Wednesday, August 27, 2008

जब नेपाल डुब रहा था तो प्रचण्ड चीन की बांसुरी बजा रहे थे

एक पुरानी कहावत है – "जब रोम जल रहा था तो निरो चैन की बांसुरी बजा रहा था" । अब इस कहावत को हमे भुल जाना चाहिए । क्योकी एक तो यह कहावत बहुत पुरानी हो चुकी है, और अब इस से अधिक सटीक और सान्दर्भिक उदाहरण हमारे पास मौजुद है । इस बार मियां प्रचण्ड जब नेपाल के प्रधानमंत्री बने तो उन्होने ईश्वर के नाम से सपथ न लेकर जनता के नाम से सपथ लिया । काम तो बडा अच्छा किया, लेकिन पता नही कहां चुक हो गई, जो दुसरे दिन हीं नपाल मे पिछले पचास वर्षो के रेकर्ड को तोडते हुए भीषण बाढ आ गई । प्रचण्ड ने भी आव देखा न ताव बाढ क्षेत्र का एक तुफानी दौरा कर के फुर्र से चीन की यात्रा पर उड चले । वहां प्रचण्ड ने ओलम्पिक के समापन समारोह का आनन्द लिया और फिर दो चार दिन घुमे, भोज पार्टीयो मे सरिक हुए और लोगों से मुलाकात कर वापस आ गए । अब निरो की मांनसिकता को समझने के लिए यह कहना ज्यादा बोधगम्य लगता है की – "जब नेपाल डुब रहा था तो प्रचण्ड चीन की बांसुरी बजा रहे थे" ।

वैसे प्रचण्ड ने चीन खिसक कर बडी होशियारी का काम किया है । कल मै एक उद्धार टोली के साथ बाढ स्थल पर पहुंचा था । हमारे साथ था ट्रक भर के खाने पीने का समान और कपडा लत्ता । लेकिन हम पिडितो तक पहुंच ही नही पाए । वहां की प्रहरी और प्रशासन तो अति विशिष्ट व्यक्तियो के आवाभगत मे व्यस्त था । हम उनके साथ बाढ प्रभावित क्षेत्रो मे खुद जा कर पिडीतो को सामाग्री देना चाहते थे । लेकिन उनकी प्राथमिकताए दुसरी थीं । लुटपाट के डर से बिना प्रहरी सुरक्षा के हमारा भित्री क्षेत्र में जाना असुरक्षित था । अंततः हमे सामाग्री वहीं पर बने दो उद्धार टेन्टो को सुपुर्द कर के लौट आना पडा । हमे पिडीतो की खुद सहायता कर पाने के आत्म संतोष से वंचित रह जाना पडा । तो अगर मिया प्रचण्ड चीन न जा कर नेपाल मे रह जाते तो हेलिकाप्टर से एक आध दौरे जरुर लगाते और परेशानिया घटने की बजाय बढ ही जाती । किसी ने ठीक ही कहा है की भगवान जो करता है ठीक ही करता है ।

7 comments:

Udan Tashtari said...

भगवान जो करता है ठीक ही करता है..

Asha Joglekar said...

Aapne nepal ke yatharth ko batate batate Bharat ka yatharth bhee bayan kar diya.

Anonymous said...

(प्र) चंडू की तुगलकशाही में नेपाल का हाल कहीं बर्मा जैसा न हो जाए.

राज भाटिय़ा said...

अजी,हम क्या कहे , हमारे यहाम भी तो इस के बाप बेठे हे..
धन्यवाद

Anonymous said...

छविलाल उर्फ पुष्पकमल उर्फ प्रचण्ड ने चीन से वापस आते हीं भारत को रिझाने के लिए यह ऐलान किया की मेरी पहली औपचारिक विदेश यात्रा भारत की हीं होगी । दक्षिण एसिया मे भारत के महत्व को भुलाने की भुल कोई भी नही कर सकता है । लेकिन भारत की सत्ता मे बैठे लोग हीं जब अपने पडोसियो को अमेरिका या बिलायत के चश्मे से देखना शुरु कर दे तो फिर भगवान हीं मालिक है । भवतु सब्ब मंगलम !!!

Smart Indian said...

एक उगता हुआ तानाशाह तो तानाशाही के जंगल को ही अपना आदर्श मानेगा. दो जनतंत्रों की मैत्री स्वाभाविक होती है मगर तानाशाह सिर्फ़ बन्दूक और दमन की भाषा जानते हैं. जो भी हो, नेपाल में बैठकर कोई भी भारात के प्रति पूर्ण अँधा अभिनय नहीं कर सकता. हमारे अपने कमुनिस्ट भले ही यह बात न समझ सकें, प्रचंड को तो एक देश चलाना है आख़िर.

Aakar said...

चाहे जहाँ कि भि हो, सब का सब नेता एक ही जात के हैँ । ओ जनता के पक्ष मे रहेकर भि कुछ काम नहिँ करतेहेँ ।