Sunday, December 23, 2012

पारद से सोना बन रहा है


आवर्त सारणी (Periodic Table) रासायनिक तत्वों को उनकी आणविक विशेषताओं के आधार पर एक सारणी (Table) के रूप में दर्शाने की एक व्यवस्था है। वर्तमान आवर्त सारणी में  ११७ ज्ञात  तत्व (Elements) सम्मिलित हैं। रूसी रसायन-शास्त्री  मेन्देलेयेव ने करीब १४३ साल पहले अर्थात सन 1869 में आवर्त सारणी प्रस्तुत किया। उस सारणी में उसके बाद भी कई परिमार्जन भी हुए. आज उस सारणी का जो  स्वरूप है उसके अनुसार ७९ वें पायदान पर सोना (गोल्ड) है तथा ८० वे पायदान पर पारद (मर्करी) है.  यह सारणी तत्वों के आणविक गुणों के आधार पर तैयार की गई है. किस तत्व में कितने प्रोटोन है तथा उसका वजन (mass) कितना है आदि शुक्ष्म विश्लेषण के आधार पर १४३ वर्ष पहले यह सारणी तैयार की गई थी. 

लेकिन भारत में हजारों साल पहले ग्रंथो में लिखा मिलता है की पारद से सोना बनाया जा सकता है. इस आधार पर हमें मानना होगा की हमारे ऋषियों को किसी भिन्न आयाम से तत्वो की आणविक संरचना ज्ञात थी. एसा माना जाता है की नालंदा के गुरु रसायन-शास्त्री नागार्जुन को पारद से  सोने बनाने की विधी ज्ञात थी. लेकिन वह ज्ञान हमारे बीच से लुप्त हो गया है.

आधुनिक रसायन शास्त्र भी मानता है की पारद को सोने में परिवर्तित किया जा सकता है. आणविक त्वरक (Atomic Acceletor) या आणविक भट्टी (Nuclear Reactor) की मदत से पारद के अनु में से कुछ प्रोटोन घटा दिए जाए तो वह सोने में परिवर्तित हो जाएगा. यह प्रविधी महंगी है लेकिन संभव है यह आधुनिक रसायन शास्त्र भी मानता आया है.

विकसित मुलुक पारद को सोने में परिवर्तित करने की सस्ती प्रविधी पर निरंतर शोध करते आए है. क्या चीन तथा अमेरिका आदि विकसित मुलुको ने कृत्रिम रूप से सोना बनाने की सस्ती प्रविधी खोज ली है. पिछले दिनों जिस रफ़्तार से सोने के भावों में तेजी लाई गई उससे इस आशंका को बल मिलता है.

विश्व में सोने की सबसे ज्यादा खपत भारत में है. सोना अपने आप में अनुत्पादनशील निवेश है. अमेरिकी सिर्फ आभूषण के लिए सोना खरीद सकते है. अमेरिकी कानून के तहत निवेश के लिए स्थूल रूप (बिस्कुट या चक्की) के रूप में सोना रखना गैर-कानूनी है.

एक अमीर मुलुक ने सोने के निवेश पर बन्देज लगा रखा है लेकिन भारत में लोगो की सोने की भूख बढती जा रही है. लोग अपनी गाढ़ी कमाई को सोने में परिवर्तित कर रहे है. आज भारत एक ग्राम भी सोना उत्पादन नहीं करता लेकिन विश्व का सबसे बड़ा खरीददार बना हुआ है.

जिस दिन कृत्रिम स्वर्ण बनाने की प्रविधी का राज खुलेगा उस दिन सोना मिट्टी हो जाएगा. हमारी सरकार स्वर्ण पर रोक क्यों नहीं लगाती? हमारे स्वर्ण-पागलपन को ठीक करने के लिए समाज सुधारक क्यों नहीं आंदोलन करते है?

हमारे पास पूंजी के अभाव में स्कुल नहीं है, सडके नहीं है, ट्रेने नहीं है. हमारी पूंजी सोने में फंसी है. जिस दिन वह पूंजी मुक्त होगी हम फिर से सोने की चिड़िया बन जाएगे. 

Saturday, June 2, 2012

स्वर्ण रखना महापाप


श्री प्राप्ति के लिए शास्त्र एवं परम्पराओं के अनुकुल आचरण करना आवश्यक है। आर्यावर्त (जम्बुद्धीप) या कहे आज का दक्षिण एसिया इसलिए कंगाल है क्यो कि हम शास्त्रों के निर्देशो का पालन नही कर रहे है। हमारे यहाँ अमीर भी कंगाल जैसा हीं है। अगर हम सामुहिक रुप से शास्त्रो के निर्देशों के अनुकुल आचरण करें तो कोई कारण नही की हमारा देश समृद्ध एवं सुखी नही बन सकता। शास्त्रों में यह बात बहुत स्पष्ट रुप से कही गई है कि स्वर्ण मे कलि का वास होता है। कलि दुषित है एवं सत्य के विपरीत भी है। अतः अपने पास स्वर्ण रखना शास्त्र के प्रतिकुल है।


हिरण्यकश्यप का अर्थ सोने का राक्षस होता है। अगर कोई व्यक्ति अपने पास एक रती भी सोना रखता है तो उसे गो-हत्या के आघे का पाप चढता है। अगर आप व्यक्तिगत एवं राष्ट्रिय समृद्धि चाहते है तो अविलम्ब अपने पास रखे स्वर्ण एवं उससे बने आभुषण आदि बेच डाले। बेच कर प्राप्त होने बाले धन का निवेश रोजगार, उद्योग, शेयर अथवा स्वदेशी बैंक में करें। यही मुक्ति का मार्ग है यही स्वराज्य का रास्ता भी .

Wednesday, June 22, 2011

पुरी पीठाधीस जगदगुरु शंकराचार्य का नेपाल मे भब्य स्वागत

नेपाल के सीमावर्ती नगर बीरगंज मे पुरी पीठाधीस जगदगुरु
शंकराचार्य के आगमन से लोगो मे बडा उत्साह है. अपने दो
दिनो के प्रवास मे उन्होने कई महत्वपुर्ण संकेत दिए. भारत
नेपाल के सम्मलित दुश्मन के विरुद्ध व्युह रचना का सुत्र
भी दिया. नेपाल मे राम राज्य और जनक राज्य स्थापना
करने की बात भी उन्होने कहा. हिन्दु समाज को व्यक्तिगत
स्वार्थो से उठ कर वर्गीय हित के लिए काम करने का उन्होने
आव्हान किया.

भारत की सीमाओ की रक्षा का श्रेय देने योग्य व्यक्तियों मे
इतिहास से किसी एक व्यक्ति का चयन करना हो तो
वह व्यक्ति निश्चित रुपेण आदि शंकराचार्य ही होगे.
उस गौरवशाली परम्परा के उतराधिकारी होने के
नाते नेपाल के प्रति उनकी चिंता को गंभीरता से लिया
जाना चाहिए.

युपीए सरकार की गलत विदेश नीति के कारण नेपाल के
लोगो मे भारत के प्रति नाराजगी है. लेकिन शंकराचार्य
के प्रति लोगो ने बडा सम्मान और आस्था दिखाया.

Monday, February 8, 2010

स्वर्ण रखना महापाप

श्री प्राप्ति के लिए शास्त्र एवं परम्पराओं के अनुकुल आचरण करना आवश्यक है। आर्यावर्त (जम्बुद्धीप) या कहे आज का दक्षिण एसिया इसलिए कंगाल है क्यो कि हम शास्त्रों के निर्देशो का पालन नही कर रहे है। हमारे यहाँ अमीर भी कंगाल जैसा हीं है। अगर हम सामुहिक रुप से शास्त्रो के निर्देशों के अनुकुल आचरण करें तो कोई कारण नही की हमारा देश समृद्ध एवं सुखी नही बन सकता। शास्त्रों में यह बात बहुत स्पष्ट रुप से कही गई है कि स्वर्ण मे कलि का वास होता है। कलि दुषित है एवं सत्य के विपरीत भी है। अतः अपने पास स्वर्ण रखना शास्त्र के प्रतिकुल है।

हिरण्यकश्यप का अर्थ सोने का राक्षस होता है। अगर कोई व्यक्ति अपने पास एक रती भी सोना रखता है तो उसे गो-हत्या के आघे का पाप चढता है। अगर आप व्यक्तिगत एवं राष्ट्रिय समृद्धि चाहते है तो अविलम्ब अपने पास रखे स्वर्ण एवं उससे बने आभुषण आदि बेच डाले। बेच कर प्राप्त होने बाले धन का निवेश रोजगार, उद्योग, शेयर अथवा स्वदेशी बैंक में करें। यही मुक्ति का मार्ग है यही स्वराज्य का रास्ता भी है।

Monday, December 1, 2008

दक्षिण एसिया मे आतंकवाद का समाधान नही चाहते है शक्ति सम्पन्न राष्ट्र

मुम्बई हादसे ने सहसा स्तब्ध सा कर दिया -संवेदनाओं को झिझोड़ कर रख दिया -कुछ ना कर पाने के हताशाजन आक्रोश -पीडा ने गुमसुम और मौन सा कर दिया ! कुछ ऐसी ही स्थितियां कभी कभी मनुष्य में आत्मघाती प्रवृत्तियों को
उकसाती हैं -एक तरह के सेल्फ अग्रेसन के भाव को भी ! एक राष्ट्र के रूप में दक्षिण एसिया के राष्ट्र कितने नकारा हो गए हैं - चन्द आतंकवादी सारे सुरक्षा स्तरों को सहज ही पार कर हमारी प्रभुसत्ता पर सहसा टूट पड़ते है और हम जग हसाई के पात्र बन जाते हैं ! नेपाल मे भी देखे तो शक्ति सम्पन्न राष्ट्रो की मदत से देशद्रोही माओवादीयो ने राष्ट्र की सत्ता पर ही कब्जा
जमा लिया है।

क्या इतिहास ख़ुद को दुहरा रहा है ? क्या हम अपने अतीत से सबक नही ले पाये और आज तक काहिलियत ,अकर्मण्यता और बेपरवाह से बने हैं -एक समय था जब हमारी हिन्दु भुमियो को जब भी जिस विदेशी आक्रान्ता ने चाहा चन्द अरबी
घोडों पे सवार हो अपने छोटे से दल के साथ यहाँ पहुचा और हमारे स्वाभिमान को रौंद, लूट खसोट कर वापस लौट गया ! मुम्बई की घटना में कया कही कुछ अन्तर नजर आता है -हम आज भी वैसे ही असहाय नजर आए और सारी दुनिया हमारी
बेबसी को देखती रही ।

हिन्दुत्व कभी भी एक संगठीत धर्म नही रहा है। यह एक जीवन पद्धति और बहुलवादी विचारधारा रही है। इस्लाम की तरह कोई सर्वसतावादी विचारधारा का मार्ग हमने नही अपनाया। हम विचारो की विविधता, जातियो की विविधता और पुजा पद्धतियो की विविधता को हर्ष पुर्वक स्वीकार करते है। लेकिन इसलाम ने धर्म का प्रयोग साम्राज्यवादी औजार के रुप मे किया। हमारी भुमि का हमारा अपना भाई जिसने विगत मे किसी परिस्थीती के कारण या दवाबवश इस्लाम अपनाया उस की राष्ट्रीय आस्था भी बदल गई। वह अपनी इस पुर्वजो की भुमि से ज्यादा मोहब्बत अपने पैगम्बर की भुमि से करने लगा। वह हकिकत को भुल कर उस छलावे को सही मान बैठा। जब तक भारत और पाकिस्तान के मुसल्मान यह नही सम्झेगें की यह उनकी पुर्वजो की भुमि है और हम उनके अपने भाई है तब तक आतंकवाद की समस्या का समाधान नही है। या फिर हमे हिन्दुत्व को भी संगठीत धर्म बनाना होगा, लेकिन तब वह इस विश्व की एक बहुत हीं सुन्दर जीवन पद्धति का अंत होगा। दुर्घटना होगी।

हिन्दु-मुस्लमान मे मित्रता के लिए हमने क्या नही किया। मुसल्मानो ने अपने लिए अलग देश ले लिया फिर भी हम उन्हे अपनी भुमि पर रहने देते रहे की उनका हृदय परिवर्तन होगा। आज भी मुझे विश्वास है की वह हमे जरुर अपनाएंगें। दक्षिण एसिया मे स्थायी शांती के लिए क्या किया जा सकता है यह सोचना ही होगा।

(कुछ अंश अन्य ब्लग से साभार)

मुम्बई मे 4817 बचे है मुर्ख ...........

भारत के विशेष गृह सचिव एम.एल कुमावत कह रहे थे की 183 लोग मुम्बई के हमले मे मारे गए। दुसरी तरफ महाराष्ट्र के गृह मंत्री आर.आर.पाटिल कह रहे थे की 4817 लोग बचा लिए गए क्योकी वह 5000 को मारने के लिए आए थे। लेकिन
मै कहता हुं की सिर्फ 19 मरे जो अपनी जान न्योछावर कर दुश्मनो से लडते लडते भारत माता की रक्षा के लिए शहीद हो गए। मै अपनी गिनती मे हेमंत करकरे जैसे लोगो को नही लेता हुं क्योकी वे क्या मरेगे जो पहले से ही मरे हुए है। हेमंत करकरे को नरेन्द्र मोदी और भारत की मिडिया देश का नायक और शहीद बनाने पर तुली हुइ है।

किसी पुलिस अफसर के लिए एक निर्दोष साध्वी के उपर झुठा आतंकवाद का आरोप लगाकर प्रताडीत करना आसान होता है । लेकिन जब असली दहशतगर्द आतंकवादी से आमना-सामना होता है तब उसकी बहादुरी की असली परीक्षा होती है ।

प्राप्त जानकारीयों के अनुसार हेमंत करकरे की मौत आतंकवादीयों से लडते हुए नही हुइ थी। वह ठीक उसी तरह मरे जीस तरह मुर्म्बई में पौने दो सौ आम शहरी मरे थें । एक कार में वह अपने घायल साथी को देखने के लिए कामा हास्पीटल जा रहे थे। सम्भवतः वह उस वक्त ड्युटी पर भी नही थे क्योकी उनके पास न तो बुलेट-प्रुफ जैकेट थी ना ही बडा स्वचलित हतियार। संयोगवश आतंकीयों ने इन पर हमला किया और वह मारे गए। आतंकीयो ने हेमंत करकरे की लाश घसीट कर बाहर रखी और उसी कार मे बैंठ आतंकीयों ने सैकडो लागो को मौत के घाट उतारा था । हेमंत करकरे ने कोई बहादुरी नही दिखाई और बिलकुल आम आदमी की तरह आतंकीयो पर विना किसी जबाबी हमले किए मारे गए। टेलिवीजन ने हेल्मेट पहनते और बुलेटप्रुफ जैकेट पहनते जो हेमंत करकरे की तस्वीर दिखा रही है वह पहले की फाइल क्लीपींग है, हाल की मुम्बई घटना से उसका कोई लेना देना नही है। क्या इन्हे बहादुर शहीद कहना उचित है।

हमारे यहां यह परम्परा रही है की मरने के बाद हम लोगों के गुण याद रखते हैं तथा अवगुणो को भुलने की कोशीश करते है । इस नाते कोई हेमंत करकरे को शहीद कहे तो चलो ठीक है।

मेजर उन्नीकृष्णन तथा हवलदार गजेन्द्र सिंह जैसे वीरो ने लडते लडते मां भारती की लाज बचाने के लिए मौत को अपने गले लगा लिया था। उनके लिए मेरे जिस्म का रोआं रोआं कृतज्ञ है। मै मुंबई की आतंकी घटना मे शहीद हुए उन 19 बहादुर सिपाहियो के प्रति हार्दिक श्रद्धांजली अर्पित करता हुं।

Saturday, November 29, 2008

हेमंत करकरे की मौत का सत्य

हमारे यहां यह परम्परा रही है की मरने के बाद हम लोगों के गुण याद रखते हैं तथा अवगुणो को भुलने की कोशीश करते है । हेमंत करकरे को मिडिया देश का नायक और शहीद बनाने पर तुली हुइ है । लेकिन यह बात समझनी होगी कि किसी
अफसर के लिए एक निर्दोष साध्वी के उपर झुठा आतंकवादका आरोप लगाकर तङ्ग करना आसान होता है । लेकिन जब असली दहशतगर्द आतंकवादी से सामना होता है तब आपकी बहादुरी की असली परीक्षा होती है ।

एक और बात गौर करने लायक है की हेमंत करकरे की मौत आतंकवादीयों से लडते हुए नही हुइ थी । वह ठीक उसी तरह मरे जीस तरह मुर्म्बई में पौने दो सौ आम शहरी मरे थें । एक कार में घुमते वक्त आतंकीयों ने इन पर हमला किया था
तथा इन की कार कब्जे मे कर उसी मे बैंठ आतंकीयों ने सैकडो लागो को मौत के घाट उतारा था । हेमंत करकरे ने कोई बहादुरी नही दिखाई और बिलकुल आम आदमी की तरह आतंकीयो पर विना किसी जबाबी हमले किए मारे गए। क्या इन्हे बहादुर शहीद कहना उचित है।

मेजर उन्नीकृष्णन तथा हवलदार गजेन्द्र सिंह ने लडते लडते मां भारती की लाज बचाने के लिए मौत को अपने गले लिया था। उनके लिए मेरा दिल का रोआं रोआं कृतज्ञ है।