म निर्पेक्ष बनाया जाए नेपाल को । नेपाल मे भारत के राजनयिको को राजनैतिक गतिविधियो की बजाए जन सरोकार के विषयों मे अधिक ध्यान केन्द्रित करना चाहिए ।

Monday, September 1, 2008

चाईनिज मतलब घटिया माल

ओलम्पिक में पदक तालिका में सबसे उपर रहा चीन । वहीं लगभग उतनी हीं आवादी वाला भारत बडी कठिनाई से अपनी उपस्थिती मात्र दर्ज करा पाया । क्या यह चीन के महाशक्ति बनने और भारत के फिसड्डी बन जाने का संकेत है ।

जब जर्मनी एकीकरण नही हुआ था तो वामपंथी राह पर चलने वाला पश्चिमी जर्मनी पदक तालिका में उपर रहता था । रुस भी कट्टर वामपंथी शासन व्यवस्था में अच्छे पदक प्राप्त करता था । क्या यह सिद्द करता है की तानाशाही में अच्छे खिलाडी बनते है ?

खेल से अलग चीनीया माल की बात करे तो वह तो घटिया का पर्यायवाची बनता जा रहा है । अगर सामान चाइनिज है तो क्वालिटी घटीया हीं होगी ।