Friday, August 22, 2008

नेपाल-भारत सीमा पर तबाही – मेघा पाटकर सवालो के कटघरे में

नेपाल भारत सीमा के पास पश्चिमी कुसाहा तटबन्ध के टुट जाने से नेपाल और भारत मे भीषण तबाही हुई है । नेपाल के सुनसरी जिले और बिहार के सुपौल, सहरसा, अररिया, किशनगंज, कटिहार और खगडीया जिले मे जान-माल की भारी क्षति हुई है । हजारो लोग बह गए है, बेघर हो गए है – प्रलय की सी स्थिती बन गई है ।

नेपाल मे भारत-विरोधी मिडिया तर्क-कुतर्क के सहारे भारत को दोषी सिद्ध करने की असफल कोशिस कर रहा है । दुसरी तरफ नेपाल स्थित भारतीय दुतावास अंग्रेजी मे विज्ञप्तियां जारी कर न जाने क्या गिटिर-पिटीर कर रहा है । समाज का सभ्रांत वर्ग बाढ पिडीतों के लिए सहायता जुटाने मे जुट गया है । लेकिन मै आज सवालो के कटघरे मे खडा करना चाह्ता हुं भारत के मेघा पाटकर और नेपाल के छदम राष्ट्रवादियो कों । जिनकी वजह से भारत-नेपाल के बीच जल संशाधनो के व्यवस्थापन मे कठिनाईया आती रहती है ।


जब श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी की सरकार ने बाढ की समस्या से निजात पाने और जल यातायात की संभावनाओ को कार्यरुप देने के लिए नदीयों को जोडने की बात शुरु की तो मेघा पाटकर नेपाल मे लोगो को भारत की योजना के विरुद्ध भडकाने के लिए नेपाल पहुंच गई । साम्राज्यवादी शक्तियो के दलाल जो दक्षिण एसिया को गरीब देखना चाहते है, वह भारत-नेपाल के बीच जल संशाधनो के उपयोग के लिए कोई भी सम्झौता होने पहले ही उसकी राह मे रोडे अटकाने के ले मिडिया दुष्प्रचार शुरु कर देते है । दोनो देश के कमजोर राजनेता जनता की बीच खडे हो कर सही को सही सिद्ध करने मे असफल हो जाते है । और नतिजा यह होता है की कोई काम नही होता है ।

कोशी नदी के बारे मे कहा जाता है की वह घडी के पेण्डुलम की तरह हर वर्ष अपना पथ बदलती रहती है । ईस क्षेत्र मे मानव बस्तियां घनी हो चली है, जो तबाही का कारण बनता है । एसे मे कोई विशेषज्ञो की मदत से कोई योजना तो बनाना ही होगा, जिसमे जो निवेष होगा उसके एवज मे प्रयाप्त आर्थिक लाभ भी निवेषकर्ता के लिए सुनिश्चित किया जाना चाहिए ।

आज जो हजारो लोग बेघर हुए है, जान-माल की क्षति हुई है उसके लिए भारत मे मेघा पाटकर और नेपाल मे छद्म राष्ट्रवादी हीं जिम्मेवार हैं । मेघा पाटकर जैसे लोग अपने कामो के एवज मे विदेशो से धन प्राप्त करते है, और दुसरी तरफ नेपाल के छद्म राष्ट्रवादी भारत विरोध शुरु कर खुद को राष्ट्रवादी सिद्ध कर अपनी निरंकुश सत्ता को टिकाना चाह्ते हैं ।

2 comments:

संगीता पुरी said...

कई दिनों से टी वी पर बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों की बुरी हालत को देख रही हूं। भूखे प्यासे लोग अपने परिवार और मवेशियों के साथ कष्ट में जी रहे हैं।सही है. करे कोई , भरे कोई ।

राजीव रंजन प्रसाद said...

मेधा पाटकर अब ब्रांड आन्दोलनकारी हैं..जैसे कोकाकोला पैप्सी जैसे ब्रांड होते हैं वैसे ही अरुंधति राय, पाटकर आदि ब्रांड भी हैं....प्रचार चाहिये इन्हे आगे लाईये
..चाहे मुद्दा कुछ भी हो।

***राजीव रंजन प्रसाद