महाराष्ट्र के डा. हेडगेवार देश की एकात्मकता के लिए काम करने वाले युगपुरुष थे। लेकिन उनके बारे मे शायद हीं कोई भी टीभी चैनल वाला सकरात्मक चीजे दिखाता है। आज दो हजार लोग सडक पर उतर कर भारतीयता के पक्ष और क्षेत्रवाद के विरोध मे नारे लगाए तो शायद हीं कोई भी टीभी चैनल वाला अपने प्राइम टाईम मे उसको प्रदर्शीत करेगा। लेकिन अगर कोई राज ठाकरे क्षेत्रवाद को बढावा देने वाली कोई भडकाउ बात करेगा तो टीभी चैनल वाले बार बार उसे दिखाएगे। फिर कोई नितीश, लालु या पासवान कुछ भडकाउ प्रतिकृया देगे तो फिर उसे भी उसी प्रकार बार बार दिखाया जाएगा।
आज देश की मिडीया मे विदेशी शक्तियो का बहुत बडा निवेश है। यह निवेश प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ से भी ज्यादा साम्राज्यवादी शक्तियो के हित पोषण के लिए किया गया है। विश्व मे भारत ही एक ऐसा विशाल भुखण्ड है जिसमे राष्ट्र बनने की सभी गुण विद्यमान हैं। विश्व शक्तियो के सामने भारत बडी चुनौती है। इस कारण शक्ति सम्पन्न राष्ट्र भारत मे क्षेत्रियता और भाषावाद को बढावा देना चाहते है। वह यह भी चाहते है की यहा हिन्दु और मुसल्मान आपस मे लडे। यही कारण है की मिडीया छद्म रुप से क्षेत्रियता और भाषावाद को बढावा देने वाली घटनाओ को ज्यादा से ज्यादा दिखाती है।
राज ठाकरे को महत्व न देना ही उसकी प्रवृती को नष्ट करने का सबसे बढिया तरिका है। अतः राज ठाकरे और उसकी बातो पर प्रतिकृया देने वालो की कम से कम चर्चा की जानी चाहिए।
एक बात और, बिहार मे कानुन व्यवस्था तथा विकास के काम बिल्कुल ठप्प हो गए है। मतदान और राजनिती का आधार विकास न हो कर जातिवाद रह गया है। रोजगारी का सृजन ठप्प पड चुका है। लोगो ने शासन के लिए गलत लोगो का चुनाव किया था तो यह सब भुगतना हीं था। आज बिहारी जनता को रोजगार के लिए महाराष्ट्र-पंजाब और असम जाना पड रहा है तो इसके लिए सबसे बडा दोषी कौन है। मै इस स्थिती के लिए राज ठाकरे को कतई दोषी नही मानता। इस स्थिती के लिए बिहार की जनता और यहा के नेता ही सबसे बडे दोषी है। क्षेत्रिय विकास असंतुलन की वजह से इतनी बडी जंनसंख्या का दुसरे राज्य मे बस जाना की वहां के लोग खुद को अल्पसंख्यक महसुस करने लगे, इस बात की कोई राज ठाकरे चिता करता है तो राष्ट्रियता के नाम पर उसकी बात को खारीज नही किया जाना चाहिए। इस बात पर बहस होनी चाहिए की बिहार विकास के दौड मे क्यो पीछे छुट गया है और इसका दोष दुसरे के सिर मढने से काम नही चलेगा। बिहार की जनता और बिहार के नेताओ को संकल्प लेना चाहिए की वे दुसरे राज्यो मे बोझ नही बनेगे बल्कि खुद बिहार को विकास के मार्ग पर आगे बढाएंगे।
8 comments:
मैं आपसे सहमत हूँ. मीडिया की ऐंटी कांसट्रकटिव गतिविधियाँ कुछ ऐसा ही संदेह पैदा करती हैं. सकारात्मक खबरों का अभाव और विध्वंसात्मक क्रियाकलापों की विशेष चर्चा. धर्म के बाह्याडम्बरों को प्रचारित करने पर विशेष बल.एक विशेष प्रकार के श्रद्धालुओं को जन्म देने और उनका एक समुदाय खड़ा करने का प्रयास. आज का मीडिया इन्हीं परिधियों के बीच नाचता है. महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि कौन नचा रहा है उसे ?
मैं अल्तमश की राय से सहमत हूँ.
आपका कहना काफी हद तक सही है।
लेकिन फिर भी कुछ चैनल ऐसे हैं जो इन दिनों ऐसे लोगों के खिलाफ़ मोर्चा खोले हुए हैं। और उसका उद्देश्य टीआरपी बटोरना तो हरगिज़ नहीं
निश्चित ही विदेशी शक्तियाँ नहीं चाहेंगी की भारत एक सर्वशक्तिमान राष्ट्र बन कर उनके सामने खड़ा हो जावे. मीडीया जिसमे बाहरी निवेश बहुतायत से है, उन्हीं लोगो की स्वार्थ सिद्धि मे लगी है. आभार.
http://mallar.wordpress.com
पुनश्च: कृपया वर्ड वेरिफिकेशन का प्रावधान हटा दें.
भाई मैंने भड़ास पर करी आपकी टिप्पणी को एक पोस्ट के रूप में बिना आपकी अनुमति के डाल दिया है। क्या करती बात ही इतनी धारदार थी कि टिप्पणी के रूप में दबी रहे ये बर्दाश्त नहीं हो रहा था,आशा है आप बुरा न मानेंगे
जय भड़ास
आपकी पोस्ट को आज के अमर उजाला में देखा . बधाई .
vakai media bhatak raha hai.. lekin main es baat se sahmat nhi hoon ki raaj thakre kisi bhi had tak theek hai...raaj thakre ko raveendra nath thakur ki likht pustak gora padna chahiye ,, shayaad akl kuch theekane par aaye
vakai media bhatak raha hai.. lekin main es baat se sahmat nhi hoon ki raaj thakre kisi bhi had tak theek hai...raaj thakre ko raveendra nath thakur ki likht pustak gora padna chahiye ,, shayaad akl kuch theekane par aaye
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