वीरगंज (नेपाल) २१ सितम्बर २००८ । नेपाल-भारत सीमा पर आवस्थित नगर वीरगंज में सामाजिक अध्ययन तथा जनसञ्चार केन्द्र ने "नेपाल भारत जनसम्बन्ध" विषयक गोष्ठी एवं अन्तरसम्वाद कार्यक्रम का आयोजन किया । कार्यक्रम में भारत-नेपाल के राजनेता, नागरिक समाज एवं पत्रकारो की उपस्थिती थी । इस अवसर पर निकले निश्कर्षो को साझा घोषणा-पत्र के रुप मे जारी किया गया । घोषणा-पत्र का पुर्ण पाठ निम्नानुसार है :
नेपाल-भारत के बीच प्राचिनकाल से ही अत्यन्त घनिष्ठ तथा मैत्रीपुर्णॅ सम्बन्ध रहे है । विभिन्न काल खण्डो में राजनैतिक परिस्थितियों के कारण दोनो देशों के शासकों के सम्बन्धों में उतार-चढाव आते रहे है, लेकिन दोनो देशों के जन-सम्बन्ध अटूट ही बने रहें । हमारे सम्बन्धों की कडिया हमारी साझा संस्कृति, भाषा, इतिहास और भूगोल से जुडी हुइ हैं । भविष्य में दोनो देशों के जन-सम्बन्ध को अधिक प्रगाढ और मैत्रीपुर्ण बनाने के लिए हम निम्न लिखित विन्दुओं पर्रर् इमानदारी पुर्वक सार्थक प्रयास करने का संकल्प करते हैं ।
१) जल संसाधन एंवं विधुत के क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग एवं विश्वास बढा कर बाढ-नियन्त्रण की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।
२) नेपाल-भारत तथा दक्षिण एसिया (सार्क) क्षेत्र के सभी देशों के बीच क्षेत्रीय व्यापार सम्झौते की लागू किया जाए जिससे आर्थिक विकास की दौड में कोई भी देश पीछे न रह जाए । सार्क क्षेत्र के व्यापार को अन्य देशों के व्यापार की तुलना में प्राथमिकता दी जाए ।
३) नेपाल से तीर्थ यात्रियो के लिए गया, काशी, प्रयाग तथा अजमेर शरीफ जाने के लिए रक्सौल से सीधी रेल सेवा शुरु की जाए।
४) सीमा के आर-पार से होने वाले अपराध नियन्त्रण के लिए उच्चस्तरीय कार्यकुशल साझा सयन्त्र बनाया जाए ।
५) सीमा के सम्बन्ध में जो भी विवाद है उनको मैत्री एवं सदभावपुर्वक शीघ्र हल किया जाए । इस सम्बन्ध मे एक दुसरे को उतेजित करने वाले बयानबाजी एवं गतिविधी को रोकी जाए ।
६) सीमा क्षेत्र में तस्करी को रोका जाए तथा वैद्य व्यापार को बढावा दिया जाए । लेकिन सीमा पर व्यक्तिगत उपभोग के लिए सामान-वस्तुओ के आदान-प्रदान को बेरोकटोक आने जाने दिया जाए ।
७) नेपाल-भारत सीमा के दोनो ओर के शहरो को मोडल सीमांत नगर के रुप में विकसित किया जाए तथा सरकारें इसके लिए आवश्यक धनराशि आवंटित करें ।
८) देवनागरी लिपि के कम्प्यूटर प्रयोग को बढाने के लिए भारत तथा नेपाल संयुक्त रुप से विकास एवं मानकीकरण का प्रयास करे।
९) दोनों देशो के मैत्रीपुर्ण सम्बन्धों को बिगाडने के लिए हो रही अतिवादी सोच और पीत पत्रकारिता को हतोत्साहित किया जाए ।
१०) सीमा पर तैनाथ दोनो देशों के भंसार एवं सुरक्षाकर्मियो को दोनो देश के विशेष सम्बन्ध के बारे में प्रशिक्षित किया जाए तथा सुमधुर व्यवहार करने के लिए उत्प्रेरित किया जाए ।
११) सीमा क्षेत्र के स्थानीय समास्यायो के निराकरण के लिए जन-सम्बन्ध पर आधारित मैत्रीपुर्णॅ संगठन बने ।
१२) चेली बेटी बेच बिखन की समस्या को रोकने के लिए विशेष कानुनी एवं प्रशासनिक व्यवस्था की जाए । इसके बारे में जनजागरण भी किया जाए ।
१३) भारत में प्रयोग हो रही उन्नत कृषि प्रविधी की जानकारी सीमा क्षेत्र के नेपाली कृषक को उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाए ।
१४) पडोसी की सुरक्षा संवेदनशीलता को ध्यान में रखकर ही. सरकारें विदेशी एजेन्सीयों को सीमा क्षेत्र मे काम करने की अनुमति दे ।
१५) साहित्यिक विकास एवम सांस्कृतिक आदान-प्रदान के लिए सीमा क्षेत्र में एक समिति बनाई जाए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता केन्द्र के अध्यक्ष पवन तिवारी ने तथा सञ्चालन श्री रितेश त्रिपाठी ने किया । कार्यक्रम में सीमा जागरण मञ्च के डा. अनिल कुमार सिन्हा तथा गोलोक विहारी भी उपस्थित थें । नेपाल के कृषि तथा सहकारी मन्त्री श्री जयप्रकाश गुप्ता प्रमुख अतिथी थें । कार्यक्रम में सभासद अजय द्विवेदी, करिमा बेगम, जीतेन्द्र सोनल, आत्माराम साह, वंशीधर मिश्र भी मौजुद थें । नेपाल हिन्दी साहित्य परिषद कि संरक्षक दीप नारायण मिश्र, डा. रामवतार खेतान, गणेश लाठ, गोपाल अश्क, राजद नेता रामबावु यादव, राजद नेता फैसल रहमान एवं बजरंगी ठाकुर ने भी अपने विचार रखें ।
2 comments:
बहुत ही अच्छे विचार रखे गये हैं। भारत और नेपाल के सम्बन्ध सदा मैत्रीपूर्ण रहें; दोनो देश कन्धे से कन्धा मिलाकर उन्नति करें - यही कामना है।
देवनागरी लिपि के मानकीकरण से सम्बन्धित बिन्दु भी बहुत अच्छा लगा।
पर 'चेली बेटी बेच बिखन की समस्या' क्या चीज है? जरा बताइयेगा।
"चेली बेटी बेच बिखन" मतलब "बहन बेटीयो की बिक्री" । यह नेपाल की एक बडी दुखदायी सामाजिक समस्या है । नेपाल मे गावों मे दलाल भोली भोली युवतियो को वहला फुसला कर भारत के वेश्यालयो मे बेच डालते है । नेपाल-भारत सीमा पर कार्यरत प्रहरी एवं स्वयंसेवी संस्थाओ की मद्दत से हरेक साल ४-५ बहन बेटियो का उद्धार किया जाता है । भारतीय महानगरों से भी उद्धार होते है । लेकिन वहां से उद्धार की गई महिलाओं का समाज में पूनर्वास भी कठिन है । अतः समस्याको प्रारम्भ से रोक्ना जरुरी है ।
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